बिखरा है टूटा सारा, सामान इन दिनों,
आया है मेरे घर फिर, तूफ़ान इन दिनों,
लुट कर पहले खुद फिर,सबकुछ लुटा गया,
चाहा है मेरे दिल ने, नुकसान इन दिनों,
जालिम वो जाजिब, है अपनी ओर खींचता,
लगता है बदला वो, बेईमान इन दिनों,
उरियां है सारा जीवन, बेजान सा लगे,
रूठा है मेरा मुझसे, भगवान इन दिनों,
दूरी की डोर नादिर है, गांठ दरमियाँ,
लगती हैं दिल राहें, सुनसान इन दिनों,
नैना हैं तेरे चाकू, दें घाव जब चले,
लगता है लेकर छोड़ेंगे, जान इन दिनों,
बाजीचा हूँ, तेरी हांथों का नचा मुझे,
जिन्दा हूँ, मैं हूँ फिरभी,बेजान इन दिनों,
जाजिब-आकर्षक , उरियां-शून्य, नादिर-दुर्लभ,
बाजीचा-खिलौना
बहुत बढ़िया ||
ReplyDeleteबहुत-2 शुक्रिया रविकर सर
Deleteवाह,,,बहुत खूब,,अरुन जी,,,
ReplyDeleteresent post : तड़प,,,
धन्यवाद धीरेन्द्र सर
Deleteबहुत खूब अरुण जी !
ReplyDeleteशुक्रिया शालिनी जी
Deleteसुन्दर रचना ।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप भाई
Deleteआदरणीय शायर महोदय ,
ReplyDeleteइतना सुन्दर लिखने के लिए आमिर की तरफ से भी बधाई कबूल कीजिये। नज्म वाकई काफी अच्छी लिखी है। एक बार नही बल्कि कई बार पढ़ा ,तब जाकर दिल भरा। इसी तरह मिसरे से मिसरे बनाते रहिये ,नज्म खुद बा खुद बन जाती है। एक बात का ख़ास ख्याल रखें ,की नज्म की भाषा एक ही रहे।कहीं उर्दू कहीं हिंदी ,में सही मेच नही बैठता। उम्मीद है की आप बुरा नही मानेंगे। आपको मेरी शुभकामनायें। इसी तरह लेखन का सफ़र जारी रखें।
मोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
शुक्रिया आमिर भाई, आगे से ध्यान रखूँगा
Deleteबहुत ही बढ़िया गजल लिखते हैं आप..
ReplyDeleteबेहतरीन बेहतरीन....
:-)
शुक्रिया रीना जी
Deleteशुक्रिया सदा दीदी
ReplyDeleteशब्द शब्द अपने आप में भाव समेटे हुए
ReplyDeleteअनेक-2 धन्यवाद संजय भाई
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