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Friday, December 14, 2012

बूढ़े बाबा की दीवानी

मोटी - मोटी चादर तानी,
फिर भी भीतर घुसकर मानी,
 
जाड़े की जारी मनमानी,
बूढ़े बाबा की दीवानी,
 
दादा - दादी, नाना - नानी,
कहते बख्शो ठंडक रानी,
 
रविकर किरणें आनी जानी,
पावक लगती ठंडा पानी
 
देखो जिद मौसम ने ठानी,
बारिश करके की शैतानी,
 
राहें सब जानी पहचानी,
कुहरे ने कर दी अनजानी,
 
बंधू बोलो मीठी वानी,
सबके मन को है ये भानी.

16 comments:

  1. सारी ऋतुएं जानी-पहचानी
    सब करती अपनी मनमानी
    वाह वाह... अति सुन्दर...

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    1. हार्दिक आभार संध्या दी

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  2. 18/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. Replies
    1. आभार आदरणीय धीरेन्द्र सर

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  4. मित्रों!
    13 दिसम्बर से 16 दिसम्बर तक देहरादून में प्रवास पर हूँ!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (16-12-2012) के चर्चा मंच (भारत बहुत महान) पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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    1. ह्रदय के अन्तःस्थल से अनेक-2 धन्यवाद आदरणीय शास्त्री सर

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  5. "मोटी- मोटी चादर तानी" पर यहाँ तो रजाई में भी घुस गयी है ये ठंढक रानी। बहुत खूब अनंत जी

    बधाई स्वीकारें।

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  6. बंधू बोलो मीठी वानी,
    सबके मन को है ये भानी.,bahut sundr Arun beta

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    1. तहे दिल से आभार आदरणीया रेखा माँ

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  7. बहुत बढियाँ...
    सर्द ऋतुओं की करामात....
    :-)

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