आइये आपका स्वागत है

Thursday, May 30, 2013

छोटी बहर की छोटी ग़ज़ल

निगाहों में भर ले,
मुझे प्यार कर ले, 

खिलौना बनाकर,
मजा उम्रभर ले, 

तू सुख चैन सारा,
दिवाने का हर ले, 

तकूँ राह तेरी,
गली से गुजर ले,

मुहब्बत में मेरी,
तू सज ले संवर ले...

Tuesday, May 28, 2013

ग़ज़ल : प्यार का रोग दिल लगा लाया

(बह्र: खफीफ मुसद्दस मख्बून मक्तुअ)
२१२२-१२१२-२२ 

फाइलातुन मुफाइलुन फेलुन 


प्यार का रोग दिल लगा लाया,
दर्द तकलीफ भी बढ़ा लाया,

याद में डूब मैं सनम खुद को,
रात भर नींद में जगा लाया,

तुम ही से जिंदगी दिवाने की,
साथ मरने तलक लिखा लाया,

चाँद तारों के शहर में तुमसे,
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया,

तेरी अँखियों से लूट कर काजल,
मेघ घनघोर है घटा लाया.

Monday, May 20, 2013

ग़ज़ल : कदम डगमगाए जुबां लडखडाये

ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 31 वें में सम्मिलित ग़ज़ल:-
विषय : "मद्यपान निषेध"
बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम (१२२, १२२, १२२, १२२)

कदम डगमगाए जुबां लडखडाये,
बुरी लत ये मदिरा हजारो लगाये,

न परवाह घर की न इज्जत की चिंता,
नशा ये असर सिर्फ अपना दिखाये,

शराबी - कबाबी- पियक्कड़ - नशेड़ी,
नए नाम से रोज दुनिया बुलाये,

सड़क पे कभी तो कभी नालियों में,
नशा आदमी को नज़र से गिराये,

उजाड़े ये संसार हंसी का ख़ुशी का,
मुहब्बत को ये मार ठोकर भगाये.

Thursday, May 16, 2013

सूचना

आदरणीय मित्रों आप सभी को सूचित किया जाता है कि जल्द ही हम लोग आप सभी के समक्ष एक नया ब्लॉग प्रस्तुत करेंगे.  सुझाव हेतु आप सभी का स्वागत है. ब्लॉग का लिंक नीचे दिया गया है.

 
वैसे तो इस तरह के तमाम ब्लॉग उपलब्ध हैं जिनमें से कुछ काफी प्रसिद्ध हैं. इस ब्लॉग को शुरू करने का हमारा उद्देश्य कम फोलोवर्स से जूझ रहे ब्लॉग्स का प्रचार करना एवं वे लोग जो ब्लॉग बनाना चाहते हैं परन्तु अज्ञान वश बना नहीं पाते या फिर अपने ब्लॉग का रूप, रंग ढंग नहीं बदल पाते उनकी समस्या का समाधान करना भी है. साथ ही साथ प्रतिदिन एक या दो विशेष रचना  "विशेष रचना कोना' पर प्रस्तुत की जायेगी. सोमवार एवं शुक्रवार के लिंक्स प्रसारण हेतु प्रसारण कर्ता की आवश्यकता है इच्छुक मित्र संपर्क करें. 

सादर 

Sunday, May 12, 2013

माँ - मेरी माँ (प्यारी माँ - न्यारी माँ)

