ग़ज़ल
बह्र : हज़ज़ मुरब्बा सालिम
1222 , 1222 ,
1222 , 1222 ,
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बँधी भैंसें तबेले में,
बँधी भैंसें तबेले में,
करें बातें अकेले में,
अजब इन्सान है देखो,
फँसा रहता झमेले में,
मिले जो इनमें कड़वाहट,
नहीं मिलती करेले में,
हुनर जो लेरुओं में है,
नहीं इंसा गदेले में,
भले हम जानवर होकर,
यहाँ आदम के मेले में,
मिले जो इनमें कड़वाहट,
नहीं मिलती करेले में,
हुनर जो लेरुओं में है,
नहीं इंसा गदेले में,
भले हम जानवर होकर,
यहाँ आदम के मेले में,
गुरु तो हैं गुरु लेकिन,
भरा है ज्ञान चेले में..
भरा है ज्ञान चेले में..