पेश-ए-खिदमत है छोटी बहर की ग़ज़ल.
बहर : हज़ज मुरब्बा सालिम
1222, 1222
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परेशानी बढ़ाता है,
सदा पागल बनाता है,
अजब ये रोग है दिल का,
हँसाता है रुलाता है,
दुआओं से दवाओं से,
नहीं आराम आता है,
कभी छलनी जिगर कर दे,
कभी मलहम लगाता है,
हजारों मुश्किलें देकर,
दिलों को आजमाता है,
गुजरती रात है तन्हा,
सवेरे तक जगाता है,
नसीबा ही जुदा करता,
नसीबा ही मिलाता है,
कभी ख्वाबों के सौ टुकड़े,
कभी जन्नत दिखाता है,
उमर लम्बी यही कर दे,
यही जीवन मिटाता है...
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अरुन शर्मा 'अनन्त'
बहर : हज़ज मुरब्बा सालिम
1222, 1222
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परेशानी बढ़ाता है,
सदा पागल बनाता है,
अजब ये रोग है दिल का,
हँसाता है रुलाता है,
दुआओं से दवाओं से,
नहीं आराम आता है,
कभी छलनी जिगर कर दे,
कभी मलहम लगाता है,
हजारों मुश्किलें देकर,
दिलों को आजमाता है,
गुजरती रात है तन्हा,
सवेरे तक जगाता है,
नसीबा ही जुदा करता,
नसीबा ही मिलाता है,
कभी ख्वाबों के सौ टुकड़े,
कभी जन्नत दिखाता है,
उमर लम्बी यही कर दे,
यही जीवन मिटाता है...
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अरुन शर्मा 'अनन्त'