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Friday, June 28, 2013

शिव स्तुति मत्तगयन्द सवैया - त्रासदी पर आल्हा/वीर छंद


मत्तगयन्द सवैया 
आदि अनादि अनन्त त्रिलोचन ओम नमः शिव शंकर बोलें
सर्प गले तन भस्म मले शशि शीश धरे करुणा रस घोलें,
भांग धतूर पियें रजके अरु भूत पिशाच नचावत डोलें
रूद्र उमापति दीन दयाल डरें सबहीं नयना जब खोलें


आल्हा छंद

गड़ गड़ करता बादल गर्जा, कड़की बिजली टूटी गाज
सन सन करती चली हवाएं, कुदरत हो बैठी नाराज
पलक झपकते प्रलय हो गई, उजड़े लाखों घर परिवार
पल में साँसे रुकी हजारों, सह ना पाया कोई वार

डगमग डगमग डोली धरती, अम्बर से आई बरसात
घना अँधेरा छाया क्षण में, दिन आभासित होता रात
आनन फानन में उठ नदियाँ, भरकर दौड़ीं जल भण्डार
इस भारी विपदा के केवल, हम सब मानव जिम्मेदार

Thursday, April 11, 2013

जय माता दी - नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं.

.................. दोहे ..................

हे जग जननी आपको, बारम्बार प्रणाम,
श्री चरणों की वंदना, में सुबहा हो शाम..

मन से माँ की वंदना, करो ह्रदय से पाठ,
भर भर के आशीष दें, सभी भुजाएं आठ.

माता तेरे भक्त हम, रखना माते ध्यान,
तुझसे ही संसार है, तुझसे ही है ज्ञान...

.................. 'मत्तगयन्द' सवैया ..................
दूर कलेश विकार करो भय नाश करो विनती सुन माता,
मात निवास करो घर में कर जोड़ तुझे यह लाल बुलाता,
ज्योति जली अरु द्वार सजा अति सुन्दर मइया मोरि लगी है,
पुष्प भरे सब थालि लिए इक साथ चले यह प्रीति सगी है ....

Wednesday, April 10, 2013

बच्चों को समर्पित दो रचनाएं

बच्चों को समर्पित दो रचनाएं
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प्रथम रचना : 'मत्तगयन्द' सवैया : 7 भगण व अंत में दो दीर्घ
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नाच नचाय रहा सबको हर ओर चलाय रहा मनमानी,
चूम ललाट रही जननी जब बोल रहा वह तोतल वानी,
धूल भरे तन माटि चखे चुपचाप लखे मुसकान सयानी,
रूप स्वरुप निहार रही सब भूल गयी यह लाल दिवानी...


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द्वतीय  रचना : कविता

मुझको नहीं होना बड़ा - वड़ा
पैरों पर अपने खड़ा - वड़ा
मैं बच्चा - बच्चा अच्छा हूँ ।

गोदी में सोने की हसरत मेरे जीवन से जायेगी,
माँ अपनी सुन्दर वाणी से लोरी भी नहीं सुनाएगी,
अच्छा है उम्र में कच्चा हूँ ।
मैं बच्चा - बच्चा अच्छा हूँ ।।

मैं फूलों संग मुस्काता हूँ, मैं कोयल के संग गाता हूँ,
चिड़िया रानी संग यारी है, मुझको लगती ये प्यारी है,
मैं मित्र सभी का सच्चा हूँ ।
मैं बच्चा - बच्चा अच्छा हूँ ।।

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                    अरुन शर्मा 'अनन्त'
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Saturday, March 23, 2013

मत्तगयन्द' सवैया

मत्तगयन्द' सवैया : 7 भगण व अंत में दो दीर्घ

1.

नाचत भंग पिए जन हैं, भर रंग फिरे हर सूरत भोली,
रूप स्वरुप खिले गुल से, मन मोर निहार रहा हर टोली,
लाल गुलाल कपोल सजे, जब मेल मिलाप करें हमजोली,
ढोल बजे हुडदंग मचे, घर स्वच्छ करे यह पावन होली .....



२.

रंग अबीर लगाय रहे भर भंग पियें जन जीभर प्याला,
मित्र सखा मिल घूम रहे हर रंग खिला हर रूप निराला,
प्रेम लुटाय रहे सबहीं मिल खाय रहे सब प्रेम निवाला,
मेल मिलाप लुभाय रहा मन और बढ़ाय रहा उजियाला..