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Monday, October 1, 2012

मुहब्बत की कारीगरी देखी

तबियत अपनी - जब हरी देखी,
मुहब्बत की - - - कारीगरी देखी,
 
उठा चाहत का -- जब पर्दा, मैंने,
नमी आँखों में थी ---  भरी देखी,
 
भुला दूँ तुझको -- याद या रक्खूं,
दर्द उलझन --- हालत बुरी देखी,
 
खफा है धड़कन - सांस अटकी है,
गले में हलचल ---- खुरदरी देखी,
 
सुर्ख रातें हैं ------ दिन बुझा सा है,
सुहानी शम्मा भी ------ मरी देखी,

19 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति |
    बधाई स्वीकारें ||

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    1. बहुत-२ शुक्रिया रविकर सर आपका तहे दिल से धन्यवाद

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  2. वाह ... बहुत ही बढिया।

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    1. बहुत-२ शुक्रिया सदा जी

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  3. क्या बात है अरुण, बहुत अच्छा लिखा है... वाकई मुहब्बत की कारीगरी अलग अलग रंग दिखाती है, कभी रुलाती है तो कभी हंसाती है.

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    1. शालिनी जी इस स्नेह के लिए शुक्रिया

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  4. मोहब्बत की कारीगरी का भी जवाब नहीं...बहुत खूबसूरत रचना

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    1. संध्या जी बहुत-२ शुक्रिया

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  5. मोहब्बत की कारीगरी की लाजबाब प्रस्तुती,,,अरुण जी बधाई,,,

    RECECNT POST: हम देख न सके,,,

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    1. शुक्रिया धीरेन्द्र सर

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  6. मोहोब्बत के अहसास को बयाँ करने की एक अच्छी कोशिश सुन्दर रचना |

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  8. वाह.....
    बहुत बढ़िया गज़ल...
    दाद कबूल करो.

    अनु

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    1. अनु जी आपकी दाद तहे दिल से स्वीकार्य हैं आपकी इस दाद ने खुश कर दिया बहुत-२ शुक्रिया

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  9. बढ़िया कारीगरी ... उम्दा गज़ल

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    1. आदरणीया संगीता जी बहुत-२ शुक्रिया आपका

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  10. बहुत बेहतरीन...
    लाजवाब....
    :-)

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