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Saturday, September 22, 2012

कीमत चाहत की

कीमत चाहत की अदा कर भूल गई,
वो खुद से मुझको जुदा कर भूल गई,
 

नम नैना मेरे, ---- उम्र भर संग रहे,
जुल्मी मुझको, गुदगुदा कर भूल गई,
 

मुझमे कायम, यूँ दर्द-गम-जखम रहा,
खुद को मेरा वो,--- खुदा कर भूल गई,
 

चाहा जब तक खूब मुझको प्यार किया,
फिर वो अपना,-- फायदा कर भूल गई,


मांगे मैंने फूल------ उससे प्यार भरे,
बोझा काँटों का,---- लदा कर भूल गई....

21 comments:

  1. चाहत की कीमत मिली, अहा हाय हतभाग ।

    इक चितवन देती चुका, तड़पूं अब दिन रात ।

    तड़पूं अब दिन रात, आँख पर आंसू छाये ।

    दिल में यह तश्वीर, गजब हलचलें मचाये ।

    देती कंटक बोझ, इसी से पाई राहत ।

    कर्म कर गई सोझ, कोंच के नोचूं चाहत ।।

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    1. वाह सर क्या बात आपके दोहों का कोई जवाब नहीं

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  2. आदरणीय शास्त्री सर आपकी सराहना मिली मन प्रसन्न हो गया, चर्चा मंच पर स्थान दिया तहे दिल से शुक्रिया

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    1. शुक्रिया काजल कुमार जी

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  4. बहुत सुन्दर लिखा है ! अनन्त जी आपको अनन्त शुभकामनायें !

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    1. बहुत-२ शुक्रिया आदरेया जी, यूँ ही अपना आशीर्वाद बनाये रखिये

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  5. वाह !
    अरे जो इतना भुल्लकड़ है
    अच्छा ही हुआ वो भूल गयी !

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  6. दर्द भरी रचना !
    एक गीत की पंक्तियाँ याद आ गयीं..
    ~मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली...
    इसी तरह से बसर...हमने ज़िंदगी कर ली..~

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  7. Beautiful writing and beautiful presentation Arun Bhai

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    1. तहे दिल से शुक्रिया संजय भाई

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    1. बहुत-२ शुक्रिया रंजना जी

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