Wednesday, June 3, 2020
Wednesday, January 22, 2020
Friday, March 18, 2016
मैं मरुथल
हम दोनों के संबंधों की, केवल इतनी है सच्चाई ।
मैं मरुथल पसरा मीलों तक, तुम निर्झरणी सिंधु समाई ।।
मेरा जीवन ज्वलनशील है,
तुममें पूर्ण प्रेम, शीतलता,
मैं कठोर भीतर बाहर से,
तुममें केवल निहित सरलता,
मैं मरुथल पसरा मीलों तक, तुम निर्झरणी सिंधु समाई ।।
मेरा जीवन ज्वलनशील है,
तुममें पूर्ण प्रेम, शीतलता,
मैं कठोर भीतर बाहर से,
तुममें केवल निहित सरलता,
युगों युगों से मैं प्यासा हूँ, मेरी तृष्णा बुझ ना पाई ।
मैं मरुथल पसरा मीलों तक, तुम निर्झरणी सिंधु समाई ।।
# अरुन अनन्त #
मैं मरुथल पसरा मीलों तक, तुम निर्झरणी सिंधु समाई ।।
# अरुन अनन्त #
Tuesday, March 15, 2016
विवशता
टूट रहा है धीरे धीरे मन घिर कर बाधाओं में।
नित्य विवशता डाल रही है बेड़ी मेरे पावों में।।
नित्य विवशता डाल रही है बेड़ी मेरे पावों में।।
मध्य हृदय में प्रश्न अनगिनत व्याकुलता भर चलता हूँ,
किन्तु मुख पर लिए प्रसन्नता प्रतिदिन सबसे मिलता हूँ,
किन्तु मुख पर लिए प्रसन्नता प्रतिदिन सबसे मिलता हूँ,
गुजर रहे हैं जैसे तैसे रातों दिन चिंताओं में।
नित्य विवशता डाल रही है बेड़ी मेरे पावों में।।
सुविधाओं से वंचित मेरा आखिर कब तक जीवन होगा,
सुख का पूर्ण आगमन कब तक अंत दुखों का सीजन होगा,
बाल्यकाल सम यौवन भी अब जाता दिखे अभावों में।
नित्य विवशता डाल रही है बेड़ी मेरे पावों में।।
अरुन अनन्त
Saturday, November 21, 2015
ग़ज़ल: दूरियों का फैसला स्वीकार इस अनुबंध पर
दूरियों का फैसला स्वीकार इस अनुबंध पर,
तुम खयालों का भी जाओगे घरौंदा छोड़कर,
तुम खयालों का भी जाओगे घरौंदा छोड़कर,
दो मेरे प्रश्नों के उत्तर गुत्थियों को खोलकर,
क्यों अकारण तुम विरह के मार्ग पर हो अग्रसर,
जोत जाना तुम हृदय की प्रेम से सिंचित धरा,
मध्य उपजे मोह का प्रत्येक पौधा तोड़कर,
दो वचन गतिमान जीवन पूर्ववत होगा मेरा,
इन दिनों का वस्तुतः होगा न किंचित भी असर,
और हैं दो चार बातें इनका भी हल कीजिये,
चैन, नींदें, स्वप्न, खुशियाँ हो न जाएँ बेखबर,
तुम स्वयं ही तय करो इस प्रेम की श्रेणी प्रिये,
भावनाओं का मिलन? कहना उचित है सोचकर?
सोचना गंभीरता से क्या उचित है यह कदम,
यदि अकारण है तो ये प्रतिघात है विश्वास पर..
अरुन अनन्त
क्यों अकारण तुम विरह के मार्ग पर हो अग्रसर,
जोत जाना तुम हृदय की प्रेम से सिंचित धरा,
मध्य उपजे मोह का प्रत्येक पौधा तोड़कर,
दो वचन गतिमान जीवन पूर्ववत होगा मेरा,
इन दिनों का वस्तुतः होगा न किंचित भी असर,
और हैं दो चार बातें इनका भी हल कीजिये,
चैन, नींदें, स्वप्न, खुशियाँ हो न जाएँ बेखबर,
तुम स्वयं ही तय करो इस प्रेम की श्रेणी प्रिये,
भावनाओं का मिलन? कहना उचित है सोचकर?
सोचना गंभीरता से क्या उचित है यह कदम,
यदि अकारण है तो ये प्रतिघात है विश्वास पर..
अरुन अनन्त
Friday, November 13, 2015
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