
Friday, April 25, 2025 10:00:22 PM
Sunday, March 10, 2013
Wednesday, March 6, 2013
कुण्डलिया
भारत की सरकार में , शकुनी जैसे लोग,
आम आदमी के लिए , नित्य परोसें रोग
आम आदमी के लिए , नित्य परोसें रोग
नित्य परोसें रोग , नहीं मिलता छुटकारा,
ढूँढे कौन उपाय , हुआ मानव बेचारा
महिलायें हर रोज , अपना मान हैं हारत,
बदले रीति रिवाज, बदलता जाए भारत...
Friday, March 1, 2013
चंद - पंक्तियाँ
1.
मेरी कीमत लगाता बजारों में था.
वो जो मेरे लिए इक हजारों में था.
कब्र की मुझको दो गज जमीं ना मिली,
आशियाँ उसका देखो सितारों में था.
2.
लाखों उपाय दिलको मनाने में लग गए,
तुमको कई जनम भुलाने में लग गए,
निकले थे घर से हम भी गुस्से में रूठ के,
कांटे तमाम वापस आने में लग गए,
3.
गुलशन लुटा दिल का बाजार ख़तम,
उनमें हमारे वास्ते था प्यार ख़तम,
सोंचा थी जिंदगी थोड़ी सी प्यार की
जीने के आज सारे आसार ख़तम,
4.
गुलशन में फूल मेरे खिलते हैं आपसे,
ख्वाबों में रोज घंटों मिलते हैं आपसे,
खिल के है मुस्कुराई थी मायूस जिंदगी,
सदियों के जख्म गहरे सिलते हैं आपसे..
Thursday, February 28, 2013
राष्ट्र हित मे आप भी जुड़िये इस मुहिम से ...
राष्ट्र हित मे आप भी जुड़िये इस मुहिम से ...
http://jaagosonewalo.blogspot.in/2013/02/blog-post_27.html
At least 9 blogs are now carrying the Hindi version of the Netaji
mystery inquiry petition. Can anyone translate the same petition in
Bangla, Tamil, Gujarati or and any other language please?
जबकि
आज हर भारतीय ने नेताजी के आसपास के विवाद के बारे में सुना है, बहुत कम
लोग जानते हैं कि तीन सबसे मौजूदा सिद्धांतों के संभावित हल वास्तव में
उत्तर प्रदेश में केंद्रित है| संक्षेप में, नेताजी के साथ जो भी हुआ उसे
समझाने के लिए हमारे सामने आज केवल तीन विकल्प हैं: या तो ताइवान में उनकी
मृत्यु हो गई, या रूस या फिर फैजाबाद में |
1985 में जब एक
रहस्यमय, अनदेखे संत “भगवनजी” के निधन की सूचना मिली, तब उनकी पहचान के
बारे में विवाद फैजाबाद में उभर आया था, और जल्द ही पूरे देश भर की
सुर्खियों में प्रमुख्यता से बन गया| यह कहा गया कि यह संत वास्तव में
सुभाष चंद्र बोस थे। बाद में, जब स्थानीय पत्रकारिता ने जांच कर इस कोण को
सही ठहराया, तब नेताजी की भतीजी ललिता बोस ने एक उचित जांच के लिए उच्च
न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
http://tamasha-e-zindagi.blogspot.com/2013/02/blog-post_27.html
http://www.hansteraho.com/2013/02/blog-post_27.html
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http://archanachaoji.blogspot.com/2013/02/blog-post_27.html
http://kalptaru.blogspot.com/2013/02/blog-post_27.html
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जबकि आज हर भारतीय ने नेताजी के आसपास के विवाद के बारे में सुना है, बहुत कम लोग जानते हैं कि तीन सबसे मौजूदा सिद्धांतों के संभावित हल वास्तव में उत्तर प्रदेश में केंद्रित है| संक्षेप में, नेताजी के साथ जो भी हुआ उसे समझाने के लिए हमारे सामने आज केवल तीन विकल्प हैं: या तो ताइवान में उनकी मृत्यु हो गई, या रूस या फिर फैजाबाद में |
1985 में जब एक रहस्यमय, अनदेखे संत “भगवनजी” के निधन की सूचना मिली, तब उनकी पहचान के बारे में विवाद फैजाबाद में उभर आया था, और जल्द ही पूरे देश भर की सुर्खियों में प्रमुख्यता से बन गया| यह कहा गया कि यह संत वास्तव में सुभाष चंद्र बोस थे। बाद में, जब स्थानीय पत्रकारिता ने जांच कर इस कोण को सही ठहराया, तब नेताजी की भतीजी ललिता बोस ने एक उचित जांच के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
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1985 में जब एक रहस्यमय, अनदेखे संत “भगवनजी” के निधन की सूचना मिली, तब उनकी पहचान के बारे में विवाद फैजाबाद में उभर आया था, और जल्द ही पूरे देश भर की सुर्खियों में प्रमुख्यता से बन गया| यह कहा गया कि यह संत वास्तव में सुभाष चंद्र बोस थे। बाद में, जब स्थानीय पत्रकारिता ने जांच कर इस कोण को सही ठहराया, तब नेताजी की भतीजी ललिता बोस ने एक उचित जांच के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
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Sunday, February 24, 2013
ग़ज़ल : जिद में
1. बह्र : मुतकारिब
मुसम्मन सालिम
दिलों की कहानी बनाने की जिद में,
लुटा दिल मेरा प्यार पाने की जिद में,
बिना जिसके जीना मुनासिब नहीं था,
उसे खो दिया आजमाने की जिद में,
मिली कब ख़ुशी दुश्मनी में किसी को,
ख़तम हो गया सब निभाने की जिद में,
घुटन बेबसी लौट घर फिर से आई,
रहा कुछ नहीं सब बचाने की जिद में,
तमाशा बना जिंदगी का हमेशा,
शराफत से सर ये झुकाने की जिद में....
