बह्र : हज़ज मुसम्मन सालिम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
.............................. ......................
हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है,
मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,
निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है,
दिखा कर ख्वाब आँखों को रुलाया खून के आंसू,
जुबां पे बद्दुआ बस और भीतर चिडचिड़ाहट है,
चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है,
बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
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हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है,
मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,
निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है,
दिखा कर ख्वाब आँखों को रुलाया खून के आंसू,
जुबां पे बद्दुआ बस और भीतर चिडचिड़ाहट है,
चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है,
बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...
सुन्दर संरचना
ReplyDeleteआप की इस खूबसूरत रचना के लिये ब्लौग प्रसारण की ओर से शुभकामनाएं...
ReplyDeleteआप की ये सुंदर रचना आने वाले शनीवार यानी 26/10/2013 को कुछ पंखतियों के साथ ब्लौग प्रसारण पर भी लिंक गयी है... आप का भी इस प्रसारण में स्वागत है...आना मत भूलना...
सूचनार्थ।
बहुत उम्दा ग़ज़ल अरुण जी |
ReplyDeleteनई पोस्ट मैं
बढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार -
बहुत ही भावपूर्ण गजल...
ReplyDeleteबहुत उम्दा गजल ,,,!
ReplyDeleteRECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (26-10-2013)
"ख़ुद अपना आकाश रचो तुम" : चर्चामंच : चर्चा अंक -1410 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चरिवेती! पूरे परिवेश की यही दशा है !!
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति ! सम्पूर्ण विश्व की यही मनोदशा है !
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
ReplyDeleteबदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
ReplyDeleteकिवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...
बहुत उम्दा अरुण भाई
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : कोई बात कहो तुम
बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
ReplyDeleteकिवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...
खूबसूरत शेर है इस लाजवाब गज़ल का ... हर शेर जादू बिखरा रहा है ....
बहुत बढ़िया अरुण
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