दिलों के खेल में अक्सर,
लगे है जान की लागत,
लगे है जान की लागत,
दर्द में रो रहा है दिल,
पड़ी है रोज की आदत,
पड़ी है रोज की आदत,
कहीं है दूर कोई तो,
कहीं फिर आज है स्वागत,
कहीं फिर आज है स्वागत,
लुटा है चैन जब से दिल,
लगे हर रात को जागत,
लगे हर रात को जागत,
खड़ा हो चल नहीं सकता,
बचे इतनी नहीं ताकत,
बचे इतनी नहीं ताकत,
जले जब याद दिल में वो,
बयां होती नहीं हालत....
बयां होती नहीं हालत....
आदरणीय रविकर सर तहे दिल से शुक्रिया
ReplyDeleteबढ़िया लाजबाब प्रस्तुति |
ReplyDeleteबेवफा, देखना एक दिन हम जरूर याद आयेगें,
ये झूठ,फरेब,के आँसू हम छुपा के मुस्कुरायेगें,,,,,,,
MY RECENT POST: माँ,,,
तहे दिल से शुक्रिया धीरेन्द्र सर
Deleteलुटा है चैन जब से दिल,
ReplyDeleteलगे हर रात को जागत,
खड़ा हो चल नहीं सकता,
बचे इतनी नहीं ताकत,
जले जब याद दिल में वो,
बयां होती नहीं हालत....
ऐसा ही होता है...!
सुन्दर रचना....:)))
धन्यवाद पूनम जी आप रचना पसंद आई
Deleteदर्द में रो रहा है दिल,
पड़ी है रोज की आदत,
bahut khub kahaa...badhai..
बहुत-२ शुक्रिया सरिता जी
Deleteभावपूर्ण रचना....
ReplyDelete:-)
शुक्रिया रीना जी
Deleteलुटा है चैन जब से दिल,
ReplyDeleteलगे हर रात को जागत,
..........सुंदर रचना के लिए आपको बधाई
संजय कुमार
आदत….मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बहुत-2 शुक्रिया संजय भाई
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