कीमत चाहत की अदा कर भूल गई,
वो खुद से मुझको जुदा कर भूल गई,
नम नैना मेरे, ---- उम्र भर संग रहे,
जुल्मी मुझको, गुदगुदा कर भूल गई,
मुझमे कायम, यूँ दर्द-गम-जखम रहा,
खुद को मेरा वो,--- खुदा कर भूल गई,
चाहा जब तक खूब मुझको प्यार किया,
फिर वो अपना,-- फायदा कर भूल गई,
मांगे मैंने फूल------ उससे प्यार भरे,
बोझा काँटों का,---- लदा कर भूल गई....
वो खुद से मुझको जुदा कर भूल गई,
नम नैना मेरे, ---- उम्र भर संग रहे,
जुल्मी मुझको, गुदगुदा कर भूल गई,
मुझमे कायम, यूँ दर्द-गम-जखम रहा,
खुद को मेरा वो,--- खुदा कर भूल गई,
चाहा जब तक खूब मुझको प्यार किया,
फिर वो अपना,-- फायदा कर भूल गई,
मांगे मैंने फूल------ उससे प्यार भरे,
बोझा काँटों का,---- लदा कर भूल गई....
सहज अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशुक्रिया रश्मि जी
Deleteअच्छी रचना।
ReplyDeleteशुक्रिया संदीप जी
Deleteचाहत की कीमत मिली, अहा हाय हतभाग ।
ReplyDeleteइक चितवन देती चुका, तड़पूं अब दिन रात ।
तड़पूं अब दिन रात, आँख पर आंसू छाये ।
दिल में यह तश्वीर, गजब हलचलें मचाये ।
देती कंटक बोझ, इसी से पाई राहत ।
कर्म कर गई सोझ, कोंच के नोचूं चाहत ।।
वाह सर क्या बात आपके दोहों का कोई जवाब नहीं
Deleteआदरणीय शास्त्री सर आपकी सराहना मिली मन प्रसन्न हो गया, चर्चा मंच पर स्थान दिया तहे दिल से शुक्रिया
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है
ReplyDeleteशुक्रिया काजल कुमार जी
Deleteबहुत सुन्दर लिखा है ! अनन्त जी आपको अनन्त शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत-२ शुक्रिया आदरेया जी, यूँ ही अपना आशीर्वाद बनाये रखिये
Deleteखूबसूरत अहसास
ReplyDeleteबहुत-२ शुक्रिया अनु जी
Deleteवाह !
ReplyDeleteअरे जो इतना भुल्लकड़ है
अच्छा ही हुआ वो भूल गयी !
शुक्रिया सुशील सर
Deleteदर्द भरी रचना !
ReplyDeleteएक गीत की पंक्तियाँ याद आ गयीं..
~मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली...
इसी तरह से बसर...हमने ज़िंदगी कर ली..~
शुक्रिया अनीता जी
DeleteBeautiful writing and beautiful presentation Arun Bhai
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया संजय भाई
Deletewaa bahut sundar ........har pankti lajwaab hai
ReplyDeleteबहुत-२ शुक्रिया रंजना जी
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