'बहरे मुजारे मुसमन अख़रब'
(221-2122-221-2122)
दिन रात मुश्किलों का अब साथ काफिला है
'ये कैदे बामशक्कत जो तूने की अता है '
आराम ना मयस्सर कुछ वक़्त का किसी को,
कोई तमाम लम्हें फुर्सत से फांकता है,
इंसान ये वही है जो मैंने था बनाया,
ताज्जुब भरी नज़र से भगवान ताकता है,
रस्मो रिवाज बदले बदली नज़र की फितरत,
हर ओर बह रहा अब आफत है जलजला है,
मशरूफ है जमाना जीने की चाह में पर,
काँधे पे रखके अपनी ही लाश भागता है. ..
(आज मेरा ब्लॉग एक साल का हो गया है )
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति,एक साल का सफर पूरा करने के लिए हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteतारों में अकेला चाँद जगमगाता है...
मुश्किलों में अकेला आदमी घबराता है
काँटों से क्या घबराना मेरे दोस्त
काँटों में ही अकेला गुलाब मुस्कराता है.
लाज़वाब गज़ल ...विशेष रूप से आखिरी शेर बहुत प्रभावशाली बन पड़ा है ...
ReplyDeleteजन्मदिन मुबारक-
ReplyDeleteजला लो एक दिया-
उत्कृष्ट प्रस्तुति
शुभकामनायें प्रिय अरुण -
हर हर बम बम -
जन्मदिन मुबारक-
ReplyDeleteजला लो एक दिया-
उत्कृष्ट प्रस्तुति
शुभकामनायें प्रिय अरुण -
हर हर बम बम -
बहुत ही बढ़ियाँ रचना....
ReplyDeleteब्लॉग के एक वर्ष पूरा होने पर बहुत बहुत बधाई...
इसी तरह लिखते रहिये..
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ...
:-)
श्री ग़ाफ़िल जी आज शिव आराधना में लीन है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी सम्मिलित किया जा रहा है।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-03-2013) के हे शिव ! जागो !! (चर्चा मंच-1180) पर भी होगी!
सूचनार्थ!
--
ब्लॉग का एक वर्ष पूरा करने पर हार्दिक बधायी!
मुबारक़ हो हुज़ूर | सालगिरह की तहे दिल से शुभकामनायें |
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई अरुण ऐसे ही सक्रिय रहिये और सबकी दुआएं लेते रहिये
ReplyDeleteमुश्किलें हैं आज तो कल कामयाबी होगी
यही इम्तिहान तो परवरदिगार का है
लाजवाब गज़ल के साथ एक वातश पूरा किया है आपने ...
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ...