"पाखण्ड" पर आधारित कुछ दोहे
ओ बी ओ महोत्सव अंक ३२ वें में विषय "पाखण्ड" पर आधारित कुछ दोहे.
लोभी पहने देखिये, पाखण्डी परिधान ।
चिकनी चुपड़ी बात में, क्यों आता नादान ।।
नित पाखण्डी खेलता, तंत्र मंत्र का खेल ।
अपनी गाड़ी रुक गई, इनकी दौड़ी रेल ।।
पंडित बाबा मौलवी, जोगी नेता नाम ।
पाखण्डी ये लोग हैं, धोखा इनका काम ।।
खुलके बच्चा मांग ले, आया है दरबार ।
भेंट चढ़ा दे प्रेम से, खुश होगा परिवार ।।
होते पाखंडी सभी, बड़े पैंतरे बाज ।
धीरे धीरे हो रहा, इनका बड़ा समाज ।।
हींग लगे न फिटकरी, धंधा भाये खूब ।
इनकी चांदी हो गई, निर्धन गया है डूब ।।
ठग बैठा पोशाक में, बना महात्मा संत ।
अपनी झोली भर रहा, कर दूजे का अंत ।।
क्या बात है, समाज की हकीकत को बेपर्दा करते दोहे।
ReplyDeleteबहुत सुंदरॉ
मीडिया के भीतर की बुराई जाननी है, फिर तो जरूर पढिए ये लेख ।
हमारे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर। " ABP न्यूज : ये कैसा ब्रेकिंग न्यूज ! "
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/abp.html
आपकी यह रचना कल गुरुवार (13-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteसार्थक और सुंदर दोहे।
ReplyDeleteबहुत ख़ूब, क्या धोया है।
ReplyDeleteखुलके बच्चा मांग ले, आया है दरबार ।
ReplyDeleteभेंट चढ़ा दे प्रेम से, खुश होगा परिवार।।
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वत्स कहीं आपके घर में भी किसी बाबा का शुभाशीष तो नहीं फलीभूत होगा।
--
बहुत सुन्दर सीखदेते बढ़िया दोहे!
आपकी यह प्रस्तुति कल चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteधन्यवाद
कमाल के सुंदर दोहे ,, बधाई अरुन जी
ReplyDeleteप्यार से धोना इसे कहते है..मजा आ गया.....साभार
ReplyDeleteप्यार से धोना इसे कहते है..मजा आ गया.....साभार
ReplyDeleteआजकल के मौसम पर सटीक पंक्तियाँ , कलियुग इसी को कहा जाता होगा !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दोहे ........बदलते समाज को समर्पित ........
ReplyDeleteसटीक अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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सुन्दर कटाक्षपूर्ण दोहे !!
ReplyDeleteयही सब हो रहा है हमारे समाज में लोग जानते - बूझते हुए भी इनके चंगुल में फंसते जा रहे हैं, और फल-फूल रहा है ढोंगियों का कारोबार...
ReplyDeleteसार्थक दोहे ... शुभकामनायें
आज के परिप्रेक्ष्य में एक एक दोहा सटीक निशाने पे लगा है !!
ReplyDeleteआशा करता हूँ आपका ये प्रयास जारी रहेगा !!
बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन !!
क्या बात है !!
ReplyDeleteसामयिक दोहे
समाज में बढ़ते पाखंड को सच्चे अर्थों में दर्शाते दोहे ....अति सुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन व्यंग्य विडंबन दोहावली रूप में .शुक्रिया हमारी चर्चा मंच प्रविष्ठी पर
ReplyDeleteअच्छे दोहे ... आज के हालात पे सटीक तप्सरा ...
ReplyDeleteमज़ा आया पढ़ के ...
आप बहुत सुन्दर ,सार्थक लिखते हैं ..
ReplyDeleteबहुत शुभ कामनाओं के साथ
ज्योत्स्ना शर्मा
बहुत सुन्दर दोहे..बेहतरीन व्यंग्य
ReplyDeleteजवाब नहीं इस रचना का..
ReplyDeleteबेहतरीन..बेहतरीन...
:-)