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Thursday, September 6, 2012

गम मेरा झलक गया

आँखों से जो हंसा तो सागर छलक गया,
सारा का सारा गम फिर मेरा झलक गया,

ना पलटी, ना ही देखा, इक भी बार मुझे,
मैं पीछे - पीछे उसके, मीलों तलक गया,
 
मेरी चिल्लाहट, ना मेरी आवाज सुनी,
धीरे - धीरे भारी, हो मेरा हलक गया,
 
इतना कुछ, पल दो पल में, मेरे संग हुआ,
बारिश ही बारिश, भर मुझमे फलक गया,
 
कुछ ऐसे दोस्तों, थी मेरी तकदीर जली,
चिंगारी भड़की सीने में, मैं बलक* गया.


*बलक = उबलना 

10 comments:

  1. बेवफाई की वेदना
    झलक रही है रचना में...
    संवेदनशील रचना...

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  2. वाह जी वाह !
    बहुत अच्छे बलके हो
    बलकना समझा गये
    अपना तो उबल ही रहे थे
    हमको भी उबलना बता गये !

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    1. वाह सुशील सर यह पहला कमेन्ट है आप मेरे ब्लॉग पर, आपकी सराहना के लिए और आशीर्वाद के लिए तहे दिल से शुक्रिया

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  3. कुछ ऐसे दोस्तों, थी मेरी तकदीर जली,
    चिंगारी भड़की सीने में, मैं बलक* गया. बलक बलक प्रेम अगन में झुलस गया वाह भाई! बहुत बढ़िया अशआर तमाम के तमाम कोई भी शैर भर्ती का नहीं सभी दिल से बलते हुए निकले हैं.आग बल रही है भाई इशक(इश्क) की बलने दो ,जा रही है रूठ के ,जाने दो ,कुछ दे कर ही गई ,अपना क्या ले गई ...

    शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
    क्या अपपठन (डिसलेक्सिया )और आत्मविमोह (ऑटिज्म )का भी इलाज़ है काइरोप्रेक्टिक में ?

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    1. शुक्रिया वीरेंद्र भाई

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  4. सुन्दर रचना |

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  5. बहुत-२ शुक्रिया आदरणीय रविकर सर

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  6. भावनाओं को बहुत सुन्दरता से पिरोया है आपने..

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