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Sunday, October 13, 2013

बँधी भैंसें तबेले में

ग़ज़ल
बह्र : हज़ज़ मुरब्बा सालिम
1222 , 1222 ,
.........................................................
बँधी भैंसें तबेले में,
करें बातें अकेले में,

अजब इन्सान है देखो,
फँसा रहता झमेले में,

मिले जो इनमें कड़वाहट,
नहीं मिलती करेले में,


हुनर जो लेरुओं में है,
नहीं इंसा गदेले में,


भले हम जानवर होकर,
यहाँ आदम के मेले में,

गुरु तो हैं गुरु लेकिन,
भरा है ज्ञान चेले में..

Wednesday, October 9, 2013

जय माता दी




नमन कोटिशः आपको, हे नवदुर्गे मात ।
श्री चरणों में हो सुबह, श्री चरणों में रात ।।

नमन हाथ माँ जोड़कर, विनती बारम्बार ।
हे जग जननी कीजिये, सबका बेड़ापार ।।

हे वीणा वरदायिनी, हे स्वर के सरदार ।
सुन लो हे ममतामयी, करुणा भरी पुकार ।।

केवल इतनी कामना, कर रखता उपवास ।
मन में मेरे आपका, इक दिन होगा वास ।।

सुबह शाम वंदन नमन, मन से माते जाप ।
पूर्ण करो हर कामना, इस बालक की आप ।।

Monday, September 30, 2013

ग़ज़ल : हमारा प्रेम होता जो कन्हैया और राधा सा

ग़ज़ल
(बह्र: हज़ज़ मुसम्मन सालिम )
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
..........................................................

अयोध्या में न था संभव जहाँ कुछ राम से पहले,
वहीँ गोकुल में कुछ होता न था घनश्याम से पहले,

बड़े ही प्रेम से श्री राम जी लक्ष्मण से कहते हैं,
अनुज बाधाएँ आती हैं भले हर काम से पहले,

समर्पित गोपियों ने कर दिया जीवन मुरारी को,
नहीं कुछ श्याम से बढ़कर नहीं कुछ श्याम से पहले,

हमारा प्रेम होता जो कन्हैया और राधा सा,
समझ लेते ह्रदय की भावना पैगाम से पहले,

भले लक्ष्मी नारायण कहता है संसार हे राधा,
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले....

Thursday, September 26, 2013

दादाजी ने ऊँगली थामी

आल्हा छंद - 16 और 15 मात्राओं पर यति. अंत में गुरु-लघु , अतिशयोक्ति


 दादाजी ने ऊँगली थामी, शैशव चला उठाकर पाँव ।
मानों बरगद किसी लता पर, बिखराता हो अपनी छाँव ।।


फूलों से अनभिज्ञ भले पर, काँटों की रखता पहचान ।
अहा! बड़ा ही सीधा सादा, भोला भाला यह भगवान ।।


शिशु की अद्भुत भाषा शैली, शिशु का अद्भुत है विज्ञान ।
बिना पढ़े ही हर भाषा के, शब्दों का रखता है ज्ञान ।।


सुनो झुर्रियां तनी नसें ये, कहें अनुभवी मुझको जान।
बचपन यौवन और बुढ़ापा, मुन्ने को सिखलाता ज्ञान ।। 


जन्म धरा पर लिया नहीं है, चिर सम्बंधों का निर्माण |
अपनेपन की मधुर भावना, फूँक रही रिश्तों में प्राण ||

Friday, September 20, 2013

माँ की आँचल के तले, बच्चों का संसार

 शिशु बैठा है गोद में, मूंदे दोनों नैन ।
मात लुटाती प्रेम ज्यों, बरसे सावन रैन ।।

जननी चूमे प्रेम से, शिशु को बारम्बार ।
ज्यों शंकर के शीश से, बहे गंग की धार ।।

माँ की आँचल के तले, बच्चों का संसार।
धरती पर संभव नहीं, माँ सा सच्चा प्यार ।।

माँ तेरे से स्पर्श का, सुखद सुखद एहसास ।
तेरी कोमल गोद माँ, कहीं स्वर्ग से खास ।।

नैना सागर भर गए, करके तुझको याद ।
माता तेरे प्रेम का, संभव नहिं अनुवाद ।।

फिर से आकर चूम ले, सूना मेरा माथ ।
वादा कर माँ छोड़कर, जायेगी ना साथ ।।

Monday, September 16, 2013

मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ

दूरियों का ही समय निश्चित हुआ,
कब भला शक से दिलों का हित हुआ,


भोज छप्पन हैं किसी के वास्ते,
और कोई स्वाद से वंचित हुआ,


क्या भरोसा देश के कानून पर,
है बुरा जो वो भला साबित हुआ,


बेटियों सँग हादसे यूँ देखकर,
मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,


सभ्यता की देख उड़ती धज्जियाँ,
मन ह्रदय मेरा बहुत कुंठित हुआ..

