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Friday, January 25, 2013

नतीजा न निकला मेरे प्यार का

ग़ज़ल
वज्न : 122 , 122 , 122 , 12

तुझे हम नयन में बसा ले चले,
मुहब्बत का सारा मज़ा ले चले,

चली छूरियां हैं जिगर पे निहाँ,
छिपाए जखम दिल ठगा ले चले,

तबीयत जो मचली तेरी याद में,
उमर भर अलग सा नशा ले चले,

कटे रात दिन हैं तेरे जिक्र में,
अजब सी ये आदत लगा ले चले,

नतीजा न निकला मेरे प्यार का,
ये कैसा नसीबा लिखा ले चले.....


निहाँ - गुप्त चोरी-छुपे

13 comments:

  1. हमेशा वजन में खरी हो गजल -
    भरे भाव से हैं सभी शेर भी |
    अरुण क्या कहें वाह रविकर करे-
    कहें दोस्त अपने कहें गैर भी ||

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    1. आदरणीय गुरुदेव श्री सादर आभार.

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  2. कटे रात दिन हैं तेरे जिक्र में,
    अजब सी ये आदत लगा ले चले,
    कटे रात दिन हैं तेरे जिक्र में,
    अजब सी ये आदत लगा ले चले,

    मनका -ए -माला उड़ा ले चले .

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  3. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल... शुभकामनायें

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  4. उत्कृष्ट प्रस्तुति ****कटे रात दिन हैं तेरे जिक्र में,
    अजब सी ये आदत लगा ले चले,

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  5. किसी को नयनो में बसा कर भी मुहब्बत में नाकाम होने का दर्द को सार्थक करती सुन्दर गज़ल।

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  6. wahhh....Hamesha ki tarah Umda..
    http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/01/blog-post_26.html

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  7. बहुत सुंदर गजल ,,,लाजबाब प्रस्तुति,,,,

    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    recent post: गुलामी का असर,,,

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  8. तबीयत जो मचली तेरी याद में,
    उमर भर अलग सा नशा ले चले,
    क्या बात कही है अरुण...बहुत खूब!

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  9. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [01.07.2013]
    चर्चामंच 1293 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
    सादर
    सरिता भाटिया

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  10. बहुत सुंदर ग़ज़ल की अभिव्यक्ति .......!!

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  11. तबीयत जो मचली तेरी याद में,
    उमर भर अलग सा नशा ले चले,
    ......बहुत ही शानदार रचना..

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  12. बहुत सुंदर, बहुत सुंदर
    दो लाइन मेरी ओर से..

    पहले दिल दिया था, अब जान देता हूं।
    वो अगाज़े मुहब्बत था,ये अंजामें मुहब्बत है।

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