"ओ बी ओ तरही मुशायरा" अंक ३० में शामिल मेरी पहली ग़ज़ल.
दिल्लगी यार की बेकार हुनर करती है,
मार के चोट वो गम़ख्व़ार फ़िकर करती है,
इन्तहां याद की जब पार करे हद यारों,
रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है,
आरजू है की तुझे भूल भुला मैं जाऊं,
चाह हर बार तेरी पास मगर करती है,
देखने की तुझे न चाह न कोई हसरत,
माफ़ करना जो ये गुस्ताख नज़र करती है,
मुश्किलें दूर कहीं छोड़ मुझे ना जाएँ,
जिंदगी मौत के कदमो पे सफ़र करती है,
सामने प्यार बहुत और बुराई पीछे,
इक यही बात तेरी दिल पे असर करती है.
गम़ख्व़ार - दिलासा देते हुए
दिल्लगी यार की बेकार हुनर करती है,
मार के चोट वो गम़ख्व़ार फ़िकर करती है,
इन्तहां याद की जब पार करे हद यारों,
रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है,
आरजू है की तुझे भूल भुला मैं जाऊं,
चाह हर बार तेरी पास मगर करती है,
देखने की तुझे न चाह न कोई हसरत,
माफ़ करना जो ये गुस्ताख नज़र करती है,
मुश्किलें दूर कहीं छोड़ मुझे ना जाएँ,
जिंदगी मौत के कदमो पे सफ़र करती है,
सामने प्यार बहुत और बुराई पीछे,
इक यही बात तेरी दिल पे असर करती है.
गम़ख्व़ार - दिलासा देते हुए
ह्रदय के अन्तःस्थल से आभार सर
ReplyDeleteबढ़िया गजल कही है .
ReplyDeleteमुश्किलें दूर कहीं छोड़ मुझे ना जाएँ,
जिंदगी मौत के कदमो पे सफ़र करती है,
सामने प्यार बहुत और बुराई पीछे,
इक यही बात तेरी दिल पे असर करती है.
गम़ख्व़ार - दिलासा देते हुए
आदरणीय वीरेंद्र सर आपका बढ़िया कहना ही हौसला बढ़ा देता है हार्दिक बधाई
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ReplyDeleteसामने प्यार बहुत और बुराई पीछे,
इक यही बात तेरी दिल पे असर करती है
ये शेर बड़ा ही दिलकश है। बहुत सुन्दर अरुण।
शुक्रिया भाई जान बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteलाजवाब ग़ज़ल... सच है... ज़िन्दगी मौत के क़दमों पे सफ़र करती है...
ReplyDeleteआभार संध्या दीदी
Deleteबहुत खूब सुंदर गजल ,,,,अरुनजी
ReplyDeleterecent post : नववर्ष की बधाई
धन्यवाद आदरणीय धीरेन्द्र सर
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteमधु जी तहे दिल शुक्रिया
Deleteआपकी कविता मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गई। मेरी कामना है कि आप अहर्निश सृजनरत रहें। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। न्यवाद।
ReplyDeleteआदरणीय आप यहाँ आये मेरा मनोबल बढ़ा है, आपका कथन सुखद एवं प्रेरणादाई है हार्दिक आभार.
Deleteअरुण ब्लॉग स्पेम चेक रहा करो। कई कमेंट्स उसमे रोजाना चले जाते हैं।
ReplyDeleteभाईजान रोजाना चेक करता हूँ
Deleteदेखने की तुझे न चाह न कोई हसरत,
ReplyDeleteमाफ़ करना जो ये गुस्ताख नज़र करती है ..
वाह क्या बट है ... लाजवाब शेर ... कसूर तो नज़रों का ही होता है ...
तहे दिल से आभार आदरणीय नासवा सर
Deleteकई दिनों से मैं ब्लॉग की दुनियां से कटा कटा रहा ... तो मैं आपकी पोस्ट पर नही आ पाया ...
ReplyDeleteवीर जी आपकी गजल बड़ी शानदार लगी ...
सामने प्यार बहुत और बुराई पीछे
इक यही बात तेरी दिल प' असर करती है।
कितनी चुभने वाली बात किस शालीनता से कह डाली। ..वाह
यहाँ पर आपका इंतजार रहेगा : शहरे-हवस
रोहित भाई आपका तहे दिल से शुक्रिया, आपको सापरिवर सहित नव वर्ष की ढेरों शुभकामनायें
Deleteमुश्किलें दूर कहीं छोड़ मुझे ना जाएँ,
ReplyDeleteजिंदगी मौत के कदमो पे सफ़र करती है,
...वाह! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..
आभार आदरणीय कैलाश सर आपको सापरिवर सहित नव वर्ष की ढेरों शुभकामनायें
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