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Monday, December 10, 2012

शीत डाले ठंडी बोरियाँ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 26 के लिए लिखी रचना "हेमंत ऋतु" पर आधारित

देख माथे की शिकन औ त्योरियाँ,
शीत डाले ढेर ठंडी बोरियाँ,

गोद में अपनी लिटाकर सूर्य को,
गुनगुनाती है सुनाती लोरियाँ,

धुंध को फैला रही है राह में,
बांधती है मुश्किलों की डोरियाँ,

बादलों के बाद रखती आसमां,
धूप की ऐसे करे है चोरियाँ,

सुरसुरी बहती पवन झकझोर दे,
काम खुल्लेआम सीनाजोरियाँ.

13 comments:

  1. वाह ... बेहतरीन

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  2. वाह... बहुत सुन्दर.. खास तौर पर गोद में लिटाकर सूर्य को.... बहुत अच्छी लगी... शुभकामनायें

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  3. बादलों के बाद रखती आसमां,
    धूप की ऐसे करे है चोरियाँ,
    ,,,,,,,,,,,,,,,,in panktiyo ka jwab nahi bhai bahut khoob

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  4. वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  5. धन्यवाद आदरणीया संगीता जी

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  6. देख माथे की शिकन औ त्योरियाँ,
    शीत डाले ढेर ठंडी बोरियाँ,

    गोद में अपनी लिटाकर सूर्य को,
    गुनगुनाती है सुनाती लोरियाँ,

    वाऽह ! वाऽह ! वाऽऽह !
    क्या बात है !बहुत खूब !

    अरुन शर्मा 'अनंत' जी
    आनंद आ गया । इस रचना के प्रवाह ने तबीयत ख़ुश करदी …


    शुभकामनाओं सहित…

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    1. राजेंद्र स्वर्णकार सर सराहना हेतु आभार

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  7. शीत पर क्या खूब है रचना लिखी
    पंक्तियाँ लगती हैं नटखट छोरियाँ |

    वाह! सुंदर प्रतीकों का अभिनव प्रयोग हुआ है.बधाई.

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    1. आदरणीय अरुण सर अपना आशीष यूँ ही बनाये रखें

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