नित नैनो में गन्दगी, होती रही विराज..
कालंकित होता रहा, चुप्पी धरे समाज..
सज्जनता है मिट गई, और गया व्यवहार.
नहीं पुरातन सभ्यता, नहीं तीज त्योहार.
कोमलता भीतर नहीं, नहीं जिगर में पीर.
बहुत दुशाशन हैं यहाँ, इक नहि अर्जुन वीर.
अनहोनी होने लगी, गया भरोसा टूट ।
खुलेआम अब हो रही, मर्यादा की लूट ।।
खुलेआम अब हो रही, मर्यादा की लूट ।।
गलत विचारों को लिए, फिरते दुर्जन लोग ।
कटु भाषा हैं बोलते, और परोसें रोग ।।
सदाचार है लुट गया, और गया विश्वास ।
घटनाएं यूँ देखके, मन है हुआ उदास ।।
बिना बात उलझो नहीं, करो न वाद-विवाद.
ढाई आखर प्रेम के, शब्द -शब्द में स्वाद...