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Monday, April 1, 2013

ग़ज़ल : अगर मांगने में तू सच्चा हुआ है

वज्न : १२२ , १२२ , १२२ , १२२ 
बहर : मुतकारिब मुसम्मन सालिम

झपकती पलक और लगती दुआ है,
अगर मांगने में तू सच्चा हुआ है,

जखम हो रहे दिन ब दिन और गहरे,
नयन की कटारी ने दिल को छुआ है,

नहीं बच सकेगा जतन लाख कर ले,
नसीबा ने खेला सदा ही जुआ है,

न बरसात ठहरी न मैं रात सोया,
कि रह रह के छप्पर सुबह तक चुआ है,

सुखों का गरीबों के घर ना ठिकाना,
दुखों ने मुफत में भरी बद - दुआ है .

10 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति |
    शुभकामनायें -

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  2. बहुत ही बेहतरीन और भावपूर्ण ग़ज़ल की प्रस्तुति,अतिसुन्दर मित्रवर.

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  3. सुखों का गरीबों के घर ना ठिकाना,
    दुखों ने मुफत में भरी बद - दुआ है .
    ...सच कहा आपने सुख भी घर देखकर आता है घर में ..

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  4. आज आपके ब्लॉग पर आने का थोड़ा सा समय मिला है ...
    ये गज़ल ग़जब की हैं। सभी शेर बढ़िया हैं

    पधारिये :  किसान और सियासत

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  5. अनंत जी बहुत ही बढ़िया रचना ...

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  6. सुखों का गरीबों के घर ना ठिकाना,
    दुखों ने मुफत में भरी बद - दुआ है .--अनंत जी बहुत ही सच कहा आपने
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