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Sunday, September 16, 2012

दुश्मन तुझे दिल का कट्टर बना के

दुश्मन तुझे दिल का, कट्टर बना के,
पूजा करूँ तुझको, पत्थर बना के,
 

सोता रहूँ जीवन भर, चैन से मैं,
काटों तले अपना, बिस्तर बना के,
 

चल दी कहाँ ऐसे, जल्दी जुदा हो,
मेरी दशा इतनी, बत्तर बना के,
 

ना तो दुआ से, ना राहत दवा से,
तुमने थमाया गम, गठ्ठर बना के,
 

शिकवा गिला करता हूँ, रोज़ तुझसे,
तेरे खयालों का, उत्तर बना के....

30 comments:

  1. दुश्मन तुझे दिल का, कट्टर बना के,
    पूजा करूँ तुझको, पत्थर बना के,
    वाह|||
    क्या दुश्मनी निभाई है सर जी...
    बहुत खूब....
    :-)

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    1. शुक्रिया रीना जी ये इश्क की दुश्मनी है कुछ अलग तो होनी चाहिए ना

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  2. बहुत शानदार गज़ल...शुभकामनाएँ अरुन जी

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    1. तहे दिल से शुक्रिया संजय भाई

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  3. भावनाओं को परिभाषित करने में सफल रचना सुन्दर रचना |

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    1. बहुत-२, शुक्रिया आपको मेरी रचना पसंद आई.

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  4. शिकवा गिला करता हूँ, रोज़ तुझसे,
    तेरे खयालों का, उत्तर बना के....

    दिया था दिल तुझे रखने को ,
    तूने लौटा दिया जलाके .

    बढ़िया प्रस्तुति है दोस्त नया अंदाज़ .

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    1. वाह वीरेन्द्र जी क्या बात है, धन्यवाद

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  5. सोता रहूँ जीवन भर, चैन से मैं,
    काटों तले अपना, बिस्तर बना के,

    Bahut Khoob janab.. isi prakar jaari rakhein...

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    1. आदरणीय रविकर सर तहे दिल से शुक्रिया

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  7. बहुत ही खूबसूरत कविता |

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  8. वाह! अरुण। सुन्दर भाव और उतना ही अच्छा शब्द चयन!

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    1. सर सराहना के लिए आभार, शुक्रिया .....

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  9. जब गम गट्ठर बन जाए तो जीवन आसन हो जाता है
    क्यों कि जीवन को उसकी बहुत जल्दी आदत पड़ जाती है

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    1. सत्य है अनु जी, यहाँ पधारने के लिए तहे दिल से शुक्रिया.

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    1. शुक्रिया बहुत-२ शुक्रिया

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  11. अच्छी गज़ल है अरुण जी .... आखिरी शेर बहुत अच्छा है|

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    1. शालिनी जी आपका तहे दिल से शुक्रिया

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  12. अच्छी गज़ल है अरुण जी....
    थोड़ा बहुत सुधार किया जा सकता है....
    बत्तर को बद्तर कीजिये...
    अन्यथा न ले..छोटा समझकर कह दिया है
    अनु

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    1. अनु जी सत्य कहा है आपने, शुक्रिया बस इसी तरह से आज सभी का स्नेह चाहिए ताकि जो गलतियाँ होती हैं उनपर ध्यान दे सकूँ. आपका बेझिझक कभी भी मेरी गलतियाँ बता सकती हैं मैं आपका शुक्रगुजार रहूँगा.

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  13. शुक्रिया कैलाश सर, आप अपना आशीर्वाद बनाये रखिये

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  14. मैंने आपका ब्लॉग देखा बहुत खुब ...बहुत ही बारीकी से आपने शब्दों को संजोया है...समय मिले तो मेरे घर भी कभी ....मेरा पता http://pankajkrsah.blogspot.com... सादर

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  15. सोता रहूँ जीवन भर, चैन से मैं,
    काटों तले अपना, बिस्तर बना के, ..

    बहुत खूब ... जो काँटों पे चल के जीना सीखता है वो कभी हारता नहीं ...
    अच्छा शेर है बहुत ...

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    1. सराहना के लिए तहे दिल से शुक्रिया दिगम्बर सर

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