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Thursday, February 13, 2014

गीत : पुलकित मन का कोना कोना

गीत

पुलकित मन का कोना कोना, दिल की क्यारी पुष्पित है.
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

मिलन तुम्हारा सुखद मनोरम लगता मुझे कुदरती है,
धड़कन भी तुम पर न्योछावर हरपल मिटती मरती है,
गति तुमसे ही है साँसों की, जीवन तुम्हें समर्पित है,
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

चहक उठा है सूना आँगन, महक उठी हैं दीवारें,
खुशियों की भर भर भेजी हैं, बसंत ऋतु ने उपहारें,
बाकी जीवन पूर्णरूप से केवल तुमको अर्पित है,
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

मधुरिम प्रातः सुन्दर संध्या और सलोनी रातें हैं,
भीतर मन में मिश्री घोलें मीठी मीठी बातें हैं,
प्रेम तुम्हारा निर्मल पावन पाकर तनमन हर्षित है,
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

7 comments:

  1. लाजबाब,बेहतरीन प्रस्तुति...! अरुन जी
    RECENT POST -: पिता

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  2. प्रेम जब मुखर होता है तो मन आँगन झूम उठता है
    बहुत सुन्दर !

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  3. निष्छलता प्रेम का आभूषण है।

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  4. वाह...बहुत सुन्दर प्रेम गीत....
    शुभकामनाएं.
    अनु

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  5. मधुर मधुर मधुर भाव से प्लावित कर गया मन को ....बहुत सुन्दर रचना l
    new post बनो धरती का हमराज !

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  6. वाह अरुण भाई क्या खूब प्रेम गीत का सृजन किया है .. बहुत आनंद आया पढ़कर .

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  7. बहुत सुन्दर प्रेम गीत....

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