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Sunday, March 10, 2013

'ये कैदे बामशक्कत जो तूने की अता है '

'बहरे मुजारे मुसमन अख़रब'
(221-2122-221-2122)
दिन रात मुश्किलों का अब साथ काफिला है
'ये कैदे बामशक्कत जो तूने की अता है '

आराम ना मयस्सर कुछ वक़्त का किसी को,
कोई तमाम लम्हें फुर्सत से फांकता है,

इंसान ये वही है जो मैंने था बनाया,
ताज्जुब भरी नज़र से भगवान ताकता है,

रस्मो रिवाज बदले बदली नज़र की फितरत,
हर ओर बह रहा अब आफत है जलजला है,

मशरूफ है जमाना जीने की चाह में पर,
काँधे पे रखके अपनी ही लाश भागता है. ..
(आज मेरा ब्लॉग एक साल का हो गया है )

9 comments:

  1. बहुत ही उम्दा प्रस्तुति,एक साल का सफर पूरा करने के लिए हार्दिक बधाई.

    तारों में अकेला चाँद जगमगाता है...
    मुश्किलों में अकेला आदमी घबराता है
    काँटों से क्या घबराना मेरे दोस्त
    काँटों में ही अकेला गुलाब मुस्कराता है.

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  2. लाज़वाब गज़ल ...विशेष रूप से आखिरी शेर बहुत प्रभावशाली बन पड़ा है ...

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  3. जन्मदिन मुबारक-
    जला लो एक दिया-

    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    शुभकामनायें प्रिय अरुण -
    हर हर बम बम -

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  4. जन्मदिन मुबारक-
    जला लो एक दिया-

    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    शुभकामनायें प्रिय अरुण -
    हर हर बम बम -

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  5. बहुत ही बढ़ियाँ रचना....
    ब्लॉग के एक वर्ष पूरा होने पर बहुत बहुत बधाई...
    इसी तरह लिखते रहिये..
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ...
    :-)

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  6. श्री ग़ाफ़िल जी आज शिव आराधना में लीन है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी सम्मिलित किया जा रहा है।
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-03-2013) के हे शिव ! जागो !! (चर्चा मंच-1180) पर भी होगी!
    सूचनार्थ!
    --
    ब्लॉग का एक वर्ष पूरा करने पर हार्दिक बधायी!

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  7. मुबारक़ हो हुज़ूर | सालगिरह की तहे दिल से शुभकामनायें |

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  8. बहुत बहुत बधाई अरुण ऐसे ही सक्रिय रहिये और सबकी दुआएं लेते रहिये

    मुश्किलें हैं आज तो कल कामयाबी होगी
    यही इम्तिहान तो परवरदिगार का है

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  9. लाजवाब गज़ल के साथ एक वातश पूरा किया है आपने ...
    बहुत बहुत बधाई ...

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