दिल था कच्चा, चटक गया,
मैं इस पथ में, भटक गया,
बंजर भी हूँ, विरान भी,
हरियाली को, खटक गया,
खंजर-चाकू,चली छुरी,
तेरी सुध में, अटक गया,
जर्जर दिल की, दिवार है,
नैना पानी, पटक गया,
वश में धड़कन, नहीं रही,
दिल तो साँसे, गटक गया,
खुशियों में हाँथ, थाम के,
गम में आकर, झटक गया,
रूठा जब रब "अरुन" का,
कर से जीवन, छटक गया।।
वाह,,,,बहुत सुंदर ,,,,
ReplyDeleterecent post : प्यार न भूले,,,
बहुत-2 शुक्रिया धीरेन्द्र सर
Delete-ओह
ReplyDeleteतो ऐसे भी बहर को एडजस्ट कर सकते हैं-
आभार अरुण जी ||
रविकर यह तो मुझे भी ज्ञात नहीं है की बहर को एडजस्ट कैसे करते हैं. जो दिल में आता है वही लिख लेता हूँ. अनेक-2 धन्यवाद....
Deleteबंजर भी हूँ, विरान भी,
ReplyDeleteहरियाली को, खटक गया,
...वाह! बहुत प्रभावी अहसास... सुंदर गजल
अनेक-2 धन्यवाद आदरणीय कैलाश सर
Deleteशानदार रचना.
ReplyDeleteबहुत-2 शुक्रिया अमित जी
Deleteदिल तो बच्चा है जी अटक गया तो अटक गया
ReplyDeleteफेसबुक थीम को बदले
सत्य है मित्र
Deleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 26-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
तहे दिल से शुक्रिया ग़ाफ़िल सर
Deleteबढ़िया अरुण लिखते रहो ... :)
ReplyDeleteशुक्रिया सुमन जी
Deleteखूबसूरत प्रस्तुति ! मन की भावनाओं को शिद्दत से अभिव्यक्ति दी है आपने ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteह्रदय के अन्तःस्थल से आभार आदरणीया साधना जी
Deleteबंजर भी हूँ, विरान भी,
ReplyDeleteहरियाली को, खटक गया,
बेहद गहन भाव हैं इन पंक्तियों के ... लाजवाब प्रस्तुति
अनेक-2 धन्यवाद सदा दी
Deleteचलो भाई आज से हम भी आने लगे आपके ब्लॉग पर। लेखन शैली आपकी, है बड़ी कमाल की।
ReplyDeleteबहुत-2 शुक्रिया आमिर भाई
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ReplyDeleteवश में धड़कन, नहीं रही,
दिल तो साँसे, गटक गया,
क्या बात अनंत अरुण जी ,दिल तो पागल है ,तुसी तो न बनो ,...बढ़िया लिख रहे हो दोस्त दिल से बचके रहना ,सुनों मत इसका कहना .
अनेक-2 धन्यवाद आदरणीय वीरेंद्र सर
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