प्रेम दिवस में मस्त हो, भूल गए माँ बाप ।
त्रुटियों का आभास ना, और न पश्चाताप ।१।
बदली संस्कृति सभ्यता, बदला है अंदाज ।
संबंधो पर गिर रही, परिवर्तन की गाज ।२।
मैली मन की भावना, दूषित हुए विचार ।
है क्षणभंगुर आजकी, नव पीढ़ी का प्यार ।३।
आजादी है नाम की, नाम मात्र गणतंत्र ।
व्यापित केवल देश में, पाप लोभ षड़यंत्र ।४।
हुआ मान सम्मान का, बंधन है कमजोर ।
बढ़ता जाता है मनुज, स्वयं पतन की ओर ।५।
मानव मस्ती मौज औ, मय की मद में चूर ।
अपने ही करने लगे, जख्मों को नासूर ।६।
त्रुटियों का आभास ना, और न पश्चाताप ।१।
बदली संस्कृति सभ्यता, बदला है अंदाज ।
संबंधो पर गिर रही, परिवर्तन की गाज ।२।
मैली मन की भावना, दूषित हुए विचार ।
है क्षणभंगुर आजकी, नव पीढ़ी का प्यार ।३।
आजादी है नाम की, नाम मात्र गणतंत्र ।
व्यापित केवल देश में, पाप लोभ षड़यंत्र ।४।
हुआ मान सम्मान का, बंधन है कमजोर ।
बढ़ता जाता है मनुज, स्वयं पतन की ओर ।५।
मानव मस्ती मौज औ, मय की मद में चूर ।
अपने ही करने लगे, जख्मों को नासूर ।६।
लाज़वाब बहुत ही सुन्दर.....
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब..
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, गूगल और 'निराला' - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर सन्देश देते लाजबाब दोहे ..! अरुन जी ,,
ReplyDeleteRECENT POST - आँसुओं की कीमत.
bahut sundar dohe vartmaan paristhiti par
ReplyDeleteNew post: शिशु
बहुत उम्दा दोहे अनंत :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (22-02-2014) को "दुआओं का असर होता है" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1531 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर दोहे अरुण जी .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर......
ReplyDeleteअरुण जी बहुत सुंदर दोहे .... अभिव्यंजना ब्लॉग पर आपके विचारों की प्रतीक्षा है ....
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