Thursday, February 21, 2013
ग़ज़ल : समन्दर
सभी को लगे खूब प्यारा समन्दर,
सुहाना ये नमकीन खारा समन्दर,
नसीबा के चलते गई डूब कश्ती,
मगर दोष पाये बेचारा समन्दर,
दिनों रात लहरों से करता लड़ाई,
थका ना रुका ना ही हारा समन्दर,
कई राज गहरे छुपाकर रखे है,
नहीं खोलता है पिटारा समन्दर,
सुबह शाम चाहे कड़ी दोपहर हो,
हजारों का इक बस सहारा समन्दर.
Sunday, February 17, 2013
बसंत - गीत
जब ऋतुराज विहँस आता है,तन-मन निखर-निखर जाता है
पुलकित होकर मन गाता है , प्यारा यह मौसम भाता है
पुलकित होकर मन गाता है , प्यारा यह मौसम भाता है
अमराई बौराई फिर से , हरियाली लहराई फिर से,
कोयल फिर उपवन में बोले, मीठी-मीठी मिश्री घोले,
हृदय लुटाता प्रणय जताता, भ्रमर कली पर मंडराता है.
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम भाता है.
बाली गेहूँ की लहराई, झूमी मदमाती पुरवाई,
पागल है भौंरा फूलों में, झूले मेरा मन झूलों में,
मस्ती में सरसों का सुन्दर, पीला आँचल लहराता है.
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम भाता है.
पेड़ों में नवपल्लव साजे, ढोल मँजीरा घर-घर बाजे,
महकी फूलों की फुलवारी, सजी धरा दुल्हन सी प्यारी,
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम भाता है.
पेड़ों में नवपल्लव साजे, ढोल मँजीरा घर-घर बाजे,
महकी फूलों की फुलवारी, सजी धरा दुल्हन सी प्यारी,
धीमी-मध्यम तेजी गति से, बादल नभ में मँडराता है.
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम भाता है.
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम भाता है.
Wednesday, February 13, 2013
लुटा है चमन मुस्कुराने की जिद में
बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
महक कर सभी को लुभाने कि जिद में,
लुटा है चमन मुस्कुराने कि जिद में,
कहीं खो गई रौशनी कुछ समय की,
निगाहें रवी से मिलाने कि जिद में,
निगाहें रवी से मिलाने कि जिद में,
करूँ क्या करूँ याद वो फिर न आये,
सुबह हो गई भूल जाने कि जिद में,
सुबह हो गई भूल जाने कि जिद में,
गलतकाम करने लगा है जमाना,
बड़ा सबसे खुद को बनाने कि जिद में,
बड़ा सबसे खुद को बनाने कि जिद में,
अँधेरा हुआ दिन-ब-दिन और गहरा,
उजाला जहाँ से मिटाने कि जिद में,
उजाला जहाँ से मिटाने कि जिद में,
Thursday, February 7, 2013
समंदर बचाना
नया इक फ़साना,
बुने दिल दिवाना,
दुखों से लबालब,
भरा है जमाना,
न कर दोस्ती दिल,
न दुश्मन बनाना,
कहाँ हो सुनो भी,
जरा पास आना,
कहो ठोकरों से,
कि चलना सिखाना,
बही हैं निगाहें,
समंदर बचाना,
नहीं प्रेम रस तो,
जहर ही पिलाना...
Monday, February 4, 2013
दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है
.................ग़ज़ल.................
