वो कोमल थे, हम कंटीले थे,
आँखें सूखीं थी, हम गीले थे,
रास्ते फूलों के, पथरीले थे,
जख्मी पग, कांटें जहरीले थे,
ढहे पेंड़ों से, पत्ते ढीले थे,
बिखरे हम, कर उसके पीले थे,
नाजुक लब, नयना शर्मीले थे,
घर में बदबू थी, हम सीले थे,
हम फीके भी ,हम चमकीले थे..........
आँखें सूखीं थी, हम गीले थे,
रास्ते फूलों के, पथरीले थे,
जख्मी पग, कांटें जहरीले थे,
ढहे पेंड़ों से, पत्ते ढीले थे,
बिखरे हम, कर उसके पीले थे,
नाजुक लब, नयना शर्मीले थे,
घर में बदबू थी, हम सीले थे,
हम फीके भी ,हम चमकीले थे..........
kuchh panktiyan to behad shandar...
ReplyDeleteबहुत खूब ..
ReplyDeleteसुंदर !
अच्छा है...
ReplyDeleteलिखते रहिए.. मेरी शुभकामनाएँ.
मनोभाव का उम्दा प्रगटीकरण ||
ReplyDeleteसही विचार |
बहुत सुंदर प्रस्तुती,,,
ReplyDeleteRECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
वाह.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना अरुण जी....
बहुत बढ़िया.
अनु
आप सभी का तहे दिल से अभिवादन आभार, बस अपना आशीर्वाद और स्नेह यूँ ही बनाये रखियेगा.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अरुण जी...
ReplyDeleteबिखरे हम, कर उसके पीले थे,
ReplyDeleteनाजुक लब, नयना शर्मीले थे,
अरुण जी बहुत सुन्दर जज्बात ..लेकिन चमकते ही रहें सुकून आया ... ...आभार
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
संजय भाई भ्रमर जी प्रसंसा हेतु विन्रम, सादर अभिवादन आप दोनों का.
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