Friday, September 13, 2013

स्वयं विधाता ने हाथों से

स्वयं विधाता ने हाथों से, करके धरती का श्रृंगार,
दिया मनुज को एक सलोना, सुन्दर प्यारा सा संसार,

मानवता का पाठ पढ़ाया, सिया राम ने ले अवतार,
लौटे फिर से मोहन बनके, और सिखाया करना प्यार,

स्वतः स्वतः पर मानव बदला, बदली काया और विचार,
भूल गया सच की परिभाषा, भूल गया गीता का सार,

गुंडागर्दी लूट डकैती, धोखा सरकारी व्यापार,
अपने घर की चिंता सबको, भले मिटे दूजा परिवार,

खुद का दाना पानी मुश्किल, करते लोगों का कल्याण,
राम नाम जप करें कमाई, जनता का हर लेते प्राण,

भोग विलास अधर्म बुराई, महँगाई के बरसे बाण,
संसद में नेता जी कहते, जारी है भारत निर्माण....

Sunday, September 1, 2013

संगमरमर सा बदन हाय भुलाये न बने

ग़ज़ल
बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ

गम छुपाये न बने जख्म दिखाये न बने,
आह जब पीर बढ़े वक़्त बिताये न बने,

रेशमी जुल्फ घनी, नैन भरे काली घटा,
संगमरमर सा बदन हाय भुलाये न बने,

शबनमी होंठ गुलाबों से अधिक कोमल हैं,
सेतु तारीफ का मुश्किल है बनाये न बने,

रातरानी सी जो मुस्कान खिली होंठों पर,
हुस्न कातिल ये तेरा जान बचाये न बने

मौत जिद पे है अड़ी साथ लेके जाने को,
क्या बने बात जहाँ बात बनाये न बने...

Wednesday, August 21, 2013

कहीं तो टूटके सीने से दिल बिखरा हुआ होगा

बहर : हज़ज़ मुसम्मन सालिम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
....................................................

तुझे भूला हुआ होगा तुझे बिसरा हुआ होगा,
कहीं तो टूटके सीने से दिल बिखरा हुआ होगा,

बदलता है नहीं मेरी निगाहों का कभी मौसम,
असर छोटी सी कोई बात का गहरा हुआ होगा ,

तनिक हरकत नहीं करता सिसकती आह सुन मेरी,
अगर गूंगा नहीं तो दिल तेरा बहरा हुआ होगा,

जिसे अब ढूंढती है आज के रौशन जहाँ में तू,
तमस की गोद में बिस्तर बिछा पसरा हुआ होगा,

चली आई मुझे तू छोड़ कर चुपचाप राहों में,
तुझे महसूस शायद मुझसे ही खतरा हुआ होगा,

कहा रुकना नहीं जाना पलटकर मैं अभी आई,
अरुन अब तक उसी बारिश तले ठहरा हुआ होगा..

Sunday, August 11, 2013

सावन

सजी धजी हरी भरी वसुंधरा नवीन सी,
फुहार मेघ से झरी सफ़ेद है महीन सी,

नया नया स्वरुप है अनूप रंग रूप है,
बयार प्रेम की बहे खिली मलंग धूप है,

हवा सुगंध ले उड़े यहाँ वहाँ गुलाब की,
धरा विभोर हो उठी, मिटी क्षुधा चिनाब की

रुको जरा कहाँ चले दिखा मुझे कठोरता
हजार बार चाँद को चकोर है पुकारता

विदेश में बसे पिया, सुने नहीं निवेदना
अजीब मर्ज प्रेम का, अथाह दर्द वेदना

Tuesday, August 6, 2013

तुम प्रेम प्रतिज्ञा भूल गई

तुम प्रेम प्रतिज्ञा भूल गई,
मैं भूल गया दुनिया दारी,
पहले दिल का बलिदान दिया,
हौले - हौले धड़कन हारी.

खुशियाँ घर आँगन छोड़ चली,
तुम मुझसे जो मुँह मोड़ चली,
मैं अपनी मंजिल भटक गया,
इन दो लम्हों में अटक गया,

मुरझाई खिलके फुलवारी,
हौले - हौले धड़कन हारी.

