ये लौ बुझनी है साँसों की,
जल-2 कर तन के चूल्हों में,
सोने-चाँदी का क्या करना,
इक दिन मिलना है धूलों में,
काँटों से डर कर क्यूँ जीना,
जी भर सोना है फूलों में,
सबके कंधे झुक जाते हैं,
जब कर बढ़ता है मूलों में,
हर पल जीता है मरता है,
झूले जो दिल के झूलों में,