झेले कैसे-कैसे है,
घोटाले आवाम,
सोंची समझी साजिश है,
नेताओं का काम,
कुछ दिन की भागा-दौड़ी,
सालों तक आराम,
सीधी-सादी जनता है,
समझे ना पैगाम,
धोखा-जिल्लत-मक्कारी,
बेंचे हैं बेदाम,
घूमे पहने खाकी,कर
लाखों कत्लेआम ।।
घूमे पहने खाकी,कर
लाखों कत्लेआम ।।
नेता तो होते ही ऐसे हैं
ReplyDeleteअखंड सत्य है मित्र
Deleteबहुत बढ़िया अरुण जी-
ReplyDeleteरचते रहो ||
अनेक-2 धन्यवाद रविकर सर.
Deleteउम्दा कटाक्ष नेताओं पर,,,,
Deleteबहुत-2 शुक्रिया धीरेन्द्र सर.
Deleteएक सच ... बहुत ही अच्छा लिखा है
ReplyDeleteअनेक-2 धन्यवाद सदा जी.
Deleteसादर अभिवादन!
ReplyDelete--
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (27-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आदरणीय शास्त्री सर आपको सादर प्रणाम, मेरी रचना को चर्चामंच पर स्थान दिया अनेक धन्यवाद.
Deleteघुमे पहने खाकी,कर
ReplyDeleteलाखों कत्तलेआम !!
वाह क्या बात है अरुण जी ......... मजा आ गया सुन्दर पोस्ट
माशाल्ला ऐसे ही लिखते रहिये ... दिल खुश हो गया जी .
बहुत-2 शुक्रिया मित्र इस सराहना हेतू .
Deleteनेताओं का कच्चा चिटठा.... बहुत बढ़िया अरुण जी.
ReplyDeleteशुक्रिया शालिनी जी बहुत-2 शुक्रिया .....
Deleteबिल्कुल सहमत हर बात को बेझिजक कहने का खूबसूरत अंदाज़ अच्छा लगा |
ReplyDeleteआदरणीया सराहना और हौंसला आफजाई के लिए अनेक-2 धन्यवाद
Deleteसार्थक अभिव्यक्ति है भाई...
ReplyDelete:-)
अनेक-2 धन्यवाद रीना जी तहे दिल से शुक्रिया.
Deleteघुमे पहने खाकी,कर
ReplyDeleteलाखों कत्तलेआम !!
..बिलकुल सही कहा अरुण जी !
शुक्रिया संजय भाई
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