(बह्र: बहरे मुजारे मुसमन अखरब)
(वज्न: २२१, २१२२, २२१, २१२२)
दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है,
जिन्दा हमारे भीतर शैतान हो रहा है,
जुल्मो सितम तबाही फैली कदम-२ पे,
अपराध आज इतना आसान हो रहा है,
इन्साफ की डगर में उभरे तमाम कांटे,
मासूम मुश्किलों में कुर्बान हो रहा है,
कुदरत दिखा करिश्मा संसार को बचा ले,
जलके तेरा जमाना शमशान हो रहा है,
खामोश देख रब को रोया उदास भी हूँ,
पिघला नहीं खुदा दिल हैरान हो रहा है...
(बह्र: बहरे मुजारे मुसमन अखरब)
(वज्न: २२१, २१२२, २२१, २१२२)
दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है,
जिन्दा हमारे भीतर शैतान हो रहा है,
जुल्मो सितम तबाही फैली कदम-२ पे,
अपराध आज इतना आसान हो रहा है,
इन्साफ की डगर में उभरे तमाम कांटे,
मासूम मुश्किलों में कुर्बान हो रहा है,
कुदरत दिखा करिश्मा संसार को बचा ले,
जलके तेरा जमाना शमशान हो रहा है,
खामोश देख रब को रोया उदास भी हूँ,
पिघला नहीं खुदा दिल हैरान हो रहा है...
Friday, February 1, 2013
बुना कैसे जाये फ़साना न आया
(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)
(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२)
बुना कैसे जाये फ़साना न आया,
दिलों का ये रिश्ता निभाना न आया,
दिलों का ये रिश्ता निभाना न आया,
लुटाते रहे दौलतें दूसरों पर,
पिता माँ का खर्चा उठाना न आया,
पिता माँ का खर्चा उठाना न आया,
चला कारवां चार कंधों पे सजकर,
हुनर था बहुत पर जिलाना न आया,
हुनर था बहुत पर जिलाना न आया,
दिलासा सभी को सभी बाँटते हैं,
खुदी को कभी पर दिलाना न आया,
खुदी को कभी पर दिलाना न आया,
जहर से भरा तीर नैनों से मारा,
जरा सा भी खुद को बचाना न आया,
जरा सा भी खुद को बचाना न आया,
किताबें न कुछ बांचने से मिलेगा,
बिना ज्ञान दर्पण दिखाना न आया,
बिना ज्ञान दर्पण दिखाना न आया,
बुढ़ापे ने दी जबसे दस्तक उमर पे,
रुके ये कदम फिर चलाना न आया,
रुके ये कदम फिर चलाना न आया,
मुहब्बत का मैंने दिया बेसुधी में,
बुझा तो दिया पर जलाना न आया,
बुझा तो दिया पर जलाना न आया,
समंदर के भीतर कभी कश्तियों को,
बिना डुबकियों के नहाना न आया.
बिना डुबकियों के नहाना न आया.
Wednesday, January 30, 2013
बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते
ओ. बी. ओ. तरही मुशायरा अंक-३१ हेतु लिखी ग़ज़ल.
(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)
(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२ )
बिना तेरे दिन हैं जुदाई के खलते,
कटे रात तन्हा टहलते - टहलते,
समय ने चली चाल ऐसी की प्राणी,
बदलता गया है बदलते - बदलते,
गिरे जो नज़र से फिसल के जरा भी,
उमर जाए फिर तो निकलते-निकलते,
किया शक हमेशा मेरी दिल्लगी पे,
यकीं जब हुआ रह गए हाँथ मलते,
भरम ही सही यार तेरी वफ़ा का,
जिए जा रहा हूँ ये आदत के चलते,
गुनाहों का मालिक खुदा बन गया है,
भलों को नहीं हैं भले काम फलते,
दवा से दुआ से नहीं तो नशे से,
बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते.
Sunday, January 27, 2013
कभी खाने के लाले हैं
ग़ज़ल
वज्न : 1222 , 1222
कभी पैसों की किल्लत तो,
कभी खाने के लाले हैं,
हमीं तो इक नहीं जख्मी,
हजारों दर्द वाले हैं,
कई हैरान रातों से,
किसी के दिन भी काले हैं,
सभी अच्छे यहाँ देखो,
मुसीबत के हवाले हैं,
गुनाहों के सभी मालिक,
कतल का शौक पाले हैं,
धुले हैं दूध के लेकिन,
नियत में खोट जाले हैं,
शराफत में शरीफों की,
जुबां पे आज ताले हैं,
बुरा ना मानना यारों,
जरा कातिब दिवाले हैं.
