सर्वप्रथम ह्रदय लुटे, बाद नींद औ ख्वाब ।
प्रेम रोग सबसे अधिक, घातक और ख़राब ।१।
धीमी गति है स्वास की, और अधर हैं मौन ।
प्रश्न ह्रदय अब पूछता, मुझसे मैं हूँ कौन ।२।
जब जब जकडे देह को, यादों की जंजीर ।
भर भर सावन नैन दो, खूब बहायें नीर ।३।
रुखा सूखा भाग में, कष्ट निहित तकदीर ।
करनी मुश्किल है बयां, व्यथित ह्रदय की पीर ।४।
जीवन भर मजबूरियां, मेरे रहीं करीब ।
सिल ना पाया मैं कभी, अपना फटा नसीब ।५।
प्रेम रोग सबसे अधिक, घातक और ख़राब ।१।
धीमी गति है स्वास की, और अधर हैं मौन ।
प्रश्न ह्रदय अब पूछता, मुझसे मैं हूँ कौन ।२।
जब जब जकडे देह को, यादों की जंजीर ।
भर भर सावन नैन दो, खूब बहायें नीर ।३।
रुखा सूखा भाग में, कष्ट निहित तकदीर ।
करनी मुश्किल है बयां, व्यथित ह्रदय की पीर ।४।
जीवन भर मजबूरियां, मेरे रहीं करीब ।
सिल ना पाया मैं कभी, अपना फटा नसीब ।५।
प्रेम रोग में चैन कहाँ, बहुत ही सार्थक दोहे। आपका आभार।
ReplyDeleteसुन्दर दोहे भाई अरुण-
ReplyDeleteबधाई-
अपने को अपने से छुड़ाता प्रेम।
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुंदर दोहे ...! अरुन जी ....
ReplyDeleteRECENT POST - फागुन की शाम.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-02-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
ReplyDeleteआभार |
घातक और ख़राब करे नित जीना दूभर
ReplyDeleteदिल भी तो काफ़िर की बीज बोये उसर
दोहों की विधा में बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ......
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