आइये आपका स्वागत है

Wednesday, January 30, 2013

बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते

ओ. बी. ओ. तरही मुशायरा अंक-३१ हेतु लिखी ग़ज़ल.

(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)
(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२ )

बिना तेरे दिन हैं जुदाई के खलते,
कटे रात तन्हा टहलते - टहलते,

समय ने चली चाल ऐसी की प्राणी,
बदलता गया है बदलते - बदलते,

गिरे जो नज़र से फिसल के जरा भी,
उमर जाए फिर तो निकलते-निकलते,

किया शक हमेशा मेरी दिल्लगी पे,
यकीं जब हुआ रह गए हाँथ मलते,

भरम ही सही यार तेरी वफ़ा का,
जिए जा रहा हूँ ये आदत के चलते,

गुनाहों का मालिक खुदा बन गया है,
भलों को नहीं हैं भले काम फलते,

दवा से दुआ से नहीं तो नशे से,
बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते.

20 comments:

  1. बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते...
    बहुत बढ़ियाँ गजल..
    :-)

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर दर्द भरी ग़ज़ल,दुआ हम सब की है,आभार।

    ReplyDelete
  3. बढ़िया गजल |
    बधाई अरुण जी ||

    ReplyDelete
  4. दवा से दुआ से नहीं तो नसे से,
    बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते..

    वाह !!! बहुत खूबशूरत गजल,,,बधाई अरुन जी,,,

    recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय धीरेन्द्र सर

      Delete
  5. आपकी पोस्ट 31 - 01- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें ।
    --

    ReplyDelete
  6. बहल जाएगा दिल बहलते बहलते
    बहुत खूब, सुन्दर.

    ReplyDelete
  7. खूबशूरत गजल, बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते...

    ReplyDelete
  8. अधिकाँश शे'र निरर्थक हैं या भ्रष्ट-अर्थक ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय सर आप पहली बार आये हैं आपका दिल से स्वागत करता हूँ साथ ही साथ आपके कहे का भी मान रखता हूँ अवश्य ही आपका ज्ञान मुझसे कहीं ज्यादा है, मैं मानता हूँ कि खामियां होंगी इसीलिए आपको पसंद नहीं आये, कोई बात नहीं सर फिरसे कोशिश करूँगा और अच्छा लिखूंगा, मेरा मनोबल बढ़ाने हेतु मैं आपको प्रणाम करता हूँ. सादर

      Delete
    2. "कुछ पाने के लिए कुछ छोड़ना भी पड़ता है....."

      Delete
  9. धन्यवाद अरुण.... अन्यथा न लेने हेतु.... त्रुटियाँ निकालने का अर्थ है आगे बढ़ने का संकेत ..सही दिशा में ... हांजी हांजी पर मैं विश्वास नहीं रखता .... छिद्रान्वेषी हूँ... हाँ लेखक को अपने कथन व शब्दों के बारे में स्पष्टीकरण व तर्क देने का भी अधिकार है... परस्पर संवाद, वाद-विवाद से ही ज्ञान ,वस्तुएं व विचार आगे बढ़ते हैं....

    ReplyDelete
  10. मैं गुप्‍ता जी से सहमत हूं...जरा और मेहनत करें..तुकांत न भी हो तो कवि‍ता में प्रवाह और गजल के हर मि‍सरे का अर्थ समझ आना चाहि‍ए।

    ReplyDelete
  11. ....दर्द भरी ग़ज़ल अरुण जी !

    ReplyDelete
  12. भरम ही सही यार तेरी वफ़ा का,
    जिए जा रहा हूँ ये आदत के चलते,..... gazab... vry nice !

    ReplyDelete

आइये आपका स्वागत है, इतनी दूर आये हैं तो टिप्पणी करके जाइए, लिखने का हौंसला बना रहेगा. सादर