छोड़ा है मुझको तन्हा --- बेकार बनाके,
मेरे ही गम का मुझको - औज़ार बनाके,
तड़पाया उसने मुझको, हर रोज़ सजा दी,
यादों को भर है डाला -- हंथियार बनाके,
दिल में तेरा ही, तेरा ही -- प्यार भरा है,
पूजी है तेरी मूरत ----- सौ बार बनाके,
घोटाला - है रिश्वत - भ्रस्ठाचार बढा है,
जनता की बिगड़ी हालत, सरकार बनाके,
धड़कन को मेरी साँसों, को काम यही है,
जख्मों को रक्खा मुझमें, त्योहार बनाके,
समझे जो दुनियादारी -- वो दौर नहीं है,
खबरें उल्टी सीधी की --अखबार बनाके,
आँखों का पहले जैसा -- अंदाज़ नहीं है,
कर बैठी हैं अश्कों का-- व्यापार बनाके..
मेरे ही गम का मुझको - औज़ार बनाके,
तड़पाया उसने मुझको, हर रोज़ सजा दी,
यादों को भर है डाला -- हंथियार बनाके,
दिल में तेरा ही, तेरा ही -- प्यार भरा है,
पूजी है तेरी मूरत ----- सौ बार बनाके,
घोटाला - है रिश्वत - भ्रस्ठाचार बढा है,
जनता की बिगड़ी हालत, सरकार बनाके,
धड़कन को मेरी साँसों, को काम यही है,
जख्मों को रक्खा मुझमें, त्योहार बनाके,
समझे जो दुनियादारी -- वो दौर नहीं है,
खबरें उल्टी सीधी की --अखबार बनाके,
आँखों का पहले जैसा -- अंदाज़ नहीं है,
कर बैठी हैं अश्कों का-- व्यापार बनाके..
बहुत सुन्दर रचना... हालत ही ऐसे हैं आजकल के क्या करें....
ReplyDeleteशुक्रिया संध्या जी
Deleteबढ़िया है अरुण ||
ReplyDeleteशुक्रिया रविकर सर
Deleteबढ़िया तारतम्य |
ReplyDeleteइन्हें बर्दाश्त करें-
चले कार-सरकार की, होय प्रेम-व्यापार |
औजारों से खोलते, पेंच जंग के चार |
पेंच जंग के चार, चूड़ियाँ लाल हुई हैं |
यह ताजा अखबार, सफेदी छड़ी मुई है |
चश्मा मोटा चढ़ा, रास्ता टूटा फूटा |
पत्थर बड़ा अड़ा, यहीं पर गाड़ू खूटा ||
सर आप ये दोहे मुझपर यूँ बरसाते रहा कीजिये बहुत अच्छा लगता है. शुक्रिया
Deleteतड़पाया उसने मुझको, हर रोज़ सजा दी,
ReplyDeleteयादों को भर है डाला -- हंथियार बनाके,
ये शेर सब से बढ़िया लगा ..
बहुत-२ शुक्रिया शारदा जी
Deleteशुक्रिया सर
ReplyDeleteprabhawshali rachna
ReplyDeleteशुक्रिया आशा बिष्ट जी
Deleteअरुन जी ,बहुत उम्दा प्रसंसनीय प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRECENT POST : गीत,
धीरेन्द्र सर सराहना के लिए तहे दिल से शुक्रिया
Deleteबहुत उम्दा गज़ल
ReplyDeleteशुक्रिया आदरेया संगीता जी
Deleteवाह ... बहुत ही बढिया लिखा है ...
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया सदा जी आपका
Deleteआँखों का पहले जैसा -- अंदाज़ नहीं है,
ReplyDeleteकर बैठी हैं अश्कों का-- व्यापार बनाके
....... हालत ही ऐसे हैं आजकल अरुन जी
सही कह रहे हैं संजय भाई बहुत -२ शुक्रिया
Deleteरविकर सर तहे दिल से शुक्रिया
ReplyDeleteघोटाला - है रिश्वत - भ्रस्ठाचार (भ्रष्टाचार )बढा है, .......भ्रष्टाचार
ReplyDeleteजनता की बिगड़ी हालत, सरकार बनाके,
धड़कन को मेरी साँसों, को काम यही है,
जख्मों को रक्खा मुझमे(मुझमें ), त्योहार बनाके, ..........मुझमें
बहुत सशक्त रचना है .युवा कवि भविष्य के लिए अपार संभावनाएं छिपाए है अपनी कलम में .
आदरणीय वीरेन्द्र सर आपका तहे दिल से शुक्रिया आपने मेरी गलती का एहसास दिलाया बस यूँ ही अपना आशीर्वाद बनाये रखिये ठीक कर दिया है सर
Deleteक्या मिल गया आखिर तुझको
ReplyDeleteमुझको बस एक उल्लू बनाके !!
बहुत सुंदर !
वाह सुशील सर क्या बात है शुक्रिया मेहरबानी
Deleteसमझे जो दुनियादारी -- वो दौर नहीं है,
ReplyDeleteखबरें उल्टी सीधी की --अखबार बनाके,
....आज के यथार्थ की बहुत सटीक और प्रभावी अभिव्यक्ति...
शुक्रिया कैलाश सर
Deleteवाह...बहुत सुंदर..
ReplyDeleteशुक्रिया रश्मि जी
Deleteबहुत ही सुंदर रचना |
ReplyDeleteइस समूहिक ब्लॉग में पधारें और हमसे जुड़ें |
काव्य का संसार
बहुत-२ शुक्रिया
Deleteतड़पाया उसने मुझको, हर रोज़ सजा दी,
ReplyDeleteयादों को भर है डाला -- हंथियार बनाके,
बहुत अच्छा लिखा है ...
शुभकामनायें ...
अनुपमा जी आपका स्नेह टिपण्णी के रूप में मिला शुक्रिया
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