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Sunday, July 22, 2012

हम कंटीले थे

वो कोमल थे, हम कंटीले थे,


आँखें सूखीं थी, हम गीले थे,


रास्ते फूलों के, पथरीले थे,


जख्मी पग, कांटें जहरीले थे,


ढहे पेंड़ों से, पत्ते ढीले थे,


बिखरे हम, कर उसके पीले थे,


नाजुक लब, नयना शर्मीले थे,


घर में बदबू थी, हम सीले थे,


हम फीके भी ,हम चमकीले थे..........

10 comments:

  1. अच्छा है...
    लिखते रहिए.. मेरी शुभकामनाएँ.

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  2. मनोभाव का उम्दा प्रगटीकरण ||
    सही विचार |

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  3. वाह.....
    बहुत सुन्दर रचना अरुण जी....
    बहुत बढ़िया.

    अनु

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  4. आप सभी का तहे दिल से अभिवादन आभार, बस अपना आशीर्वाद और स्नेह यूँ ही बनाये रखियेगा.

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  5. बहुत सुन्दर अरुण जी...

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  6. बिखरे हम, कर उसके पीले थे,


    नाजुक लब, नयना शर्मीले थे,
    अरुण जी बहुत सुन्दर जज्बात ..लेकिन चमकते ही रहें सुकून आया ... ...आभार
    भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण

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  7. संजय भाई भ्रमर जी प्रसंसा हेतु विन्रम, सादर अभिवादन आप दोनों का.

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