माँ तुमसे जीवन मिला, माँ तुमसे यह रूप।
माँ तुम मेरी छाँव हो, माँ तुम मेरी धूप ।।

तू मेरा भगवान माँ, तू मेरा संसार ।
तेरे बिन मैं, मैं नहीं, बंजर हूँ बेकार ।।

पूजा माँ की कीजिये, कीजे न तिरस्कार ।
धरती पर मिलता नहीं, माँ सा
सच्चा प्यार ।।

छू मंतर पीड़ा करे, भर दे पल में घाव ।
माँ की ममता का कहीं, कोई मोल न भाव ।।

माँ तेरी महिमा अगम, कैसे करूँ बखान ।
संभव परिभाषा नहीं, संभव नहीं विधान ।।

Thursday, May 9, 2013

ग़ज़ल : चोरी घोटाला और काली कमाई

बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम

चोरी घोटाला और काली कमाई,
गुनाहों के दरिया में दुनिया डुबाई,

निगाहों में रखने लगे लोग खंजर,
पिशाचों ने मानव की चमड़ी चढ़ाई,

दिनों रात उसका ही छप्पर चुआ है,
गगनचुम्बी जिसने इमारत बनाई,

कपूतों की संख्या बढ़ेगी जमीं पे,
कि माता कुमाता अगर हो न पाई,

हमेशा से सबको ये कानून देता,
हिरासत-मुकदमा-ब-इज्जत रिहाई,

गली मोड़ नुक्कड़ पे लाखों दरिन्दे,
फ़रिश्ता नहीं इक भी देता दिखाई...

Saturday, May 4, 2013

दोहे

नित नैनो में गन्दगी, होती रही विराज..
कालंकित होता रहा, चुप्पी धरे समाज..

सज्जनता है मिट गई, और गया व्यवहार.
नहीं पुरातन सभ्यता, नहीं तीज त्योहार. 

कोमलता भीतर नहीं, नहीं जिगर में पीर.
बहुत दुशाशन हैं यहाँ, इक नहि अर्जुन वीर. 

अनहोनी होने लगी, गया भरोसा टूट ।
खुलेआम अब हो रही, मर्यादा की लूट ।।

गलत विचारों को लिए, फिरते दुर्जन लोग ।
कटु भाषा हैं बोलते, और परोसें रोग ।।
सदाचार है लुट गया, और गया विश्वास ।
घटनाएं यूँ देखके, मन है हुआ उदास ।।

बिना बात उलझो नहीं, करो न वाद-विवाद.
ढाई आखर प्रेम के, शब्द -शब्द में स्वाद...

Wednesday, May 1, 2013

ग़ज़ल : आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया

बह्र : रमल मुसम्मन सालिम

वक्त ने करवट बदल ली जो अँधेरा छा गया,
आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया,

प्यार के इस खेल में मकसद छुपा कुछ और था,
बोल कर दो बोल मीठे जुल्म दिल पे ढा गया,

बाढ़ यूँ ख्वाबों की आई है जमीं पर नींद की,
चैन तक अपनी निगाहों का जमाना खा गया,

झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,
झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,

तालियों की गडगडाहट संग बाजी सीटियाँ,
देश का नेता हमारा यूँ शहद बरसा गया.....

Saturday, April 27, 2013

दोहे


ओपन बुक्स ऑनलाइन ,चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक-२५ में मेरी रचना 




दोहे 

भीतर से घबरा रहा, मन में जपता राम ।
किसी तरह हे राम जी, आज बना दो काम ।।

दुबला पतला जिस्म है, सीना रहा फुलाय ।
जैसे तैसे हो सके, बस भर्ती हो जाय ।।

डिग्री बी ए की लिए, दुर्बल लिए शरीर ।
खाकी वर्दी जो मिले, चमके फिर तकदीर ।।

सीना है आगे किये, भीतर खींचे साँस ।
हाँथ लगे ज्यों सींक से, पाँव लगे ज्यों बाँस ।।

इक सीना नपवा रहा, दूजा है तैयार ।
खाते जैसे हैं हवा, लगते हैं बीमार ।।

खाकी से दूरी भली, कडवी इनकी चाय ।
ना तो अच्छी दुश्मनी, ना तो यारी भाय ।।

बिगड़ी नीयत देखके सौ रूपये का नोट ।
भोली सूरत ले फिरें, रखते मन में खोट ।।

Wednesday, April 24, 2013

कविता : मैं रसिक लाल- तुम फूलकली

मैं शुष्क धरा, तुम नम बदली.
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.

तुम मीठे रस की मलिका हो,
मैं प्रेमी थोड़ा पागल हूँ.
तुम मंद - मंद मुस्काती हो,
मैं होता रहता घायल हूँ.

तुमसे मिलकर तबियत बदली.
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.