कातिब - लेखक, लिपिक
Friday, January 25, 2013
नतीजा न निकला मेरे प्यार का
ग़ज़ल
वज्न : 122 , 122 , 122 , 12
तुझे हम नयन में बसा ले चले,
मुहब्बत का सारा मज़ा ले चले,
चली छूरियां हैं जिगर पे निहाँ,
छिपाए जखम दिल ठगा ले चले,
तबीयत जो मचली तेरी याद में,
उमर भर अलग सा नशा ले चले,
कटे रात दिन हैं तेरे जिक्र में,
अजब सी ये आदत लगा ले चले,
नतीजा न निकला मेरे प्यार का,
ये कैसा नसीबा लिखा ले चले.....
वज्न : 122 , 122 , 122 , 12
तुझे हम नयन में बसा ले चले,
मुहब्बत का सारा मज़ा ले चले,
चली छूरियां हैं जिगर पे निहाँ,
छिपाए जखम दिल ठगा ले चले,
तबीयत जो मचली तेरी याद में,
उमर भर अलग सा नशा ले चले,
कटे रात दिन हैं तेरे जिक्र में,
अजब सी ये आदत लगा ले चले,
नतीजा न निकला मेरे प्यार का,
ये कैसा नसीबा लिखा ले चले.....
निहाँ - गुप्त चोरी-छुपे
Wednesday, January 23, 2013
अदब से सिरों का झुकाना ख़तम
ख़ुशी का हँसी का ठिकाना ख़तम,
घरों में दियों का जलाना ख़तम,
घरों में दियों का जलाना ख़तम,
बड़ों के कहे का नहीं मान है,
अदब से सिरों का झुकाना ख़तम,
अदब से सिरों का झुकाना ख़तम,
कहाँ हीर राँझा रहे आज कल,
दिवानी ख़तम वो दिवाना ख़तम,
दिवानी ख़तम वो दिवाना ख़तम,
नियत डगमगाती सभी नारि पे,
दिलों का सही दिल लगाना ख़तम,
दिलों का सही दिल लगाना ख़तम,
गुनाहों कि आई हवा जोर से,
शरम लाज का अब ज़माना खतम,
शरम लाज का अब ज़माना खतम,
मुलाकात का तो समय ही नहीं,
मनाना ख़तम रूठ जाना ख़तम,
मनाना ख़तम रूठ जाना ख़तम,
जुबां पे नये गीत सजने लगे,
पुराना सुना हर तराना ख़तम.....
पुराना सुना हर तराना ख़तम.....
Sunday, January 20, 2013
क्या खुदा भगवान आदम???
खो रहा पहचान आदम,
हो रहा शैतान आदम,
हो रहा शैतान आदम,
चोर मन ले फिर रहा है,
कोयले की खान आदम,
कोयले की खान आदम,
नारि पे ताकत दिखाए,
जंतु से हैवान आदम,
जंतु से हैवान आदम,
मौत आनी है समय पे,
जान कर अंजान आदम,
जान कर अंजान आदम,
सोंचता है सोंच नीची,
बो रहा अपमान आदम,
बो रहा अपमान आदम,
मौज में सारे कुकर्मी,
क्या खुदा भगवान आदम???
क्या खुदा भगवान आदम???
Friday, January 18, 2013
खरामा - खरामा
खरामा - खरामा चली जिंदगी,
खरामा - खरामा घुटन बेबसी,
भरी रात दिन है नमी आँख में,
खरामा - खरामा लुटी हर ख़ुशी,
अचानक से मेरा गया बाकपन,
खरामा - खरामा गई सादगी,
शरम का ख़तम दौर हो सा गया,
खरामा - खरामा मची गन्दगी,
जमाना भलाई का गुम हो गया,
खरामा - खरामा बुरा आदमी,
जुबां पे रखी स्वाद की गोलियां,
खरामा - खरामा जहर सी लगी.
प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है
(बह्र: रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन)
वज्न : 2122, 1122, 1122, 22
चोर की भांति मेरी ओर नज़र करती है,
प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है,
फूल से गाल तेरे बाल तेरे रेशम से,
चाल हिरनी सी मेरी जान दुभर करती है,
धूप सा रूप तेरा और कली सी आदत,
बात खुशबू को लिए साथ सफ़र करती है,
कौन मदहोश न हो देख तेरी रंगत को,
शर्म की डाल झुकी घाव जबर करती है,
मार डाले न मुझे चाह तुझे पाने की,
मौत के पास मुझे रोज उमर करती है..
वज्न : 2122, 1122, 1122, 22
चोर की भांति मेरी ओर नज़र करती है,
प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है,
फूल से गाल तेरे बाल तेरे रेशम से,
चाल हिरनी सी मेरी जान दुभर करती है,
धूप सा रूप तेरा और कली सी आदत,
बात खुशबू को लिए साथ सफ़र करती है,
कौन मदहोश न हो देख तेरी रंगत को,
शर्म की डाल झुकी घाव जबर करती है,
मार डाले न मुझे चाह तुझे पाने की,
मौत के पास मुझे रोज उमर करती है..
