ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव अंक २६ वें में सम्मिलित दोहे.
जंगल में मंगल करें, पौधों की लें जान ।
उसी सत्य से चित्र है, करवाता पहचान ।।
धरती बंजर हो रही, चिंतित हुए किसान ।
बिन पानी होता नहीं, हराभरा खलिहान ।।
छाती चटकी देखिये, चिथड़े हुए हजार ।
अच्छी खेती की धरा, निर्जल है बेकार ।।
पोखर सूखे हैं सभी, कुआँ चला पाताल ।
मानव के दुष्कर्म का, ऐसा देखो हाल ।।
पड़ते छाले पाँव में, जख्मी होते हाथ ।
बर्तन खाली देखके, फिक्र भरे हैं माथ ।।
खाने को लाले पड़े, वस्त्रों का आभाव ।
फिर भी नेता जी कहें, हुआ बहुत बदलाव ।।
तरह तरह की योजना, में आगे सरकार ।
तरह तरह की योजना, में आगे सरकार ।
अपना सपना ही सदा, करती है साकार ।।
तरह तरह की योजना, सदा बनाते लोग ।
अपना सपना ही सदा, करती है साकार ।।