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Thursday, March 28, 2013

दो गज़लें

ओ. बी. ओ. तरही मुशायरा अंक - ३३ के अंतर्गत शामिल मेरी दो गज़लें.

................... 1 ...................

जीजा बुरा न मानो होली बता के मारा,
सूरत बिगाड़ डाली कीचड़ उठा के मारा,

खटिया थी टूटी फूटी खटमल भरे हुए थे,
सर्दी की रात छत पर बिस्तर लगा के मारा,

काजल कभी तो शैम्पू बिंदी कभी लिपिस्टिक,
बीबी ने बैंक खाता खाली करा के मारा,

अंदाज था निराला पहना था चस्मा काला,
इक आँख से थी कानी मुझको पटा के मारा,

गावों की छोरियों को मैंने बहुत पटाया,
शहरों की लड़कियों ने बुद्धू बना के मारा ....

................... २ ...................

बासी रखी मिठाई मुझको खिला के मारा,
मोटी छुपाके घर में पतली दिखा के मारा,

जैसे ही मैंने बोला शादी नहीं करूँगा,
साले ने मुझको चाँटा बत्ती बुझा के मारा,

उसको पता चला जब मैं हो गया दिवाना,
मनमोहनी ने नस्तर मुझको रिझा के मारा,

आया बहुत दिनों के मैं बाद ओ बी ओ पर
ग़ज़लों के माहिरों ने मुझको हँसा के मारा

तकदीर ने हमेशा इस जिंदगी के पथपर
इसको हँसा के मारा उसको रुला के मारा .....

Thursday, March 21, 2013

संसार आफतों का भण्डार हो चला है

काटों भरी डगर है जीवन का पथ खुदा है,
गंभीर ये समस्या हल आज लापता है,

अंधा समाज बैरी इंसान खुद खुदी का,
अनपढ़ से भी है पिछड़ा, वो जो पढ़ा लिखा है,

धोखाधड़ी में अक्सर मसरूफ लोग देखे,
ईमान डगमगाया इन्‍सां लुटा पिटा है,

तकदीर के भरोसे लाखों गरीब बैठे,
हिम्मत सदैव हारें इनकी यही खता है,

अपमान नारियों का करता रहा अधर्मी,
संसार आफतों का भण्डार हो चला है...

Sunday, March 17, 2013

यहाँ पत्थर बहुत रोया वहां आंसू नहीं आते

ग़ज़ल
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
बह्र : हजज मुसम्मन सालिम

कभी सच्ची मुहब्बत को दिवाने दिल नहीं पाते,
यहाँ पत्थर बहुत रोया वहां आंसू नहीं आते,

रजा मेरी जुदा ठहरी रजा उसकी जुदा ठहरी,
मुझे कलियाँ नहीं जँचती उसे कांटे नहीं भाते,

डरा सहमा रहेगा उम्रभर ये दिल मेरा यूँ ही,
तेरी फितरत से वाकिफ जबतलक हम हो नहीं जाते,

चली है याद फिर मेरी उड़ाने नींद रातों की,
जगे हैं नैन जबसे ख्वाब के बादल नहीं छाते,


मुकम्मल इश्क की कोई कहानी कब हुई यारों,
नहीं लैला नहीं मजनू नहीं रिश्ते नहीं नाते..

Friday, March 15, 2013

भयभीत बेटियों का हर तात जागता है

'बहरे मुजारे मुसमन अख़रब'
(221-2122-221-2122)
 
दिन रात मुश्किलों से जीवन का वास्ता है,
साँसों के साथ चलता मरने का सिलसिला है,

महका गुलों से उपवन मौसम हुआ सुहाना,
नींदों के बिना भौंरा अब रात काटता है,

फूलों को मेरे सबने रौंदा बुरी तरह से,
मेरे चमन से उसके गुलशन का रास्ता है,

मुरझाये पेड़ पौधे सूखा हरा बगीचा
मौसम ने कर लिया जो पतझड़ का नास्ता है,

फैले समाज में हैं जब से कई दरिन्दे,
भयभीत बेटियों का हर तात जागता है ...

Wednesday, March 13, 2013

चाहत अथाह है

ना देखा आपने,
चाहत अथाह है,

मुखड़ा आपका,
रखती निगाह है,

मैं पूजूं आपको,
दिल की सलाह है,

मेरी तो आपमें,
मंजिल है राह है,

रजा में आपकी,
सब कुछ पनाह है,

सिर्फ ये दिल नहीं,
जान भी तबाह है.

Monday, March 11, 2013

मौत सबकी समय के निशाने में है

गैरियत आज जालिम ज़माने में है,
मौत सबकी समय के निशाने में है,

हर दरिंदा यहाँ अब यही सोचता,
सुख मज़ा नारियों को सताने में है,

सुर्ख़ियों में वो छाये गलत काम कर,
नाम अच्छों का गुम अब घराने में है,

कब ठहरती वफ़ा है अधिक देर तक,
बेवफाई का मौसम फ़साने में है,

बेंच कर वो शरम आगे जाता रहा,
मेरी मंजिल गुमी हिचकिचाने में है....