जब ऋतु बासंती बीत गई,
तब तेरी मेरी प्रीत गई.
तुम मुरझाई मैं टूट गया,
मौसम मतवाला रूठ गया.


नैना भीगे, मुस्कान चली
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली..

Monday, April 15, 2013

दोहे

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नारियों को समर्पित
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  दुखदाई यह वेदना, बेहद घृणित प्रयत्न ।
दुर्जन प्राणी खो रहे, कन्या रूपी रत्न ।।

सच्ची बातों का बुरा, लगता है लग जाय ।
स्तर गिरा है पशुओं से, रहे मनुष्य बताय ।।

नारी से ही घर चले, नारी से संसार ।
नारी ही इस भूमि पे, जीवन का आधार ।।

माता पत्नी बेटियाँ, सब नारी के रूप ।
नारी जगदम्बा स्वयं, नारी शक्ति स्वरुप ।।

कन्या को क्यूँ पेट में, देते हो यूँ मार ।
बिन कन्या के यह धरा, ज्यों बंजर बेकार ।।

विनती है तुम हे प्रभू, ऐसा करो उपाय ।
बुरी दृष्टि जो जो रखे, नेत्रहीन हो जाय ।।
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बच्चों को समर्पित
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पढ़ लिख कर आगे बढ़ें, बनें नेक इन्सान ।
अच्छी शिक्षा जो मिले, बच्चें भरें उड़ान ।।

बच्चे कोमल फूल से, बच्चे हैं मासूम ।
सुमन भाँति ये खिल उठें, बनो धूप लो चूम ।।

देखो बच्चों प्रेम ही, जीवन का आधार ।
सज्जन को सज्जन करे, सज्जन का व्यवहार ।।

मजबूती जो नीव में, सदियों चले मकान ।
शिक्षा मात्र उपाय जो, करती दूर थकान ।।

आते देखे भोर को, भागा तामस जाय ।
सुख उसके ही साथ हो, दुख में जो मुस्काय ।।

सच्चाई की राह में, काँटे हैं भरपूर ।
अच्छी बातें सीख लो, करो बुराई दूर ।।

Thursday, April 11, 2013

जय माता दी - नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं.

.................. दोहे ..................

हे जग जननी आपको, बारम्बार प्रणाम,
श्री चरणों की वंदना, में सुबहा हो शाम..

मन से माँ की वंदना, करो ह्रदय से पाठ,
भर भर के आशीष दें, सभी भुजाएं आठ.

माता तेरे भक्त हम, रखना माते ध्यान,
तुझसे ही संसार है, तुझसे ही है ज्ञान...

.................. 'मत्तगयन्द' सवैया ..................
दूर कलेश विकार करो भय नाश करो विनती सुन माता,
मात निवास करो घर में कर जोड़ तुझे यह लाल बुलाता,
ज्योति जली अरु द्वार सजा अति सुन्दर मइया मोरि लगी है,
पुष्प भरे सब थालि लिए इक साथ चले यह प्रीति सगी है ....

Wednesday, April 10, 2013

बच्चों को समर्पित दो रचनाएं

बच्चों को समर्पित दो रचनाएं
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प्रथम रचना : 'मत्तगयन्द' सवैया : 7 भगण व अंत में दो दीर्घ
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नाच नचाय रहा सबको हर ओर चलाय रहा मनमानी,
चूम ललाट रही जननी जब बोल रहा वह तोतल वानी,
धूल भरे तन माटि चखे चुपचाप लखे मुसकान सयानी,
रूप स्वरुप निहार रही सब भूल गयी यह लाल दिवानी...


