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Thursday, September 26, 2013

दादाजी ने ऊँगली थामी

आल्हा छंद - 16 और 15 मात्राओं पर यति. अंत में गुरु-लघु , अतिशयोक्ति


 दादाजी ने ऊँगली थामी, शैशव चला उठाकर पाँव ।
मानों बरगद किसी लता पर, बिखराता हो अपनी छाँव ।।


फूलों से अनभिज्ञ भले पर, काँटों की रखता पहचान ।
अहा! बड़ा ही सीधा सादा, भोला भाला यह भगवान ।।


शिशु की अद्भुत भाषा शैली, शिशु का अद्भुत है विज्ञान ।
बिना पढ़े ही हर भाषा के, शब्दों का रखता है ज्ञान ।।


सुनो झुर्रियां तनी नसें ये, कहें अनुभवी मुझको जान।
बचपन यौवन और बुढ़ापा, मुन्ने को सिखलाता ज्ञान ।। 


जन्म धरा पर लिया नहीं है, चिर सम्बंधों का निर्माण |
अपनेपन की मधुर भावना, फूँक रही रिश्तों में प्राण ||

11 comments:

  1. अहा, इसी छन्द में पूरा आल्हा उदल सुना है, ग़ज़ब की गेयता है इस छन्द में।

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  2. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार -

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 27/09/2013 को
    विवेकानंद जी का शिकागो संभाषण: भारत का वैश्विक परिचय - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः24 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra

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  4. आल्हा छंद में गेयता पूर्ण बहुत सुंदर रचना !

    नई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )

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  5. दादाजी ने ऊँगली थामी, शैशव चला उठाकर पाँव ।
    मानों बरगद किसी लता पर, बिखराता हो अपनी छाँव ।।


    फूलों से अनभिज्ञ भले पर, काँटों की रखता पहचान ।
    अहा! बड़ा ही सीधा सादा, भोला भाला यह भगवान ।।


    शिशु की अद्भुत भाषा शैली, शिशु का अद्भुत है विज्ञान ।
    बिना पढ़े ही हर भाषा के, शब्दों का रखता है ज्ञान ।।


    सुनो झुर्रियां तनी नसें ये, कहें अनुभवी मुझको जान।
    बचपन यौवन और बुढ़ापा, मुन्ने को सिखलाता ज्ञान ।।


    जन्म धरा पर लिया नहीं है, चिर सम्बंधों का निर्माण |
    अपनेपन की मधुर भावना, फूँक रही रिश्तों में प्राण ||

    अनंत की दोहावली भाव अर्थ और नवरूपकत्व लिए है बोध कथा सा सरल ज्ञान लिए है बच्चे की निश्छल मुस्कान घर का प्राण बुजुर्गों का मान लिए है।

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  6. सुनो झुर्रियां तनी नसें ये, कहें अनुभवी मुझको जान।
    बचपन यौवन और बुढ़ापा, मुन्ने को सिखलाता ज्ञान ।।


    जन्म धरा पर लिया नहीं है, चिर सम्बंधों का निर्माण |
    अपनेपन की मधुर भावना, फूँक रही रिश्तों में प्राण ||

    सुन्दर.अच्छी रचना.रुचिकर प्रस्तुति .; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ
    कभी इधर भी पधारिये ,

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  7. सुनो झुर्रियां तनी नसें ये, कहें अनुभवी मुझको जान।
    बचपन यौवन और बुढ़ापा, मुन्ने को सिखलाता ज्ञान ।..

    बहुत सुन्दर, सार्थक छंद ... भाव ओर गेयता का अनोखा मिश्रण लिए ...

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  8. बहुत सुन्दर बधाई

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