ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 31 वें में सम्मिलित ग़ज़ल:-
विषय : "मद्यपान निषेध"
बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम (१२२, १२२, १२२, १२२)
कदम डगमगाए जुबां लडखडाये,
बुरी लत ये मदिरा हजारो लगाये,
न परवाह घर की न इज्जत की चिंता,
नशा ये असर सिर्फ अपना दिखाये,
शराबी - कबाबी- पियक्कड़ - नशेड़ी,
नए नाम से रोज दुनिया बुलाये,
सड़क पे कभी तो कभी नालियों में,
नशा आदमी को नज़र से गिराये,
उजाड़े ये संसार हंसी का ख़ुशी का,
मुहब्बत को ये मार ठोकर भगाये.
विषय : "मद्यपान निषेध"
बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम (१२२, १२२, १२२, १२२)
कदम डगमगाए जुबां लडखडाये,
बुरी लत ये मदिरा हजारो लगाये,
न परवाह घर की न इज्जत की चिंता,
नशा ये असर सिर्फ अपना दिखाये,
शराबी - कबाबी- पियक्कड़ - नशेड़ी,
नए नाम से रोज दुनिया बुलाये,
सड़क पे कभी तो कभी नालियों में,
नशा आदमी को नज़र से गिराये,
उजाड़े ये संसार हंसी का ख़ुशी का,
मुहब्बत को ये मार ठोकर भगाये.