"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 26 के लिए लिखी रचना "हेमंत ऋतु" पर आधारित
देख माथे की शिकन औ त्योरियाँ,
शीत डाले ढेर ठंडी बोरियाँ,
गोद में अपनी लिटाकर सूर्य को,
गुनगुनाती है सुनाती लोरियाँ,
धुंध को फैला रही है राह में,
बांधती है मुश्किलों की डोरियाँ,
बादलों के बाद रखती आसमां,
धूप की ऐसे करे है चोरियाँ,
सुरसुरी बहती पवन झकझोर दे,
काम खुल्लेआम सीनाजोरियाँ.
वाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteशुक्रिया सदा दी
Deleteवाह... बहुत सुन्दर.. खास तौर पर गोद में लिटाकर सूर्य को.... बहुत अच्छी लगी... शुभकामनायें
ReplyDeleteशुक्रिया संध्या दी
Deleteबादलों के बाद रखती आसमां,
ReplyDeleteधूप की ऐसे करे है चोरियाँ,
,,,,,,,,,,,,,,,,in panktiyo ka jwab nahi bhai bahut khoob
धन्यवाद संजय भाई
Deleteवाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteधन्यवाद चतुर्वेदी सर
Deleteधन्यवाद आदरणीया संगीता जी
ReplyDeleteदेख माथे की शिकन औ त्योरियाँ,
शीत डाले ढेर ठंडी बोरियाँ,
गोद में अपनी लिटाकर सूर्य को,
गुनगुनाती है सुनाती लोरियाँ,
वाऽह ! वाऽह ! वाऽऽह !
क्या बात है !बहुत खूब !
अरुन शर्मा 'अनंत' जी
आनंद आ गया । इस रचना के प्रवाह ने तबीयत ख़ुश करदी …
शुभकामनाओं सहित…
राजेंद्र स्वर्णकार सर सराहना हेतु आभार
Deleteशीत पर क्या खूब है रचना लिखी
ReplyDeleteपंक्तियाँ लगती हैं नटखट छोरियाँ |
वाह! सुंदर प्रतीकों का अभिनव प्रयोग हुआ है.बधाई.
आदरणीय अरुण सर अपना आशीष यूँ ही बनाये रखें
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