Saturday, January 12, 2013
हद है
मान है सम्मान गर दौलत नगद है .. हद है,
लोभ बिन इंसान कब करता मदद है .. हद है,
लोभ बिन इंसान कब करता मदद है .. हद है,
हाल मैं ससुराल का कैसे बताऊँ सखियों,
सास बैरी है बहुत तीखी ननद है .. हद है,
सास बैरी है बहुत तीखी ननद है .. हद है,
स्वाद चखते थे कभी हम स्नेह की बातों का,
आज जहरीली जुबां कड़वा शबद है .. हद है,
आज जहरीली जुबां कड़वा शबद है .. हद है,
कौन अपना है पराया है हमे क्या मालुम,
प्रेम का रस जान लेवा इक शहद है .. हद है,
प्रेम का रस जान लेवा इक शहद है .. हद है,
भूल मुझको जो गई यादों के हर लम्हों से,
जिंदगी उसके की ख्यालों की सुखद है .. हद है.
जिंदगी उसके की ख्यालों की सुखद है .. हद है.
Wednesday, January 9, 2013
कलियुग मेरे भगवान अब तत्काल बदलो
इंसान की फितरत खुदा हर हाल बदलो,
थोड़ी समय की गति जरा सी चाल बदलो,
खोटी नज़र के लोग अब बढ़ने लगे हैं,
आदत निगाहों की गलत इस साल बदलो,
जीना नहीं आसान इस दौरे जहाँ में,
अपमान ये घृणा बुरा हर ख्याल बदलो,
नारी नहीं सुरक्षित दरिंदों की नज़र से,
कमजोरियां ये नारिओं की ढाल बदलो,
लाखों शिकारी भीड़ में हर ओर फैले,
सरकार है बेकार शासनकाल बदलो,
नारद उठाओ प्रभु को किस्सा सुनाओ,
कलियुग मेरे भगवान अब तत्काल बदलो.
Monday, January 7, 2013
संकल्प
संकल्प है अंधेर की नगरी मिटानी है,
संकल्प है अपमान की गर्दन उड़ानी है,
दुश्मन हो बेशक मेरी लेखनी समाज की,
संकल्प है इन्सान की सीमा बतानी है,
अंग्रेज जिस तरह से हिंदी को खा रहे,
संकल्प है अंग्रेजों को हिंदी सिखानी है,
बहरे हुए हैं जो-जो अंधों के राज में,
संकल्प है आवाज की ताकत दिखानी है,
रीति -रिवाज भूले फैशन के दौर में,
संकल्प है आदर की चादर बिछानी है,
भटकी है युवा पीढ़ी दौलत की चाह में,
संकल्प है शिक्षा की सही लौ जलानी है....
Thursday, January 3, 2013
दानव का किरदार ले गए
जीने के आसार ले गए,
जीवन का आधार ले गए,
भूखों की पतवार ले गए,
लूटपाट घरबार ले गए,
छीनछान व्यापार ले गए,
दौलत देश के पार ले गए,
खुशियों के बाज़ार ले गए,
औषधि और उपचार ले गए,
सारा आदर सत्कार ले गए,
प्रेम भाव त्यौहार ले गए,
पेट्रोल बढ़ाया कार ले गए,
गाड़ी मेरी मार ले गए,
खुद्दारी खुद्दार ले गए,
दानव का किरदार ले गए.
Monday, December 31, 2012
जब बुढ़ापे का - खुदा दे के सहारा छीने
ओ. बी. ओ. तरही मुशायरा अंक ३० में शामिल मेरी दूसरी ग़ज़ल
मौत को दूर, मुसीबत बेअसर करती है,
गर दुआ प्यार भरी, साथ सफ़र करती है,
जान लेवा ये तेरी, शोख़ अदा है कातिल,
वार पे वार, कई बार नज़र करती है,
देख के तुम न डरो, तेज हवा का झोंका,
राज की बात हवा, दिल को खबर करती है,
फासले बीच भले, लाख रहे हों हरदम,
फैसला प्यार का, तकदीर मगर करती है,
जख्म से दर्द मिले, पीर मिले चाहत से,
प्यार की मार सदा, घाव जबर करती है,
जब बुढ़ापे का, खुदा दे के सहारा छीने,
रात अंगारों के, बिस्तर पे बसर करती है...
