संकल्प है अंधेर की नगरी मिटानी है,
संकल्प है अपमान की गर्दन उड़ानी है,
दुश्मन हो बेशक मेरी लेखनी समाज की,
संकल्प है इन्सान की सीमा बतानी है,
अंग्रेज जिस तरह से हिंदी को खा रहे,
संकल्प है अंग्रेजों को हिंदी सिखानी है,
बहरे हुए हैं जो-जो अंधों के राज में,
संकल्प है आवाज की ताकत दिखानी है,
रीति -रिवाज भूले फैशन के दौर में,
संकल्प है आदर की चादर बिछानी है,
भटकी है युवा पीढ़ी दौलत की चाह में,
संकल्प है शिक्षा की सही लौ जलानी है....
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवार के चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteआदरणीय रविकर आभारी हूँ धन्यवाद
Deleteवाह...बहुत ही शानदार संकल्प है अरुण..ईश्वर करे आपका संकल्प ज़रूर पूरा हो!
ReplyDeleteशुक्रिया शालिनी जी
Deletebahut acchi rachna ...
ReplyDeleteकाश,,,आपका ये संकल्प का सपना साकार हो,,,
ReplyDeleteबहुत उम्दा ,,,,बधाई अरुन जी,,,,,
धन्यवाद आदरणीय धीरेन्द्र सर
Deletesundar bhav,behatareen prastuti,samaj ko nyee disha ki taraf le jane ki chaht se bhari rachna
ReplyDeleteधन्यवाद मधु जी
Deleteउत्कृष्ट प्रस्तुति,
ReplyDeleteबहुत ख़ूब वाह!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय ग़ाफिल सर
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ReplyDeleteबहरे हुए हैं जो-जो अंधों के राज में,
संकल्प है आवाज की ताकत दिखानी है
बहरा राजा ,गूंगी रानी
दिल्ली की अब यही कहानी .
बहुत बढ़िया रचना है अनंत भाई .
धन्यवाद आदरणीय वीरेन्द्र सर
Deleteहर भारतीयों को सही संकल्प लेने का समय आ चूका है। प्रेरणाप्रद रचना,आभार।
ReplyDeleteआभार राजेंद्र सर
Deleteवाह एक और बेहतरीन गज़ल ...पढ़कर दिल गार्डन-गार्डन हो गया।
ReplyDeleteआभार रोहित भाई
Deleteनारद उठाओ प्रभु को किस्सा सुनाओ,
ReplyDeleteकलियुग मेरे भगवान अब तत्काल बदलो.
आपकी रचना बहुत अच्छी है :))
(या हम उठा लें हथियार तो दोषी मत मानना
??)
धन्यवाद विभा जी
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