नदियाँ कितनी -- आँखें मेरी बहाती हैं,
यादें तेरी गोदी में - - - जब झुलाती हैं,
थोड़ी-थोड़ी अब भी - उम्मीद है बाकी,
आजा तुझको साँसे - - मेरी बुलाती हैं,
बहता दरिया है- आफत का लहू बनके,
जब भी उलझन -- बातें तेरी बढ़ाती हैं,
सारे मेरे - - बेचैनी से --- भरे हैं दिन,
करवट - करवट में - रातें बीत जाती हैं,
बन गम मुझमें, बहता है प्रेम का सागर,
लहरें जीवन की -- जलती लौ बुझाती हैं,
होता मेरे है - - - जख्मों में - दर्द ज्यादा,
जब-जब काँटा -- - चीज़ें तेरी चुभाती हैं.
यादें तेरी गोदी में - - - जब झुलाती हैं,
थोड़ी-थोड़ी अब भी - उम्मीद है बाकी,
आजा तुझको साँसे - - मेरी बुलाती हैं,
बहता दरिया है- आफत का लहू बनके,
जब भी उलझन -- बातें तेरी बढ़ाती हैं,
सारे मेरे - - बेचैनी से --- भरे हैं दिन,
करवट - करवट में - रातें बीत जाती हैं,
बन गम मुझमें, बहता है प्रेम का सागर,
लहरें जीवन की -- जलती लौ बुझाती हैं,
होता मेरे है - - - जख्मों में - दर्द ज्यादा,
जब-जब काँटा -- - चीज़ें तेरी चुभाती हैं.
वाह ... बहुत खूब।
ReplyDeleteशुक्रिया सदा जी
ReplyDeleteबन गम मुझमें, बहता है प्रेम का सागर,
ReplyDeleteलहरें जीवन की -- जलती लौ बुझाती हैं,
KYA BAT HAE
शुक्रिया सर
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (30-09-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
आदरणीय शास्त्री सर तहे दिल से शुक्रिया
Deleteसुंदर रचना |
ReplyDeleteइस समूहिक ब्लॉग में पधारें और इस से जुड़ें |
काव्य का संसार
शुक्रिया प्रदीप जी
Deleteबहुत सुंदर !!
ReplyDeleteयादों के झूले पडे़ हैं
तुम चले आओ
इसको झूलना है
झुलाओ और झुलाओ !
शुक्रिया सुशील सर
Deleteशुक्रिया ओंकार सर
ReplyDeleteवाह...बहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया रश्मि जी
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब लिखा है....
ReplyDeleteतेरे खत को जो अपनी किताब में हमने पाया
मिले थे पहले पहल वो जमाना याद आया....
वाह शालिनी जी आपका जवाब नहीं बहुत ही उम्दा शेर है क्या बात है शुक्रिया
Delete