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द्वतीय  रचना : कविता

मुझको नहीं होना बड़ा - वड़ा
पैरों पर अपने खड़ा - वड़ा
मैं बच्चा - बच्चा अच्छा हूँ ।

गोदी में सोने की हसरत मेरे जीवन से जायेगी,
माँ अपनी सुन्दर वाणी से लोरी भी नहीं सुनाएगी,
अच्छा है उम्र में कच्चा हूँ ।
मैं बच्चा - बच्चा अच्छा हूँ ।।

मैं फूलों संग मुस्काता हूँ, मैं कोयल के संग गाता हूँ,
चिड़िया रानी संग यारी है, मुझको लगती ये प्यारी है,
मैं मित्र सभी का सच्चा हूँ ।
मैं बच्चा - बच्चा अच्छा हूँ ।।

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                    अरुन शर्मा 'अनन्त'
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Thursday, April 4, 2013

प्रस्तुत हैं नैनों पर कुछ दोहे

नयन झुकाए मोहिनी, मंद मंद मुस्काय ।
रूप अनोखा देखके, दर्पण भी शर्माय ।।

नयन चलाते छूरियां, नयन चलाते बाण ।
नयनन की भाषा कठिन, नयन क्षीर आषाण ।।

दो नैना हर मर्तबा, छीन गए सुख चैन ।
मन वैरागी कर गए, भटकूँ मैं दिन रैन ।।

आंसू के मोती कभी, मिलते कभी बवाल ।
नैनों की पहचान में, ज्ञानी भी कंगाल ।।

नयना शर्मीले बड़े, नयना नखरे बाज ।
नयनो का खुलता नहीं, सालों सालों राज ।।

नैनो से नैना मिले, बसे नयन में आप ।
नैना करवाएं सदा, मन का मेल मिलाप ।।

जो नैना नीरज भरें, जीतें मन संसार ।
नैना करके छोड़ दें, सज्जन को बेकार ।।

पल पल मैं व्याकुल हुआ, किया नयन ने वार ।
दो नैनो की जीत थी, दो नैनो की हार ।।

Monday, April 1, 2013

ग़ज़ल : अगर मांगने में तू सच्चा हुआ है

वज्न : १२२ , १२२ , १२२ , १२२ 
बहर : मुतकारिब मुसम्मन सालिम

झपकती पलक और लगती दुआ है,
अगर मांगने में तू सच्चा हुआ है,

जखम हो रहे दिन ब दिन और गहरे,
नयन की कटारी ने दिल को छुआ है,

नहीं बच सकेगा जतन लाख कर ले,
नसीबा ने खेला सदा ही जुआ है,

न बरसात ठहरी न मैं रात सोया,
कि रह रह के छप्पर सुबह तक चुआ है,

सुखों का गरीबों के घर ना ठिकाना,
दुखों ने मुफत में भरी बद - दुआ है .

Saturday, March 30, 2013

मनीषा के जन्मदिवस पर गुरुदेव श्री शास्त्री सर का अनमोल उपहार

आज
अपने पुत्रतुल्य शिष्य
अरुण शर्मा से फेसबुक पर बात हो रही थी
बातों-बातों में राज़ खुल ही गया कि
आज उनकी जीवन संगिनी 
श्रीमती मनीषा का जन्म दिन है।
आशीर्वाद के रूप में कुछ पंक्तियाँ बन गयीं हैं!
प्यार से खाओ-खिलाओअब मिठाई।
जन्मदिन की है मनीषा को बधायी।।

काटने का केक को अब चलन छोड़ो,
अब पुरातन सभ्यता की ओर दौड़ो,
यज्ञ में सद्भावनाएँ हैं समायी।
जन्मदिन की है मनीषा को बधायी।।

मोमबत्ती मत जलाना और बुझाना,
नेह से तुम आज घृतदीपक जलाना,
अरुण के घर में खुशी की घड़ी आयी।
जन्मदिन की है मनीषा को बधायी।।

प्यार से मनुहार से मन जीत लेना,
गुरुजनों-घर के बड़ों को मान देना,
अरुण के मन को मनीषा खूब भायी।
जन्मदिन की है मनीषा को बधायी।।



कुछ मित्रों के आग्रह पर गुरुदेव श्री के द्वारा की गई हुबहू वही पोस्ट यहाँ लिंक की गई है.

Thursday, March 28, 2013

दो गज़लें

ओ. बी. ओ. तरही मुशायरा अंक - ३३ के अंतर्गत शामिल मेरी दो गज़लें.

................... 1 ...................

