आल्हा छंद - 16 और 15 मात्राओं पर यति. अंत में गुरु-लघु , अतिशयोक्ति
मानों बरगद किसी लता पर, बिखराता हो अपनी छाँव ।।
फूलों से अनभिज्ञ भले पर, काँटों की रखता पहचान ।
अहा! बड़ा ही सीधा सादा, भोला भाला यह भगवान ।।
शिशु की अद्भुत भाषा शैली, शिशु का अद्भुत है विज्ञान ।
बिना पढ़े ही हर भाषा के, शब्दों का रखता है ज्ञान ।।
सुनो झुर्रियां तनी नसें ये, कहें अनुभवी मुझको जान।
बचपन यौवन और बुढ़ापा, मुन्ने को सिखलाता ज्ञान ।।
जन्म धरा पर लिया नहीं है, चिर सम्बंधों का निर्माण |
अपनेपन की मधुर भावना, फूँक रही रिश्तों में प्राण ||
फूलों से अनभिज्ञ भले पर, काँटों की रखता पहचान ।
अहा! बड़ा ही सीधा सादा, भोला भाला यह भगवान ।।
शिशु की अद्भुत भाषा शैली, शिशु का अद्भुत है विज्ञान ।
बिना पढ़े ही हर भाषा के, शब्दों का रखता है ज्ञान ।।
सुनो झुर्रियां तनी नसें ये, कहें अनुभवी मुझको जान।
बचपन यौवन और बुढ़ापा, मुन्ने को सिखलाता ज्ञान ।।
जन्म धरा पर लिया नहीं है, चिर सम्बंधों का निर्माण |
अपनेपन की मधुर भावना, फूँक रही रिश्तों में प्राण ||