मरा गुमसुम मेरा दिल दिवाना पड़ा,
मुझे चाहत का भारी खजाना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
मुझे जल-2 के खुद को बुझाना पड़ा,
मुझे खुद को ही दुश्मन बनाना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
मुझे चाहत का भारी खजाना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
मुझे जल-2 के खुद को बुझाना पड़ा,
मुझे खुद को ही दुश्मन बनाना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
मुझे जख्मों से रिश्ता निभाना पड़ा,
मुझे खुद को ही पागल बताना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
मुझे नींदों से खुद को उठाना पड़ा,
मुझे ख्वाबों को जिन्दा जलाना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
मुझे अंखियों से सागर बहाना पड़ा,
मुझे खुशियों से दामन छुडाना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
मुझे धड़कन पे ताला लगाना पड़ा,
मुझे साँसों को मरना सिखाना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
बढ़िया सीरीज चल रही है-
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुतियां-
इसके लिए भी बधाई ||
रविकर सर आप सभी के आशीर्वाद का नतीजा है. शुक्रिया
Deleteतेरे नैनों से नयना मिलाने के बाद,,,,बहुत सुंदर पंक्तियाँ,,,अरुण जी,,,,
ReplyDeleteRECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
धीरेन्द्र सर बहुत-२ शुक्रिया
Deletenice blog ............
ReplyDeleteThanks alot Shashi Ji
Deleteमुझे जख्मों से रिश्ता निभाना पड़ा,
ReplyDeleteमुझे खुद को ही पागल बताना पड़ा, बहुत खूब!
शुक्रिया शालिनी जी
Deleteजाने क्यूँ कविता दिलको छू लेने वाली है ।
ReplyDeleteशुक्रिया संजय भाई
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