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Wednesday, November 28, 2012

इन दिनों - भाग चार

बिखरा है टूटा सारा, सामान इन दिनों,
आया है मेरे घर फिर, तूफ़ान इन दिनों,

लुट कर पहले खुद फिर,सबकुछ लुटा गया, 
चाहा है मेरे दिल ने, नुकसान इन दिनों,

जालिम वो जाजिब, है अपनी ओर खींचता,
लगता है बदला वो, बेईमान इन दिनों,

उरियां है सारा जीवन, बेजान सा लगे,
रूठा है मेरा मुझसे, भगवान इन दिनों,

दूरी की डोर नादिर है, गांठ दरमियाँ,
लगती हैं दिल राहें, सुनसान इन दिनों,

नैना हैं तेरे चाकू, दें घाव जब चले,  
लगता है लेकर छोड़ेंगे, जान इन दिनों,

बाजीचा हूँ, तेरी हांथों का नचा मुझे,
जिन्दा हूँ, मैं हूँ फिरभी,बेजान इन दिनों,


जाजिब-आकर्षक , उरियां-शून्य, नादिर-दुर्लभ,
बाजीचा-खिलौना 

15 comments:

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    1. बहुत-2 शुक्रिया रविकर सर

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  2. बहुत खूब अरुण जी !

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  3. सुन्दर रचना ।

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  4. आदरणीय शायर महोदय ,
    इतना सुन्दर लिखने के लिए आमिर की तरफ से भी बधाई कबूल कीजिये। नज्म वाकई काफी अच्छी लिखी है। एक बार नही बल्कि कई बार पढ़ा ,तब जाकर दिल भरा। इसी तरह मिसरे से मिसरे बनाते रहिये ,नज्म खुद बा खुद बन जाती है। एक बात का ख़ास ख्याल रखें ,की नज्म की भाषा एक ही रहे।कहीं उर्दू कहीं हिंदी ,में सही मेच नही बैठता। उम्मीद है की आप बुरा नही मानेंगे। आपको मेरी शुभकामनायें। इसी तरह लेखन का सफ़र जारी रखें।

    मोहब्बत नामा
    मास्टर्स टेक टिप्स
    इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड

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    1. शुक्रिया आमिर भाई, आगे से ध्यान रखूँगा

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  5. बहुत ही बढ़िया गजल लिखते हैं आप..
    बेहतरीन बेहतरीन....
    :-)

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  6. शुक्रिया सदा दीदी

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  7. शब्द शब्द अपने आप में भाव समेटे हुए

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    1. अनेक-2 धन्यवाद संजय भाई

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