गर दुआ प्यार भरी, साथ सफ़र करती है,
जान लेवा ये तेरी, शोख़ अदा है कातिल,
वार पे वार, कई बार नज़र करती है,
देख के तुम न डरो, तेज हवा का झोंका,
राज की बात हवा, दिल को खबर करती है,
फासले बीच भले, लाख रहे हों हरदम,
फैसला प्यार का, तकदीर मगर करती है,
जख्म से दर्द मिले, पीर मिले चाहत से,
प्यार की मार सदा, घाव जबर करती है,
जब बुढ़ापे का, खुदा दे के सहारा छीने,
रात अंगारों के, बिस्तर पे बसर करती है...
Saturday, December 29, 2012
जिंदगी मौत के कदमो पे सफ़र करती है
"ओ बी ओ तरही मुशायरा" अंक ३० में शामिल मेरी पहली ग़ज़ल.
दिल्लगी यार की बेकार हुनर करती है,
मार के चोट वो गम़ख्व़ार फ़िकर करती है,
इन्तहां याद की जब पार करे हद यारों,
रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है,
आरजू है की तुझे भूल भुला मैं जाऊं,
चाह हर बार तेरी पास मगर करती है,
देखने की तुझे न चाह न कोई हसरत,
माफ़ करना जो ये गुस्ताख नज़र करती है,
मुश्किलें दूर कहीं छोड़ मुझे ना जाएँ,
जिंदगी मौत के कदमो पे सफ़र करती है,
सामने प्यार बहुत और बुराई पीछे,
इक यही बात तेरी दिल पे असर करती है.
गम़ख्व़ार - दिलासा देते हुए
दिल्लगी यार की बेकार हुनर करती है,
मार के चोट वो गम़ख्व़ार फ़िकर करती है,
इन्तहां याद की जब पार करे हद यारों,
रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है,
आरजू है की तुझे भूल भुला मैं जाऊं,
चाह हर बार तेरी पास मगर करती है,
देखने की तुझे न चाह न कोई हसरत,
माफ़ करना जो ये गुस्ताख नज़र करती है,
मुश्किलें दूर कहीं छोड़ मुझे ना जाएँ,
जिंदगी मौत के कदमो पे सफ़र करती है,
सामने प्यार बहुत और बुराई पीछे,
इक यही बात तेरी दिल पे असर करती है.
गम़ख्व़ार - दिलासा देते हुए
Friday, December 28, 2012
कुण्डलिया प्रथम प्रयास
आदरणीय श्री अरुण कुमार निगम सर के द्वारा संशोधित कुण्डलिया प्रथम प्रयास
सोवत जागत हर पिता, करता रहता जाप,
रखना बिटिया को सुखी, हे नारायण आप
रखना बिटिया को सुखी, हे नारायण आप
हे नारायण आप , कृपा अपनी बरसाना
मिले मान सम्मान,मिले ससुराल सुहाना
मिले मान सम्मान,मिले ससुराल सुहाना
बीते जीवन नित्य,प्रेम के पुष्प पिरोवत
अधरों पर मुस्कान,सदा हो जागत सोवत
Thursday, December 27, 2012
तुम न मुझको भूल जाना
तुम न मुझको भूल जाना,
याद करना याद आना,
याद करना याद आना,
जिंदगी तेरे हवाले,
छोड़ दो या मार जाना,
छोड़ दो या मार जाना,
प्यार तेरा बंदगी है,
आज है तुझको बताना,
आज है तुझको बताना,
चाहते हैं लोग सारे,
दाग से दामन बचाना,
दाग से दामन बचाना,
ठीक ये बिलकुल नहीं है,
हार कर आंसू बहाना .....
हार कर आंसू बहाना .....
