तबियत अपनी - जब हरी देखी,
मुहब्बत की - - - कारीगरी देखी,
मुहब्बत की - - - कारीगरी देखी,
उठा चाहत का -- जब पर्दा, मैंने,
नमी आँखों में थी --- भरी देखी,
नमी आँखों में थी --- भरी देखी,
भुला दूँ तुझको -- याद या रक्खूं,
दर्द उलझन --- हालत बुरी देखी,
दर्द उलझन --- हालत बुरी देखी,
खफा है धड़कन - सांस अटकी है,
गले में हलचल ---- खुरदरी देखी,
गले में हलचल ---- खुरदरी देखी,
सुर्ख रातें हैं ------ दिन बुझा सा है,
सुहानी शम्मा भी ------ मरी देखी,
सुहानी शम्मा भी ------ मरी देखी,
सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ||
बहुत-२ शुक्रिया रविकर सर आपका तहे दिल से धन्यवाद
Deleteवाह ... बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteबहुत-२ शुक्रिया सदा जी
Deleteक्या बात है अरुण, बहुत अच्छा लिखा है... वाकई मुहब्बत की कारीगरी अलग अलग रंग दिखाती है, कभी रुलाती है तो कभी हंसाती है.
ReplyDeleteशालिनी जी इस स्नेह के लिए शुक्रिया
Deleteमोहब्बत की कारीगरी का भी जवाब नहीं...बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteसंध्या जी बहुत-२ शुक्रिया
Deleteमोहब्बत की कारीगरी की लाजबाब प्रस्तुती,,,अरुण जी बधाई,,,
ReplyDeleteRECECNT POST: हम देख न सके,,,
शुक्रिया धीरेन्द्र सर
Deleteमोहोब्बत के अहसास को बयाँ करने की एक अच्छी कोशिश सुन्दर रचना |
ReplyDeleteShukriya Minakshi Mam
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteशुक्रिया वंदना जी
Deleteवाह.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गज़ल...
दाद कबूल करो.
अनु
अनु जी आपकी दाद तहे दिल से स्वीकार्य हैं आपकी इस दाद ने खुश कर दिया बहुत-२ शुक्रिया
Deleteबढ़िया कारीगरी ... उम्दा गज़ल
ReplyDeleteआदरणीया संगीता जी बहुत-२ शुक्रिया आपका
Deleteबहुत बेहतरीन...
ReplyDeleteलाजवाब....
:-)