कारवाँ ठंडी हवा का आ गया है।
धुंध हल्का कोहरा भी छा गया है।। 1
धुंध हल्का कोहरा भी छा गया है।। 1
राह नज़रों को नहीं आती नज़र अब।
कौन है जो रास्तों को खा गया है।। 2
कौन है जो रास्तों को खा गया है।। 2
पांव ठंडे, हाँथ ठंडे - थरथराते।
जान पर जुल्मी कहर बरसा गया है।। 3
जान पर जुल्मी कहर बरसा गया है।। 3
पास घर दौलत नहीं रोटी न कपड़े।
कुछ नसीबा मुश्किलों को भा गया है।। 4
कुछ नसीबा मुश्किलों को भा गया है।। 4
घिर रही घनघोर काली है घटा फिर।
वर्फबारी कर ग़ज़ब रब ढा गया है।। 5
वर्फबारी कर ग़ज़ब रब ढा गया है।। 5
बोल बाला मर्ज का फिर से जगा है।
सर्द सोया दर्द भी भड़का गया है।। 6
सर्द सोया दर्द भी भड़का गया है।। 6
घिर रही घनघोर काली है घटा फिर।
ReplyDeleteवर्फबारी कर ग़ज़ब रब ढा गया है।। 5
behatreen
बेहतरीन आनुप्रासिक प्रस्तुति .शुक्रिया आपकी स्नेह पूर्ण टिपण्णी का .दिनानुदिन निखार पर हैं शबाब पर हैं आपकी गजलें माशूकाएं .आशिकी .
आदरणीय वीरेंद्र सर सराहना व आशीष हेतु अनेक-2 धन्यवाद
Deleteघिर रही घनघोर काली है घटा फिर
ReplyDeleteवर्फबारी कर ग़ज़ब रब ढा गया है...
बहुत खूब अरुण जी ... लाजवाब शेर है इस गज़ल का ... सुन्दर प्रयोग बर्फ़बारी का ..
अनेक-2 धन्यवाद दिगम्बर सर
Deleteबेहतरीन ....
ReplyDeleteशुक्रिया शालिनी जी
Deleteआपके ठंडी हवा का कारवाँ बहुत बढियां है..
ReplyDeleteबेहतरीन गजल...
:-)
शुक्रिया रीना जी
Deleteएक और गजब की गजल। 4 व 5 न. शेर तो कमाल के हैं।
ReplyDeleteशुक्रिया मित्र रोहित
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