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Sunday, January 27, 2013

कभी खाने के लाले हैं

ग़ज़ल
वज्न : 1222 , 1222

कभी पैसों की किल्लत तो,
कभी खाने के लाले हैं,

हमीं तो इक नहीं जख्मी,
हजारों दर्द वाले हैं,

कई हैरान रातों से,
किसी के दिन भी काले हैं,

सभी अच्छे यहाँ देखो,
मुसीबत के हवाले हैं,

गुनाहों के सभी मालिक,
कतल का शौक पाले हैं,

धुले हैं दूध के लेकिन,
नियत में खोट जाले हैं,

शराफत में शरीफों की,
जुबां पे आज ताले हैं,

बुरा ना मानना यारों,
जरा कातिब दिवाले हैं.
 
कातिब - लेखक, लिपिक
 

14 comments:


  1. मजा आ गया भाई-
    कातिब का अर्थ लिखिए-

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  2. आदरणीय सर प्रणाम, आपको मज़ा आया मेरी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा, कातिब का अर्थ लेखक होता है. सादर

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  3. शराफत में शरीफों की जुबां पर ताले है,क्या बात है ,बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल।

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  4. अरुण शर्मा ! जमाने के
    चलन कितने निराले है |

    जिन्हें फूलों में पाला था
    वही पत्थर उछाले हैं |

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    1. वाह गुरुदेव श्री आखिर आप आ ही गए अँखियाँ तरस जाती हैं मन बेचैन हो जाता है आपका प्रतिउत्तर पाने के लिए, हार्दिक आभार सर.

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  5. शराफत में शरीफों की,
    जुबां पे आज ताले हैं,

    बहत खूब कही है गजल आपने छोटी बहर बड़ा सन्देश .

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  6. वाह!
    आपकी यह प्रविष्टि को आज दिनांक 28-01-2013 को चर्चामंच-1138 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  7. लाजबाब गजल, छोटी बहर बड़ा सन्देश,
    वाह !!! क्या बात है,अरुन जी,,,,,,,बधाई,,,

    .recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,

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  8. बहुत खूब ग़ज़ल कही है आपने दिल खुश हो गया पढ़कर | आभार |

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  9. कई हैरान रातों से
    किसी के दिन भी काले हैं ...
    बहुत खूब...लाजवाब अभिव्यक्ति...

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  10. वाह....
    बहुत बढ़िया ग़ज़ल...
    सटीक शेर कहे हैं...

    अनु

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  11. बहुत बाध्य अरुण जी ...बहुत अच्छे शेर कहे हैं आपने.

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