जीजा बुरा न मानो होली बता के मारा,
सूरत बिगाड़ डाली कीचड़ उठा के मारा,

खटिया थी टूटी फूटी खटमल भरे हुए थे,
सर्दी की रात छत पर बिस्तर लगा के मारा,

काजल कभी तो शैम्पू बिंदी कभी लिपिस्टिक,
बीबी ने बैंक खाता खाली करा के मारा,

अंदाज था निराला पहना था चस्मा काला,
इक आँख से थी कानी मुझको पटा के मारा,

गावों की छोरियों को मैंने बहुत पटाया,
शहरों की लड़कियों ने बुद्धू बना के मारा ....

................... २ ...................

बासी रखी मिठाई मुझको खिला के मारा,
मोटी छुपाके घर में पतली दिखा के मारा,

जैसे ही मैंने बोला शादी नहीं करूँगा,
साले ने मुझको चाँटा बत्ती बुझा के मारा,

उसको पता चला जब मैं हो गया दिवाना,
मनमोहनी ने नस्तर मुझको रिझा के मारा,

आया बहुत दिनों के मैं बाद ओ बी ओ पर
ग़ज़लों के माहिरों ने मुझको हँसा के मारा

तकदीर ने हमेशा इस जिंदगी के पथपर
इसको हँसा के मारा उसको रुला के मारा .....

Monday, March 25, 2013

बुरा न मानो होली है

............. बुरा न मानो होली है ............

रंगों की बदरी छाई है, होली की बारिश आई है,
मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है,

शास्त्री सर की कविता रंगू, रविकर सर की कुण्डलियाँ,
निगम सर के गीत भिगाऊं, धीरेन्द्र सर जी की गलियाँ,
जरा हँसी मजाक ठिठोली है, यह गुरु शिष्य की होली है,
मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है,

प्रिय संदीप मनोज सखा की ग़ज़लों को भंग पिलाऊं मैं
शालिनी जी की अनुभूति को लाल गुलाल लगाऊं मैं,
भरी रंगों से ही झोली है, यह मित्र सखा की होली है,
मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है,

तरह तरह के रंग रंगीले, कुछ नीले हैं कुछ पीले हैं,
एक जैसी सबकी सूरत है, सब भीगे हैं सब गीले हैं,
मस्त पवन भी डोली है, झूमी गाती हर टोली है,
मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है,,

हर चेहरा रंगों वाला है, चाहे गोरा है या काला है,
यह प्रेम जुदा है गहरा है, खुशियों का घर-२ पहरा है,
फागुन की मीठी बोली है, मनमौजी भंग की गोली है,
मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है ....

Saturday, March 23, 2013

मत्तगयन्द' सवैया

मत्तगयन्द' सवैया : 7 भगण व अंत में दो दीर्घ

1.

नाचत भंग पिए जन हैं, भर रंग फिरे हर सूरत भोली,
रूप स्वरुप खिले गुल से, मन मोर निहार रहा हर टोली,
लाल गुलाल कपोल सजे, जब मेल मिलाप करें हमजोली,
ढोल बजे हुडदंग मचे, घर स्वच्छ करे यह पावन होली .....



२.

रंग अबीर लगाय रहे भर भंग पियें जन जीभर प्याला,
मित्र सखा मिल घूम रहे हर रंग खिला हर रूप निराला,
प्रेम लुटाय रहे सबहीं मिल खाय रहे सब प्रेम निवाला,
मेल मिलाप लुभाय रहा मन और बढ़ाय रहा उजियाला..

Thursday, March 21, 2013

संसार आफतों का भण्डार हो चला है

काटों भरी डगर है जीवन का पथ खुदा है,
गंभीर ये समस्या हल आज लापता है,

अंधा समाज बैरी इंसान खुद खुदी का,
अनपढ़ से भी है पिछड़ा, वो जो पढ़ा लिखा है,

धोखाधड़ी में अक्सर मसरूफ लोग देखे,
ईमान डगमगाया इन्‍सां लुटा पिटा है,

तकदीर के भरोसे लाखों गरीब बैठे,
हिम्मत सदैव हारें इनकी यही खता है,

अपमान नारियों का करता रहा अधर्मी,
संसार आफतों का भण्डार हो चला है...