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Sunday, October 14, 2012

बयां होती नहीं हालत

दिलों के खेल में अक्सर,
लगे है जान की लागत,
 
दर्द में रो रहा है दिल,
पड़ी है रोज की आदत,
 
कहीं है दूर कोई तो,
कहीं फिर आज है स्वागत,
 
लुटा है चैन जब से दिल,
लगे हर रात को जागत,
 
खड़ा हो चल नहीं सकता,
बचे इतनी नहीं ताकत,
 
जले जब याद दिल में वो,
बयां होती नहीं हालत....

11 comments:

  1. आदरणीय रविकर सर तहे दिल से शुक्रिया

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  2. बढ़िया लाजबाब प्रस्तुति |

    बेवफा, देखना एक दिन हम जरूर याद आयेगें,
    ये झूठ,फरेब,के आँसू हम छुपा के मुस्कुरायेगें,,,,,,,

    MY RECENT POST: माँ,,,

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    1. तहे दिल से शुक्रिया धीरेन्द्र सर

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  3. लुटा है चैन जब से दिल,
    लगे हर रात को जागत,

    खड़ा हो चल नहीं सकता,
    बचे इतनी नहीं ताकत,

    जले जब याद दिल में वो,
    बयां होती नहीं हालत....

    ऐसा ही होता है...!
    सुन्दर रचना....:)))

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    1. धन्यवाद पूनम जी आप रचना पसंद आई

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  4. दर्द में रो रहा है दिल,
    पड़ी है रोज की आदत,
    bahut khub kahaa...badhai..

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    1. बहुत-२ शुक्रिया सरिता जी

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  5. लुटा है चैन जब से दिल,
    लगे हर रात को जागत,
    ..........सुंदर रचना के लिए आपको बधाई

    संजय कुमार
    आदत….मुस्कुराने की
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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    1. बहुत-2 शुक्रिया संजय भाई

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