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Sunday, January 20, 2013

क्या खुदा भगवान आदम???

खो रहा पहचान आदम,
हो रहा शैतान आदम,


चोर मन ले फिर रहा है,  
कोयले की खान आदम,


नारि पे ताकत दिखाए,  
जंतु से हैवान आदम,


मौत आनी है समय पे,  
जान कर अंजान आदम,


सोंचता है सोंच नीची,  
बो रहा अपमान आदम,


मौज में सारे कुकर्मी,
क्या खुदा भगवान आदम???

23 comments:

  1. मौज में सारे कुकर्मी,
    क्या खुदा भगवान आदम

    सामयिक - सार्थक रचना
    शुभकामनायें !!

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  2. वाह!
    आपकी यह प्रविष्टि को कल दिनांक 21-01-2013 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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    1. अनेक-अनेक धन्यवाद ‘ग़ाफ़िल’सर

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  3. समाज के कुछ हैवानो के चलते मनुष्य की तुलना अब शैतानो से की जा रही है,यह सच है की अब आदमीयत दिन पर दिन कम होता जा रहा है। बहुत ही सार्थक प्रस्तुती।

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    1. राजेंद्र भाई शुक्रिया

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  4. मौज में सारे कुकर्मी,
    क्या खुदा भगवान आदम???

    बहुत खूब , सुन्दर ,,,

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  5. SAMSAMYEEK SANDARH KO UKERTI PRASTUTI

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    1. आदरणीया मधु जी धन्यवाद

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  6. खो रहा पहचान आदम,
    हो रहा शैतान आदम,

    सटीक पंक्तियाँ

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    1. आदरणीया मोनिका जी आभार

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  7. वाह, छोटी सी गज़ल में इतनी बड़ी बात !!!

    सभ्यता विकसित हुई यूँ
    खो रहा मुस्कान आदम

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    1. आदरणीय गुरुदेव श्री आप आये बहार आई स्नेह यूँ ही बनाये रखें.

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  8. सार्थक और बेहतरीन रचना.... क्या खुदा भगवान आदम

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  9. बहुत सही लिखा आपने!
    आदमी में आदमीयत खत्म होती जा रही है।

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    1. आदरणीय शास्त्री सर आपकी टिपण्णी ह्रदय में उर्जा प्रवाहित करती है, आशीष यूँ ही बनाये रखें. सादर

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  10. सचमुच आदमी इंसानियत भूल चुका है, इंसान से शैतान बन गया है... सटीक अभिव्यक्ति

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  11. सच को कहती बेहतरीन रचना।।।
    :-)

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  12. ग़ालिब का एक शेर याद आ गया ...
    मौत का एक दिन मुऐयन है ... नींद क्यों रात भर नहीं आती ....

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  13. बेवजह नारी पर अपनी ताकत दिखाने वाले ....इंसान कब रहते है
    वो जानवर से भी बदतर हो जाते हैं

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