वज्न : १२२ , १२२ , १२२ , १२२
बहर : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
बहर : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
झपकती पलक और लगती दुआ है,
अगर मांगने में तू सच्चा हुआ है,
जखम हो रहे दिन ब दिन और गहरे,
नयन की कटारी ने दिल को छुआ है,
नहीं बच सकेगा जतन लाख कर ले,
नसीबा ने खेला सदा ही जुआ है,
न बरसात ठहरी न मैं रात सोया,
कि रह रह के छप्पर सुबह तक चुआ है,
सुखों का गरीबों के घर ना ठिकाना,
दुखों ने मुफत में भरी बद - दुआ है .
बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteशुभकामनायें -
बहुत ही बेहतरीन और भावपूर्ण ग़ज़ल की प्रस्तुति,अतिसुन्दर मित्रवर.
ReplyDeletesundar gajal , badhai arun ji
ReplyDeleteसुखों का गरीबों के घर ना ठिकाना,
ReplyDeleteदुखों ने मुफत में भरी बद - दुआ है .
...सच कहा आपने सुख भी घर देखकर आता है घर में ..
बहुत उम्दा गजल,,,,अरुन जी,,,
ReplyDeleteRecent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग
आज आपके ब्लॉग पर आने का थोड़ा सा समय मिला है ...
ReplyDeleteये गज़ल ग़जब की हैं। सभी शेर बढ़िया हैं
पधारिये : किसान और सियासत
beshak ak behatareen gazal
ReplyDeleteअनंत जी बहुत ही बढ़िया रचना ...
ReplyDeleteसुखों का गरीबों के घर ना ठिकाना,
ReplyDeleteदुखों ने मुफत में भरी बद - दुआ है .--अनंत जी बहुत ही सच कहा आपने
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Wah.. Sundar ghazal Anant ji.. Congrats :)
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