Monday, December 24, 2012
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता
यही देश था वीरों की गाता अद्भुत गाथा,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
कभी यहाँ प्रेम -सभ्यता की भी बात निराली,
आज यहाँ प्रणाम नमस्ते से आगे है गाली,
इक मसीहा नहीं बचा है कौन करे रखवाली,
शहरों में तब्दील हो रहा प्रकृति की हरियाली,
आज इसी धरती पे प्राणी को प्राणी है खाता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
घटती हैं हर रोज हजारों शर्मसार घटनाएं,
काम दरिंदो से बद्तर, खुद को पुरुष बताएं,
पान सुपारी ध्वजा नारियल जो हैं रोज चढ़ाएं,
जनता का धन लूटपाट के अपना काम चलाएं,
अपना ही व्यख्यान सुनाकर फूले नहीं समाता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
होंठों पे सौ किलो चासनी दिल में पर मक्कारी,
बुरी नज़र की दृष्टि कोण से देखी जाएँ नारी,
भ्रष्टाचार ले आया है भारत में लाचारी,
अब जनता की खैर नहीं फैली अजब बिमारी,
ऐसी हालत देख खड़ा बुत भी है शर्माता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
कभी यहाँ प्रेम -सभ्यता की भी बात निराली,
आज यहाँ प्रणाम नमस्ते से आगे है गाली,
इक मसीहा नहीं बचा है कौन करे रखवाली,
शहरों में तब्दील हो रहा प्रकृति की हरियाली,
आज इसी धरती पे प्राणी को प्राणी है खाता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
घटती हैं हर रोज हजारों शर्मसार घटनाएं,
काम दरिंदो से बद्तर, खुद को पुरुष बताएं,
पान सुपारी ध्वजा नारियल जो हैं रोज चढ़ाएं,
जनता का धन लूटपाट के अपना काम चलाएं,
अपना ही व्यख्यान सुनाकर फूले नहीं समाता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
होंठों पे सौ किलो चासनी दिल में पर मक्कारी,
बुरी नज़र की दृष्टि कोण से देखी जाएँ नारी,
भ्रष्टाचार ले आया है भारत में लाचारी,
अब जनता की खैर नहीं फैली अजब बिमारी,
ऐसी हालत देख खड़ा बुत भी है शर्माता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
Saturday, December 22, 2012
उठे दर्द जब और उमड़े समंदर
लगी आग जलके, हुआ राख मंजर,
जुबां सुर्ख मेरी, निगाहें सरोवर,
जुबां सुर्ख मेरी, निगाहें सरोवर,
लुटा चैन मेरा, गई नींद मेरी,
मुहब्बत दिखाए, दिनों रात तेवर,
मुहब्बत दिखाए, दिनों रात तेवर,
सुबह दोपहर हर घड़ी शाम हरपल,
रही याद तेरी हमेशा धरोहर,
रही याद तेरी हमेशा धरोहर,
गिला जिंदगी से रहा हर कदम पे,
बिताता समय हूँ दिनों रात रोकर,
बिताता समय हूँ दिनों रात रोकर,
दिलासा दुआ ना दवा काम आये,
उठे दर्द जब और उमड़े समंदर.
उठे दर्द जब और उमड़े समंदर.
Thursday, December 20, 2012
ओ. बी. ओ. "चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता" अंक-21 के लिए लिखी रचना
भीग-भीग बरसात में, सड़ता रहा अनाज,
गूंगा बना समाज है, अंधों का है राज,
देखा हर इंसान का , अलग-अलग अंदाज,
धनी रोटियां फेंकता, दींन है मोहताज,
दौलत की लालच हुई, बेंचा सर का ताज,
अब सुनता कोई नहीं, भूखों की आवाज,
कहते अनाज देवता, फिर भी यह अपमान,
सच बोलूं भगवान मैं, बदल गया इंसान,
काम न आया जीव के, सरकारी यह भोज,
पाते भूखे पेट जो, जीते वे कुछ रोज...
Sunday, December 16, 2012
लड़खड़ाते पांव मेरे - जबकि मैं पीता नहीं
याद में तेरी जिऊँ, मैं आज में जीता नहीं,
लड़खड़ाते पांव मेरे, जबकि मैं पीता नहीं,
लड़खड़ाते पांव मेरे, जबकि मैं पीता नहीं,
नाज़ नखरे रख रखें हैं, आज भी संभाल के,
मैं नहीं इतिहास फिरभी, सार या गीता नहीं,
मैं नहीं इतिहास फिरभी, सार या गीता नहीं,
तोलना है तोल लो तुम, नापना है नाप लो,
प्यार मेरा है समंदर, यार दो बीता नहीं,
प्यार मेरा है समंदर, यार दो बीता नहीं,
आह निकलेगी नहीं, तुम लाख चाहो भी सनम,
दर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,
दर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,
चाहता हूँ भूलके सब, दो कदम आगे चलूँ,
और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.
और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.
Saturday, December 15, 2012
टूटता ये दिल रहा है जिंदगी भर
टूटता ये दिल रहा है जिंदगी भर,
दर्द ही हासिल रहा है जिंदगी भर,
दर्द ही हासिल रहा है जिंदगी भर,
अधमरा हर बार मुझको छोड़ देना,
मारता तिल-2 रहा है जिंदगी भर,
मारता तिल-2 रहा है जिंदगी भर,
देखकर मुझको निगाहें फेर लेना,
दौर ये मुश्किल रहा है जिंदगी भर,
दौर ये मुश्किल रहा है जिंदगी भर,
बेवजह मुझको मिली बदनामियाँ हैं,
जबकि वो कातिल रहा है जिंदगी भर,
जबकि वो कातिल रहा है जिंदगी भर,
नींद से मैं जाग जाता हूँ अचानक,
खौफ यूँ शामिल रहा है जिंदगी भर,
खौफ यूँ शामिल रहा है जिंदगी भर,
चाह है मैं चाहता उसको रहूँ बस,
इक यही आदिल रहा है जिंदगी भर.
इक यही आदिल रहा है जिंदगी भर.
