आइये आपका स्वागत है

Friday, March 15, 2013

भयभीत बेटियों का हर तात जागता है

'बहरे मुजारे मुसमन अख़रब'
(221-2122-221-2122)
 
दिन रात मुश्किलों से जीवन का वास्ता है,
साँसों के साथ चलता मरने का सिलसिला है,

महका गुलों से उपवन मौसम हुआ सुहाना,
नींदों के बिना भौंरा अब रात काटता है,

फूलों को मेरे सबने रौंदा बुरी तरह से,
मेरे चमन से उसके गुलशन का रास्ता है,

मुरझाये पेड़ पौधे सूखा हरा बगीचा
मौसम ने कर लिया जो पतझड़ का नास्ता है,

फैले समाज में हैं जब से कई दरिन्दे,
भयभीत बेटियों का हर तात जागता है ...

14 comments:

  1. बहुत बढ़िया -
    सटीक हैं प्रियवर ||

    ReplyDelete
    Replies
    1. फैले समाज में हैं जब से कई दरिन्दे,
      भयभीत बेटियों का हर तात जागता है ...
      जबरदस्ती की पंक्तियाँ ठुसने की कोशिश-

      आये नए जमाने में हैं गजब परिंदे -
      पंखों शरीर पर रेजर तेज बांधता है -

      ताके लिए नज़ारे पीछा किया तो समझो-
      पाओ नहीं जमानत जेल कौंधता है-

      Delete
  2. वाह ... बेहतरीन

    ReplyDelete
  3. बहुत सामयिक रचना अरुण ,बधाई

    ReplyDelete
  4. अरे वाह!
    बहुत उम्दा ग़ज़ल पेश की है आपने तो अरुण जी!

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सामयिक और सुन्दर ग़ज़ल,आभार.

    ReplyDelete
  6. ........प्रशंसनीय रचना - बधाई

    बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ

    ReplyDelete
  7. फूलों को मेरे सबने रौंदा बुरी तरह से,
    मेरे चमन से उसके गुलशन का रास्ता है,...

    बहुत खूब ... मस्त गज़ल के शेर हैं सभी कमाल के ...

    ReplyDelete
  8. Kiya apne jo vaar hai
    Dil hua bekarar hai

    Apki is Rachana se
    Hua dil Taar taar h.......

    Bahot hi sundar Arun Sir ji

    ReplyDelete

आइये आपका स्वागत है, इतनी दूर आये हैं तो टिप्पणी करके जाइए, लिखने का हौंसला बना रहेगा. सादर