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Friday, October 12, 2012

मेरा दिल है सनकी

मेरा दिल है पागल,
मेरा दिल है सनकी,

करता है हरदम ही,
ये दिल अपने मन की,
 
खतरा है दिल जैसे,
दोस्ती है दुश्मन की,
 
सूरत है तुझ जैसी,
इस दिल में दुल्हन की,
 
मेरा ये पागलपन,
चाहत है धड़कन की,
 
मज़बूरी में जीना,
आदत है जीवन की,
 
किस्मत टूटी जैसे,
टूटे हर बरतन की,
 
यादों में है अब भी,
माँ मेरे बचपन की,
 
साँसों की बेबसी,
खातिर है यौवन की,
 
रिमझिम सी बौछारें,
गिरती हैं सावन की,
 
नम-२ सी हैं पलकें,
बारिश में नयनन की.

20 comments:

  1. बहुत खूब सूरत बेहतरीन रचना,,,,
    अरुणजी,,,वाह क्या बात है,,,,,

    MY RECENT POST: माँ,,,

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    1. आदरणीय धीरेन्द्र सर तहे दिल से शुक्रिया

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  2. वाह बहुत ही खूबसूरत रचना सुन्दर शब्द संयोजन |

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    1. बहुत-२ शुक्रिया मिनाक्षी जी

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (13-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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    1. आदरणीय शास्त्री आपको प्रणाम मेरी रचना तो स्थान मिला चर्चा मंच पर सर आपका तहे दिल से शुक्रिया

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  4. दिल तो ऐसा ही है..सुंदर प्रस्तुति !

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    1. तहे दिल से शुक्रिया आदरणीया संगीता जी

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  6. बहुत खूब अरुण जी..... दिल के अनेक रंग दिखा दिए आपने...
    बेवज़ह इल्ज़ाम पे इल्ज़ाम लगाये जाते हैं आप
    कभी सनकी तो कभी पागल, इसे बताए जाते हैं आप
    चेहरे पे मरता है तेरे, माजबूरी में धड़कता है
    लाचार दिल को, गुनहगार बताए जाते हैं आप

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    1. वाह क्या बात है शालिनी जी शुक्रिया

      क्या करूँ दिल ही मजबूर करता है,
      चाह के चाहत से दूर करता है,
      लाख कोशिश की औ समझाया भी,
      मगर मुझको गुस्से में चूर करता है.





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  7. किस्मत टूटी जैसे,
    टूटे हर बरतन की,

    यादों में है अब भी,
    माँ मेरे बचपन की,
    ..बहुत सुंदर प्रस्तुति !

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    1. तहे दिल से शुक्रिया कविता जी

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    1. बहुत-२ शुक्रिया अनामिका जी

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  9. ये पागल दिल....
    लेकिन है खूबसूरत...!

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    1. तहे दिल से शुक्रिया पूनम जी

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  10. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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    1. संजय भाई ये सब आपका स्नेह है.

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