मन व्याकुल है बेचैनी है,
यादों की छूरी पैनी है,
नैना सागर भर लेते हैं,
हम अश्कों से तर लेते हैं,

हर रोज चले दिल पे आरी,
हौले - हौले धड़कन हारी...

Sunday, July 28, 2013

ग़ज़ल : तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक - ३७ वें में प्रस्तुत मेरी ग़ज़ल :-
(बह्र: बहरे हज़ज़ मुसद्दस महजूफ)

.......................................
जिसे अपना बनाए जा रहा हूँ,
उसी से चोट दिल पे खा रहा हूँ,

यकीं मुझपे करेगी या नहीं वो,
अभी मैं आजमाया जा रहा हूँ,

मुहब्बत में जखम तो लाजमी है,
दिवाने दिल को ये समझा रहा हूँ,

अकेला रात की बाँहों में छुपकर,
निगाहों की नमी छलका रहा हूँ,

जुदाई की घडी में आज कल मैं,
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ..

Friday, July 19, 2013

ग़ज़ल : अजब ये रोग है दिल का

पेश-ए-खिदमत है छोटी बहर की ग़ज़ल.

बहर : हज़ज मुरब्बा सालिम
1222, 1222

.............................
परेशानी बढ़ाता है,
सदा पागल बनाता है,

अजब ये रोग है दिल का,
हँसाता है रुलाता है,

दुआओं से दवाओं से,
नहीं आराम आता है,

कभी छलनी जिगर कर दे,
कभी मलहम लगाता है,

हजारों मुश्किलें देकर,
दिलों को आजमाता है,

गुजरती रात है तन्हा,
सवेरे तक जगाता है,

नसीबा ही जुदा करता,
नसीबा ही मिलाता है,

कभी ख्वाबों के सौ टुकड़े,
कभी जन्नत दिखाता है,

उमर लम्बी यही कर दे,
यही जीवन मिटाता है...
.............................

अरुन शर्मा 'अनन्त'

Thursday, July 11, 2013

पुत्रीरूपी रत्न की प्राप्ति

लावन्या

गूँजी घर किलकारियाँ, सुबह शाम दिन रात ।
कन्यारूपी रत्न की, मिली हमें सौगात ।।

उम्र लगा की बढ़ गई, होता है आभास ।
जबसे पापा हूँ बना, लगता हूँ कुछ खास ।। 


बिन मांगे ही फल मिला, पूरी हुई मुराद ।
जीवन में है बढ़ गई, ख़ुशी की तायदाद ।।

Friday, June 28, 2013

शिव स्तुति मत्तगयन्द सवैया - त्रासदी पर आल्हा/वीर छंद


मत्तगयन्द सवैया 
आदि अनादि अनन्त त्रिलोचन ओम नमः शिव शंकर बोलें
सर्प गले तन भस्म मले शशि शीश धरे करुणा रस घोलें,
भांग धतूर पियें रजके अरु भूत पिशाच नचावत डोलें
रूद्र उमापति दीन दयाल डरें सबहीं नयना जब खोलें


आल्हा छंद

गड़ गड़ करता बादल गर्जा, कड़की बिजली टूटी गाज
सन सन करती चली हवाएं, कुदरत हो बैठी नाराज
पलक झपकते प्रलय हो गई, उजड़े लाखों घर परिवार
पल में साँसे रुकी हजारों, सह ना पाया कोई वार

डगमग डगमग डोली धरती, अम्बर से आई बरसात
घना अँधेरा छाया क्षण में, दिन आभासित होता रात
आनन फानन में उठ नदियाँ, भरकर दौड़ीं जल भण्डार
इस भारी विपदा के केवल, हम सब मानव जिम्मेदार

Monday, June 24, 2013

ग़ज़ल : गिरगिट की भांति बदले जो रंग दोस्तों

फाईलु / फाइलातुन / फाईलु / फाइलुन
वज्न : २२१, २१२२, २२१, २१२

नैनो के जानलेवा औजार से बचें,
करुणा दया ख़तम दिल में प्यार से बचें,

पत्थर से दोस्त वाकिफ बेशक से हों न हों,
है आईने की फितरत दीदार से बचें,

आदत सियासती है धोखे से वार की,
तलवार से डरे ना सरकार से बचें,

महँगाई छू रही अब आसमान को,
परिवार खुश रहेगा विस्तार से बचें,

गिरगिट की भांति बदले जो रंग दोस्तों,
जीवन में खास ऐसे किरदार से बचें,

नफरत नहीं गरीबों के वास्ते सही,
यारों सदा दिमागी बीमार से बचें,

जो चासनी लबों पर रख के चले सदा,
धोखा मिलेगा ऐसे मक्कार से बचें,

Sunday, June 16, 2013

ग़ज़ल : शीर्षक पिता

 "पितृ दिवस" पर सभी पिताओं को सादर प्रणाम नमन, सभी पिताओं को समर्पित एक ग़ज़ल.