Sunday, March 10, 2013

'ये कैदे बामशक्कत जो तूने की अता है '

'बहरे मुजारे मुसमन अख़रब'
(221-2122-221-2122)
दिन रात मुश्किलों का अब साथ काफिला है
'ये कैदे बामशक्कत जो तूने की अता है '

आराम ना मयस्सर कुछ वक़्त का किसी को,
कोई तमाम लम्हें फुर्सत से फांकता है,

इंसान ये वही है जो मैंने था बनाया,
ताज्जुब भरी नज़र से भगवान ताकता है,

रस्मो रिवाज बदले बदली नज़र की फितरत,
हर ओर बह रहा अब आफत है जलजला है,

मशरूफ है जमाना जीने की चाह में पर,
काँधे पे रखके अपनी ही लाश भागता है. ..
(आज मेरा ब्लॉग एक साल का हो गया है )

Sunday, February 24, 2013

ग़ज़ल : जिद में



1.  बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
 
दिलों की कहानी बनाने की जिद में,
लुटा दिल मेरा प्यार पाने की जिद में,

बिना जिसके जीना मुनासिब नहीं था,
उसे खो दिया आजमाने की जिद में,

मिली कब ख़ुशी दुश्मनी में किसी को,
ख़तम हो गया सब निभाने की जिद में,

घुटन बेबसी लौट घर फिर से आई,
रहा कुछ नहीं सब बचाने की जिद में,  

तमाशा बना जिंदगी का हमेशा, 
शराफत से सर ये झुकाने की जिद में....

Thursday, February 21, 2013

ग़ज़ल : समन्दर

सभी को लगे खूब प्यारा समन्दर,
सुहाना ये नमकीन खारा समन्दर,

नसीबा के चलते गई डूब कश्ती,
मगर दोष पाये बेचारा समन्दर,

दिनों रात लहरों से करता लड़ाई,
थका ना रुका ना ही हारा समन्दर,

कई राज गहरे छुपाकर रखे है,
नहीं खोलता है पिटारा समन्दर,

सुबह शाम चाहे कड़ी दोपहर हो,
हजारों का इक बस सहारा समन्दर.


Wednesday, February 13, 2013

लुटा है चमन मुस्कुराने की जिद में


बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम 

महक कर सभी को लुभाने कि जिद में,
लुटा है चमन मुस्कुराने कि जिद में,
 
कहीं खो गई रौशनी कुछ समय की,
निगाहें रवी से मिलाने कि जिद में,
 
करूँ क्या करूँ याद वो फिर न आये,
सुबह हो गई भूल जाने कि जिद में,
 
गलतकाम करने लगा है जमाना,
बड़ा सबसे खुद को बनाने कि जिद में,
 
अँधेरा हुआ दिन-ब-दिन और गहरा,
उजाला जहाँ से मिटाने कि जिद में,

Thursday, February 7, 2013

समंदर बचाना

नया इक फ़साना,
बुने दिल दिवाना,

दुखों से लबालब,
भरा है जमाना,

न कर दोस्ती दिल,
न दुश्मन बनाना,

कहाँ हो सुनो भी,
जरा पास आना,

कहो ठोकरों से,
कि चलना सिखाना,

बही हैं निगाहें,
समंदर बचाना,

नहीं प्रेम रस तो,
जहर ही पिलाना...

Monday, February 4, 2013

दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है

.................ग़ज़ल.................

(बह्र: बहरे मुजारे मुसमन अखरब)
(वज्न: २२१, २१२२, २२१, २१२२)


दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है,
जिन्दा हमारे भीतर शैतान हो रहा है,

जुल्मो सितम तबाही फैली कदम-२ पे,
अपराध आज इतना आसान हो रहा है,

इन्साफ की डगर में उभरे तमाम कांटे,
मासूम मुश्किलों में कुर्बान हो रहा है,

कुदरत दिखा करिश्मा संसार को बचा ले,
जलके तेरा जमाना शमशान हो रहा है,

खामोश देख रब को रोया उदास भी हूँ,
पिघला नहीं खुदा दिल हैरान हो रहा है...

Friday, February 1, 2013

बुना कैसे जाये फ़साना न आया

(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)
(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२) 

बुना कैसे जाये फ़साना न आया,  
दिलों का ये रिश्ता निभाना न आया,

लुटाते रहे दौलतें दूसरों पर,
पिता माँ का खर्चा उठाना न आया,

चला कारवां चार कंधों पे सजकर,  
हुनर था बहुत पर जिलाना न आया,

दिलासा सभी को सभी बाँटते हैं,  
खुदी को कभी पर दिलाना न आया,

जहर से भरा तीर नैनों से मारा,  
जरा सा भी खुद को बचाना न आया,

किताबें न कुछ बांचने से मिलेगा,
बिना ज्ञान दर्पण दिखाना न आया,

बुढ़ापे ने दी जबसे दस्तक उमर पे,  
रुके ये कदम फिर चलाना न आया,

मुहब्बत का मैंने दिया बेसुधी में,  
बुझा तो दिया पर जलाना न आया,

समंदर के भीतर कभी कश्तियों को,
बिना डुबकियों के नहाना न आया.

