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Saturday, November 24, 2012

दिल था कच्चा - चटक गया

दिल था कच्चा, चटक गया,
मैं इस पथ में, भटक गया,

बंजर भी हूँ, विरान भी,
हरियाली को, खटक गया,

खंजर-चाकू,चली छुरी,
तेरी सुध में, अटक गया,

जर्जर दिल की, दिवार है,
नैना पानी, पटक गया,  

वश में धड़कन, नहीं रही,
दिल तो साँसे, गटक गया,

खुशियों में हाँथ, थाम के,
गम में आकर, झटक गया,

रूठा जब रब "अरुन" का,
कर से जीवन, छटक गया।।

22 comments:

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    1. बहुत-2 शुक्रिया धीरेन्द्र सर

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  2. -ओह
    तो ऐसे भी बहर को एडजस्ट कर सकते हैं-
    आभार अरुण जी ||

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    1. रविकर यह तो मुझे भी ज्ञात नहीं है की बहर को एडजस्ट कैसे करते हैं. जो दिल में आता है वही लिख लेता हूँ. अनेक-2 धन्यवाद....

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  3. बंजर भी हूँ, विरान भी,
    हरियाली को, खटक गया,

    ...वाह! बहुत प्रभावी अहसास... सुंदर गजल

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    1. अनेक-2 धन्यवाद आदरणीय कैलाश सर

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  4. दिल तो बच्‍चा है जी अटक गया तो अटक गया

    फेसबुक थीम को बदले

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  5. बहुत ख़ूब!
    आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 26-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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    1. तहे दिल से शुक्रिया ग़ाफ़िल सर

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  6. बढ़िया अरुण लिखते रहो ... :)

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  7. खूबसूरत प्रस्तुति ! मन की भावनाओं को शिद्दत से अभिव्यक्ति दी है आपने ! शुभकामनायें !

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    1. ह्रदय के अन्तःस्थल से आभार आदरणीया साधना जी

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  8. बंजर भी हूँ, विरान भी,
    हरियाली को, खटक गया,
    बेहद गहन भाव हैं इन पंक्तियों के ... लाजवाब प्रस्‍तुति

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  9. चलो भाई आज से हम भी आने लगे आपके ब्लॉग पर। लेखन शैली आपकी, है बड़ी कमाल की।

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    1. बहुत-2 शुक्रिया आमिर भाई

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  10. वश में धड़कन, नहीं रही,
    दिल तो साँसे, गटक गया,

    क्या बात अनंत अरुण जी ,दिल तो पागल है ,तुसी तो न बनो ,...बढ़िया लिख रहे हो दोस्त दिल से बचके रहना ,सुनों मत इसका कहना .

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    1. अनेक-2 धन्यवाद आदरणीय वीरेंद्र सर

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