खो रहा पहचान आदम,
हो रहा शैतान आदम,
हो रहा शैतान आदम,
चोर मन ले फिर रहा है,
कोयले की खान आदम,
कोयले की खान आदम,
नारि पे ताकत दिखाए,
जंतु से हैवान आदम,
जंतु से हैवान आदम,
मौत आनी है समय पे,
जान कर अंजान आदम,
जान कर अंजान आदम,
सोंचता है सोंच नीची,
बो रहा अपमान आदम,
बो रहा अपमान आदम,
मौज में सारे कुकर्मी,
क्या खुदा भगवान आदम???
क्या खुदा भगवान आदम???
मौज में सारे कुकर्मी,
ReplyDeleteक्या खुदा भगवान आदम
सामयिक - सार्थक रचना
शुभकामनायें !!
आभार माँ जी
Deleteवाह!
ReplyDeleteआपकी यह प्रविष्टि को कल दिनांक 21-01-2013 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
अनेक-अनेक धन्यवाद ‘ग़ाफ़िल’सर
Deleteसमाज के कुछ हैवानो के चलते मनुष्य की तुलना अब शैतानो से की जा रही है,यह सच है की अब आदमीयत दिन पर दिन कम होता जा रहा है। बहुत ही सार्थक प्रस्तुती।
ReplyDeleteराजेंद्र भाई शुक्रिया
Deleteमौज में सारे कुकर्मी,
ReplyDeleteक्या खुदा भगवान आदम???
बहुत खूब , सुन्दर ,,,
आभार मित्रवर
DeleteSAMSAMYEEK SANDARH KO UKERTI PRASTUTI
ReplyDeleteआदरणीया मधु जी धन्यवाद
Deleteखो रहा पहचान आदम,
ReplyDeleteहो रहा शैतान आदम,
सटीक पंक्तियाँ
आदरणीया मोनिका जी आभार
Deleteसटीक पंक्तियाँ
ReplyDeleteवाह, छोटी सी गज़ल में इतनी बड़ी बात !!!
ReplyDeleteसभ्यता विकसित हुई यूँ
खो रहा मुस्कान आदम
आदरणीय गुरुदेव श्री आप आये बहार आई स्नेह यूँ ही बनाये रखें.
Deleteसार्थक और बेहतरीन रचना.... क्या खुदा भगवान आदम
ReplyDeleteबहुत सही लिखा आपने!
ReplyDeleteआदमी में आदमीयत खत्म होती जा रही है।
आदरणीय शास्त्री सर आपकी टिपण्णी ह्रदय में उर्जा प्रवाहित करती है, आशीष यूँ ही बनाये रखें. सादर
Deleteधन्यवाद यशोदा दी
ReplyDeleteसचमुच आदमी इंसानियत भूल चुका है, इंसान से शैतान बन गया है... सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसच को कहती बेहतरीन रचना।।।
ReplyDelete:-)
ग़ालिब का एक शेर याद आ गया ...
ReplyDeleteमौत का एक दिन मुऐयन है ... नींद क्यों रात भर नहीं आती ....
बेवजह नारी पर अपनी ताकत दिखाने वाले ....इंसान कब रहते है
ReplyDeleteवो जानवर से भी बदतर हो जाते हैं