Wednesday, January 30, 2013

बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते

ओ. बी. ओ. तरही मुशायरा अंक-३१ हेतु लिखी ग़ज़ल.

(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)
(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२ )

बिना तेरे दिन हैं जुदाई के खलते,
कटे रात तन्हा टहलते - टहलते,

समय ने चली चाल ऐसी की प्राणी,
बदलता गया है बदलते - बदलते,

गिरे जो नज़र से फिसल के जरा भी,
उमर जाए फिर तो निकलते-निकलते,

किया शक हमेशा मेरी दिल्लगी पे,
यकीं जब हुआ रह गए हाँथ मलते,

भरम ही सही यार तेरी वफ़ा का,
जिए जा रहा हूँ ये आदत के चलते,

गुनाहों का मालिक खुदा बन गया है,
भलों को नहीं हैं भले काम फलते,

दवा से दुआ से नहीं तो नशे से,
बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते.

Sunday, January 27, 2013

कभी खाने के लाले हैं

ग़ज़ल
वज्न : 1222 , 1222

कभी पैसों की किल्लत तो,
कभी खाने के लाले हैं,

हमीं तो इक नहीं जख्मी,
हजारों दर्द वाले हैं,

कई हैरान रातों से,
किसी के दिन भी काले हैं,

सभी अच्छे यहाँ देखो,
मुसीबत के हवाले हैं,

गुनाहों के सभी मालिक,
कतल का शौक पाले हैं,

धुले हैं दूध के लेकिन,
नियत में खोट जाले हैं,

शराफत में शरीफों की,
जुबां पे आज ताले हैं,

बुरा ना मानना यारों,
जरा कातिब दिवाले हैं.
 
कातिब - लेखक, लिपिक
 

Friday, January 25, 2013

नतीजा न निकला मेरे प्यार का

ग़ज़ल
वज्न : 122 , 122 , 122 , 12

तुझे हम नयन में बसा ले चले,
मुहब्बत का सारा मज़ा ले चले,

चली छूरियां हैं जिगर पे निहाँ,
छिपाए जखम दिल ठगा ले चले,

तबीयत जो मचली तेरी याद में,
उमर भर अलग सा नशा ले चले,

कटे रात दिन हैं तेरे जिक्र में,
अजब सी ये आदत लगा ले चले,

नतीजा न निकला मेरे प्यार का,
ये कैसा नसीबा लिखा ले चले.....


निहाँ - गुप्त चोरी-छुपे

Wednesday, January 23, 2013

अदब से सिरों का झुकाना ख़तम

ख़ुशी का हँसी का ठिकाना ख़तम,
घरों में दियों का जलाना ख़तम,

बड़ों के कहे का नहीं मान है,  
अदब से सिरों का झुकाना ख़तम,

कहाँ हीर राँझा रहे आज कल,  
दिवानी ख़तम वो दिवाना ख़तम,

नियत डगमगाती सभी नारि पे,  
दिलों का सही दिल लगाना ख़तम,

गुनाहों कि आई हवा जोर से,  
शरम लाज का अब ज़माना खतम,

मुलाकात का तो समय ही नहीं,  
मनाना ख़तम रूठ जाना ख़तम,

जुबां पे नये गीत सजने लगे,
पुराना सुना हर तराना ख़तम.....

Sunday, January 20, 2013

क्या खुदा भगवान आदम???

खो रहा पहचान आदम,
हो रहा शैतान आदम,


चोर मन ले फिर रहा है,  
कोयले की खान आदम,


नारि पे ताकत दिखाए,  
जंतु से हैवान आदम,


मौत आनी है समय पे,  
जान कर अंजान आदम,


सोंचता है सोंच नीची,  
बो रहा अपमान आदम,


मौज में सारे कुकर्मी,
क्या खुदा भगवान आदम???

Friday, January 18, 2013

खरामा - खरामा

खरामा - खरामा चली जिंदगी,
खरामा - खरामा घुटन बेबसी,

भरी रात दिन है नमी आँख में,
खरामा - खरामा लुटी हर ख़ुशी,

अचानक से मेरा गया बाकपन,
खरामा - खरामा गई सादगी,

शरम का ख़तम दौर हो सा गया,
खरामा - खरामा मची गन्दगी,

जमाना भलाई का गुम हो गया,
खरामा - खरामा बुरा आदमी,

जुबां पे रखी स्वाद की गोलियां,
खरामा - खरामा जहर सी लगी.