दर्द राज़ी और जख्म सहमत है,
मुझपर मेरे प्यार की रहमत है,
लहू गुस्से में है दौड़ता नस में,
लगता है आज आई मेरी शामत है,
मैं शिकार जुल्म का हो चूका हूँ,
मेरी खुशियों पे लगी तोहमत है,
बचूं कैसे जब दिल ही दुश्मन हो ,
मुझे लूट रही मेरी ही मोहोब्बत है,
मुश्किलें टूट पड़ी मुझे कमजोर समझ,
हालत मेरी बयां करती हकीकत है.....
मुझपर मेरे प्यार की रहमत है,
लहू गुस्से में है दौड़ता नस में,
लगता है आज आई मेरी शामत है,
मैं शिकार जुल्म का हो चूका हूँ,
मेरी खुशियों पे लगी तोहमत है,
बचूं कैसे जब दिल ही दुश्मन हो ,
मुझे लूट रही मेरी ही मोहोब्बत है,
मुश्किलें टूट पड़ी मुझे कमजोर समझ,
हालत मेरी बयां करती हकीकत है.....