आइये आपका स्वागत है

Saturday, November 21, 2015

ग़ज़ल: दूरियों का फैसला स्वीकार इस अनुबंध पर

दूरियों का फैसला स्वीकार इस अनुबंध पर,
तुम खयालों का भी जाओगे घरौंदा छोड़कर,

दो मेरे प्रश्नों के उत्तर गुत्थियों को खोलकर,
क्यों अकारण तुम विरह के मार्ग पर हो अग्रसर,

जोत जाना तुम हृदय की प्रेम से सिंचित धरा,
मध्य उपजे मोह का प्रत्येक पौधा तोड़कर,

दो वचन गतिमान जीवन पूर्ववत होगा मेरा,
इन दिनों का वस्तुतः होगा न किंचित भी असर,

और हैं दो चार बातें इनका भी हल कीजिये,
चैन, नींदें, स्वप्न, खुशियाँ हो न जाएँ बेखबर,

तुम स्वयं ही तय करो इस प्रेम की श्रेणी प्रिये,
भावनाओं का मिलन? कहना उचित है सोचकर?

सोचना गंभीरता से क्या उचित है यह कदम,
यदि अकारण है तो ये प्रतिघात है विश्वास पर..

अरुन अनन्त

1 comment:

आइये आपका स्वागत है, इतनी दूर आये हैं तो टिप्पणी करके जाइए, लिखने का हौंसला बना रहेगा. सादर