Friday, December 14, 2012
बूढ़े बाबा की दीवानी
मोटी - मोटी चादर तानी,
फिर भी भीतर घुसकर मानी,
फिर भी भीतर घुसकर मानी,
जाड़े की जारी मनमानी,
बूढ़े बाबा की दीवानी,
बूढ़े बाबा की दीवानी,
दादा - दादी, नाना - नानी,
कहते बख्शो ठंडक रानी,
कहते बख्शो ठंडक रानी,
रविकर किरणें आनी जानी,
पावक लगती ठंडा पानी
पावक लगती ठंडा पानी
देखो जिद मौसम ने ठानी,
बारिश करके की शैतानी,
बारिश करके की शैतानी,
राहें सब जानी पहचानी,
कुहरे ने कर दी अनजानी,
कुहरे ने कर दी अनजानी,
बंधू बोलो मीठी वानी,
सबके मन को है ये भानी.
सबके मन को है ये भानी.
Thursday, December 13, 2012
चाह है उसकी मुझे पागल बनाये
चाह है उसकी मुझे पागल बनाये,
बेवजह उड़ता हुआ बादल बनाये,
लोग देखेंगे जमीं से आसमां तक,
रेत में सूखा घना जंगल बनाये,
जान के दुखती रगों को छेड़कर,
दर्द की थोड़ी बहुत हलचल बनाये,
पास रखना है मुझे हर हाल में,
आँख का सुरमा कभी काजल बनाये,
दौर आया मुश्किलों की ओढ़ चादर,
और वो पत्थर मुझे दलदल बनाये,
मैं रहा तन्हा अकेला जिंदगी भर,
दूर सब अपने खड़े थे दल बनाये,
जान लो वो मार देगा जान से जो,
चासनी लब पर रखे हरपल बनाये....
Monday, December 10, 2012
शीत डाले ठंडी बोरियाँ
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 26 के लिए लिखी रचना "हेमंत ऋतु" पर आधारित
देख माथे की शिकन औ त्योरियाँ,
शीत डाले ढेर ठंडी बोरियाँ,
गोद में अपनी लिटाकर सूर्य को,
गुनगुनाती है सुनाती लोरियाँ,
धुंध को फैला रही है राह में,
बांधती है मुश्किलों की डोरियाँ,
बादलों के बाद रखती आसमां,
धूप की ऐसे करे है चोरियाँ,
सुरसुरी बहती पवन झकझोर दे,
काम खुल्लेआम सीनाजोरियाँ.
Sunday, December 9, 2012
हेमंत ऋतु पर कुछ हाइकू
शीतल जल
रविकर किरण
हिम पिघल
आग जलाई
कहर निरंतर
ओढ़ रजाई
चौपट धंधे
हैं चिंतित किसान
छुपे परिंदे
गर्म तसला
मुरझाई फसल
सूर्य निकला
घना कुहासा
खिलखिले सुमन
शीतल भाषा
पौष से माघ
सुरसुरी पवन
पानी सी आग
शुरू गुलाबी
मानव भयभीत
शिशिर बाकी
रविकर किरण
हिम पिघल
आग जलाई
कहर निरंतर
ओढ़ रजाई
चौपट धंधे
हैं चिंतित किसान
छुपे परिंदे
गर्म तसला
मुरझाई फसल
सूर्य निकला
घना कुहासा
खिलखिले सुमन
शीतल भाषा
पौष से माघ
सुरसुरी पवन
पानी सी आग
शुरू गुलाबी
मानव भयभीत
शिशिर बाकी
Saturday, December 8, 2012
कारवाँ ठंडी हवा का
कारवाँ ठंडी हवा का आ गया है।
धुंध हल्का कोहरा भी छा गया है।। 1
धुंध हल्का कोहरा भी छा गया है।। 1
राह नज़रों को नहीं आती नज़र अब।
कौन है जो रास्तों को खा गया है।। 2
कौन है जो रास्तों को खा गया है।। 2
पांव ठंडे, हाँथ ठंडे - थरथराते।
जान पर जुल्मी कहर बरसा गया है।। 3
जान पर जुल्मी कहर बरसा गया है।। 3
पास घर दौलत नहीं रोटी न कपड़े।
कुछ नसीबा मुश्किलों को भा गया है।। 4
कुछ नसीबा मुश्किलों को भा गया है।। 4
घिर रही घनघोर काली है घटा फिर।
वर्फबारी कर ग़ज़ब रब ढा गया है।। 5
वर्फबारी कर ग़ज़ब रब ढा गया है।। 5
बोल बाला मर्ज का फिर से जगा है।
सर्द सोया दर्द भी भड़का गया है।। 6
सर्द सोया दर्द भी भड़का गया है।। 6
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