ग़ज़ल : शीर्षक पिता
बह्र :हजज मुसम्मन सालिम
......................................................

घिरा जब भी अँधेरों में सही रस्ता दिखाते हैं ।
बढ़ा कर हाँथ वो अपना मुसीबत से बचाते हैं ।।

बड़ों को मान नारी को सदा सम्मान ही देना ।
पिता जी प्रेम से शिक्षा भरी बातें सिखाते हैं ।।

दिखावा झूठ धोखा जुर्म से दूरी सदा रखना ।
बुराई की हकीकत से मुझे अवगत कराते हैं ।।

सफ़र काटों भरा हो पर नहीं थकना नहीं रुकना ।
बिछेंगे फूल क़दमों में अगर चलते ही जाते हैं ।।

ख़ुशी के वास्ते मेरी दुआ हरपल करें रब से ।
जरा सी मांग पर सर्वस्व वो अपना लुटाते हैं ।।

मुसीबत में फँसा हो गर कोई बढ़कर मदद करना ।
वही इंसान हैं इंसान के जो काम आते हैं ।।

Wednesday, June 12, 2013

"पाखण्ड" पर आधारित कुछ दोहे

ओ बी ओ महोत्सव अंक ३२ वें में विषय "पाखण्ड" पर आधारित कुछ दोहे.

लोभी पहने देखिये, पाखण्डी परिधान ।
चिकनी चुपड़ी बात में, क्यों आता नादान ।।

नित पाखण्डी खेलता, तंत्र मंत्र का खेल ।
अपनी गाड़ी रुक गई, इनकी दौड़ी रेल ।।

पंडित बाबा मौलवी, जोगी नेता नाम ।
पाखण्डी ये लोग हैं, धोखा इनका काम ।।

खुलके बच्चा मांग ले, आया है दरबार ।
भेंट चढ़ा दे प्रेम से, खुश होगा परिवार ।।

होते पाखंडी सभी, बड़े पैंतरे बाज ।
धीरे धीरे हो रहा, इनका बड़ा समाज ।।

हींग लगे न फिटकरी, धंधा भाये खूब ।
इनकी चांदी हो गई, निर्धन गया है डूब ।।

ठग बैठा पोशाक में, बना महात्मा संत ।
अपनी झोली भर रहा, कर दूजे का अंत ।।

Thursday, June 6, 2013

प्यार के दोहे

हसरत तुमसे प्यार की, दिल तुमपे कुर्बान ।
मेरे दिल के रोग का, 'हाँ' कर करो निदान ।।
 


यादों में आने लगे, सुबह शाम हर वक़्त ।
कैसी हैं कठिनाइयाँ, कर ना पाऊं व्यक्त ।।

नैनो ने घायल किया, गई सादगी लूट ।
सच्चा तुमसे प्रेम है, नहीं समझना झूठ ।।

बोझल रातें हो गईं, दिल ने छीना चैन ।
मिलने की खातिर सदा, रहता हूँ बेचैन ।।


भोलापन ये सादगी, मदिरा भरी निगाह ।
दिलबर तेरे प्यार में, लुटने की है चाह ।।

चाहत की ये इन्तहाँ, कर ना दे बर्बाद ।
तुमसे दूरी में कहीं, मुझे मार दे याद ।।

Monday, June 3, 2013

कुछ दोहे

ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव अंक २६ वें में सम्मिलित दोहे.





जंगल में मंगल करें, पौधों की लें जान
उसी सत्य से चित्र है, करवाता पहचान

धरती बंजर हो रही, चिंतित हुए किसान
 
बिन पानी होता नहीं, हराभरा खलिहान
 
छाती चटकी देखिये, चिथड़े हुए हजार
 अच्छी खेती की धरा, निर्जल है बेकार
 
पोखर सूखे हैं सभी, कुआँ चला पाताल । 
मानव के दुष्कर्म का, ऐसा देखो हाल

पड़ते छाले पाँव में, जख्मी होते हाथ
बर्तन खाली देखके, फिक्र भरे हैं माथ
 
खाने को लाले पड़े, वस्त्रों का आभाव
फिर भी नेता जी कहें, हुआ बहुत बदलाव 

तरह तरह की योजना, में आगे सरकार
अपना सपना ही सदा, करती है साकार

तरह तरह की योजना, सदा बनाते लोग
 अपना सपना ही सदा, करती है साकार