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Friday, December 6, 2013

दो गज़लें : अरुन शर्मा 'अनन्त'

बह्र : खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून  

खूबसूरत हसीं परी होगी,
सोचता हूँ जो जिंदगी होगी,

सादगी कूटकर भरी होगी,
श्याम जैसी वो साँवरी होगी,

ख्वाहिशें क्यूँ भला अधूरी हैं,
मांगने में कहीं कमी होगी,

ख़त्म कर लें विवाद आपस का,
मैं गलत हूँ कि तू सही होगी,

मौत ने खा लिया बता देना,
जिस्म में जान जब नही होगी,

शांत चुपचाप दोस्त रहने दो,
सत्य बोलूँगा खलबली होगी....

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बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम

तमन्ना यही एक पूरी खुदा कर,
जमी ओढ़ लूँ मैं फलक को बिछा कर,

शुकूँ से भरी नींद अँखियों को दे दे,
दुआओं तले माँ के बिस्तर लगा कर,

बढ़ा हौसला दे मेरी झोपड़ी का,
बुजुर्गों के आशीष की छत बना कर,

अमन शान्ति का शुद्ध वातावरण हो,
मुहब्बत पिला दे शराफत मिला कर,

सितारों भरी एक दुनिया बसा रब,
अँधेरे का सारा जहाँ अब मिटा कर..

11 comments:

  1. सुन्दर गजलें-
    आभार प्रिय अरुण-

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  2. बढ़िया,बेहतरीन गजल ..!
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    Recent post -: वोट से पहले .

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  3. ख्वाहिशें क्यूँ भला अधूरी हैं...
    मांगने में कुछ कहीं कमी होगी.....
    बेहद सुन्दर ग़ज़ल.......

    अनु

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  4. वाह बहुत सुन्दर ग़ज़ल............

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  5. बेहतरीन गजलें है अरुन भाई जी...
    बहुत बढ़ियाँ....
    :-)

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  6. बहुत खूबसूरत गजलें ... दोनों बहर को कमाल का निभाया है स्पष्ट कहन के साथ ...

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  7. क्या बात... बेहतरीन ग़ज़लें

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  8. बहुत सुन्दर ...भाव भी अभिव्यक्ति भी ...

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