ग़ज़ल
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
बह्र : हजज मुसम्मन सालिम
कभी सच्ची मुहब्बत को दिवाने दिल नहीं पाते,
यहाँ पत्थर बहुत रोया वहां आंसू नहीं आते,
रजा मेरी जुदा ठहरी रजा उसकी जुदा ठहरी,
मुझे कलियाँ नहीं जँचती उसे कांटे नहीं भाते,
डरा सहमा रहेगा उम्रभर ये दिल मेरा यूँ ही,
तेरी फितरत से वाकिफ जबतलक हम हो नहीं जाते,
चली है याद फिर मेरी उड़ाने नींद रातों की,
जगे हैं नैन जबसे ख्वाब के बादल नहीं छाते,
मुकम्मल इश्क की कोई कहानी कब हुई यारों,
नहीं लैला नहीं मजनू नहीं रिश्ते नहीं नाते..
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
बह्र : हजज मुसम्मन सालिम
कभी सच्ची मुहब्बत को दिवाने दिल नहीं पाते,
यहाँ पत्थर बहुत रोया वहां आंसू नहीं आते,
रजा मेरी जुदा ठहरी रजा उसकी जुदा ठहरी,
मुझे कलियाँ नहीं जँचती उसे कांटे नहीं भाते,
डरा सहमा रहेगा उम्रभर ये दिल मेरा यूँ ही,
तेरी फितरत से वाकिफ जबतलक हम हो नहीं जाते,
चली है याद फिर मेरी उड़ाने नींद रातों की,
जगे हैं नैन जबसे ख्वाब के बादल नहीं छाते,
मुकम्मल इश्क की कोई कहानी कब हुई यारों,
नहीं लैला नहीं मजनू नहीं रिश्ते नहीं नाते..
bahut khoob vakayee me sb riste nate arth hin hote ja rahe hai.sudar zgazal
ReplyDeleteअच्छी रचना
Deleteबहुत सुंदर
बहुत ही उत्कृष्ट ग़ज़ल,सादर आभार.
ReplyDelete... बेहद प्रभावशाली उत्कृष्ट ग़ज़ल
ReplyDeleteसंजय कुमार
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
यहाँ पत्थर बहुत रोया, वहाँ आँसू नहीं आते
ReplyDeleteऔर
मुझे कलियाँ नहीं जँचती,उसे काँटे नहीं भाते
इन दो पंक्तियों ने बस घायल ही कर दिया, बहुत ही उम्दा खयाल....
भावना प्रधान ग़ज़ल ...आज की लुप्त होती संवेदनाओ पर सटीक बैठती ...साधुवाद आदरणीय अरुण जी, सादर नमस्कार !
ReplyDeleteबहुत खूब .
ReplyDeleteडरा सहमा रहेगा उम्रभर ये दिल मेरा यूँ ही,
तेरी फितरत से वाकिफ जबतलक हम हो नहीं जाते,
वाह -
ReplyDeleteक्या बात कही है-
बधाई अरुण-
रजा मेरी जुदा ठहरी रजा उसकी जुदा ठहरी,
ReplyDeleteमुझे कलियाँ नहीं जँचती उसे कांटे नहीं भाते,..
वाह मशहूर बहर में लाजवाब गज़ल ...
क्या बात क्या बात क्या बात ...अंदाज़े बयाँ शेर ...
आज की ब्लॉग बुलेटिन ताकि आपको याद रहे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteआपकी यह प्रविष्टि आज दिनांक 18-03-2013 को सोमवारीय चर्चा : चर्चामंच-1187 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
यहाँ पत्थर बहुत रोया वहां आंसू नहीं आते,
ReplyDeleteमुझे कलियाँ नहीं जँचती उसे कांटे नहीं भाते,
बहुत बढ़िया ग़ज़ल
बहुत सुद्नर आभार आपने अपने अंतर मन भाव को शब्दों में ढाल दिया
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो
आप भी मेरे ब्लाग का अनुसरण करे
आप की ये रचना शुकरवार यानी 22-03-2013 को HTTP://WWW.NAYI-PURANI-HALCHAL.BLOGSPOT.COM पर लिंक की जा रही है...
ReplyDeleteसूचनार्थ।
बहुत सुंदर .बेह्तरीन .शुभकामनायें.
ReplyDeleteरजा मेरी जुदा ठहरी रजा उसकी जुदा ठहरी,
ReplyDeleteमुझे कलियाँ नहीं जँचती उसे कांटे नहीं भाते,..
बड़े ही पुरकशिश अशआर हैं भाई।
ReplyDeleteYAHAN PATHAR BAHUT ROYA WAHAN ANSOO NAHIN ATE.....
ACHHI SHAYRI,KHOOBSURT GAZAL
वाह.....
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल...
रजा मेरी जुदा ठहरी रजा उसकी जुदा ठहरी,
मुझे कलियाँ नहीं जँचती उसे कांटे नहीं भाते,..
लाजवाब शेर..
अनु
BAHUT BADHIYA GAZAL ANANT JI BADHAI !
ReplyDeletekuch chije dil me utar jati hai bas ...unme se aapki ye gajal bhi hain.
ReplyDeleteमुकम्मल इश्क की कोई कहानी कब हुई यारों,
ReplyDeleteनहीं लैला नहीं मजनू नहीं रिश्ते नहीं नाते.. Sach kaha Anant ji.. Sundar ghazal :)