आइये आपका स्वागत है

Tuesday, April 22, 2014

ग़ज़ल : मध्य अपने आग जो जलती नहीं संदेह की

ग़ज़ल :
बह्र : रमल मुसम्मन महजूफ

मध्य अपने आग जो जलती नहीं संदेह की,
टूट कर दो भाग में बँटती नहीं इक जिंदगी.

हम गलतफहमी मिटाने की न कोशिश कर सके,
कुछ समय का दोष था कुछ आपसी नाराजगी,

आज क्यों इतनी कमी खलने लगी है आपको,
कल तलक मेरी नहीं स्वीकार थी मौजूदगी,

यूँ धराशायी नहीं ये स्वप्न होते टूटकर,
आखिरी क्षण तक नहीं बहती ये नैनों की नदी,

रात भर करवट बदलना याद करना रात भर,
एक अरसे से यही करवा रही है बेबसी.........

********************
अरुन शर्मा अनन्त
********************

Sunday, March 23, 2014

ग़ज़ल : अरुन शर्मा 'अनन्त'

परस्पर प्रेम का नाता पुरातन छोड़ आया हूँ,
नगर की चाह में मैं गाँव पावन छोड़ आया हूँ,

सरोवर गुल बहारें स्वच्छ उपवन छोड़ आया हूँ.
सुगन्धित धूप से तुलसी का आँगन छोड़ आया हूँ,

कि जिन नैनों में केवल प्रेम का सागर छलकता था,
हमेशा के लिए मैं उनमें सावन छोड़ आया हूँ,

गगनचुम्बी इमारत की लिए मैं लालसा मन में,
बुजुर्गों की हवेली माँ का दामन छोड़ आया हूँ.

मिलन को हर घड़ी व्याकुल तड़पती प्रियतमा का मैं,
विरह की वेदना में टूटता मन छोड़ आया हूँ,

अपरिचित व्यक्तियों से मैं नया रिश्ता बनाने को,
जुड़े बचपन से कितने दिल के बंधन छोड़ आया हूँ.

Thursday, March 13, 2014

गीत : प्रणय - प्रेम

जबसे तुमने प्रेम निमंत्रण स्वीकारा है,
बही हृदय में प्रणय प्रेम की रस धारा है,

मधुर मधुर अहसास अंकुरित होता है,
तन चन्दन की भांति सुगंधित होता है,
जैसे फूलों ने मुझपर गुलशन वारा है,
बही हृदय में प्रणय प्रेम की रस धारा है.

मनभावन मनमोहक सूरत प्यारी सी,
मधुर कंठ मुस्कान मनोरम न्यारी सी,
उज्जवल सूरत देखके होता भिनसारा है,
बही हृदय में प्रणय प्रेम की रस धारा है.

सरस देह सुकुमार लताओं के जैसी,
अनुपम छवि जलजात के सम हृदयस्पर्शी,
अलौकिक श्रृंगार विधाता के द्वारा है,
बही हृदय में प्रणय प्रेम की रस धारा है.

Wednesday, February 26, 2014

कुछ दोहे

सर्वप्रथम ह्रदय लुटे, बाद नींद औ ख्वाब ।
प्रेम रोग सबसे अधिक, घातक और ख़राब ।१।

धीमी गति है स्वास की, और अधर हैं मौन ।
प्रश्न ह्रदय अब पूछता, मुझसे मैं हूँ कौन ।२।

जब जब जकडे देह को, यादों की जंजीर ।
भर भर सावन नैन दो, खूब बहायें नीर ।३।

रुखा सूखा भाग में, कष्ट निहित तकदीर ।
करनी मुश्किल है बयां, व्यथित ह्रदय की पीर ।४।

जीवन भर मजबूरियां, मेरे रहीं करीब ।
सिल ना पाया मैं कभी, अपना फटा नसीब ।५।

Friday, February 21, 2014

कुछ दोहे

प्रेम दिवस में मस्त हो, भूल गए माँ बाप ।
त्रुटियों का आभास ना, और न पश्चाताप ।१।

बदली संस्कृति सभ्यता, बदला है अंदाज ।
संबंधो पर गिर रही, परिवर्तन की गाज ।२।

मैली मन की भावना, दूषित हुए विचार ।
है क्षणभंगुर आजकी, नव पीढ़ी का प्यार ।३।

आजादी है नाम की, नाम मात्र गणतंत्र ।
व्यापित केवल देश में, पाप लोभ षड़यंत्र ।४।

हुआ मान सम्मान का, बंधन है कमजोर ।
बढ़ता जाता है मनुज, स्वयं पतन की ओर ।५।

मानव मस्ती मौज औ, मय की मद में चूर ।
अपने ही करने लगे, जख्मों को नासूर ।६।

Thursday, February 13, 2014

गीत : पुलकित मन का कोना कोना

गीत

पुलकित मन का कोना कोना, दिल की क्यारी पुष्पित है.
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

मिलन तुम्हारा सुखद मनोरम लगता मुझे कुदरती है,
धड़कन भी तुम पर न्योछावर हरपल मिटती मरती है,
गति तुमसे ही है साँसों की, जीवन तुम्हें समर्पित है,
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

चहक उठा है सूना आँगन, महक उठी हैं दीवारें,
खुशियों की भर भर भेजी हैं, बसंत ऋतु ने उपहारें,
बाकी जीवन पूर्णरूप से केवल तुमको अर्पित है,
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

मधुरिम प्रातः सुन्दर संध्या और सलोनी रातें हैं,
भीतर मन में मिश्री घोलें मीठी मीठी बातें हैं,
प्रेम तुम्हारा निर्मल पावन पाकर तनमन हर्षित है,
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

Thursday, February 6, 2014

बसंत के कुछ दोहे

बदला है वातावरण, निकट शरद का अंत ।
शुक्ल पंचमी माघ की, लाये साथ बसंत ।१।

अनुपम मनमोहक छटा, मनभावन अंदाज ।
ह्रदय प्रेम से लूटने, आये हैं ऋतुराज ।२।

धरती का सुन्दर खिला, दुल्हन जैसा रूप ।
इस मौसम में देह को, शीतल लगती धूप ।३।

डाली डाली पेड़ की, डाल नया परिधान ।
आकर्षित मन को करे, फूलों की मुस्कान ।४।

पीली साड़ी डालकर, सरसों खेले फाग ।
मधुर मधुर आवाज में, कोयल गाये राग ।५।

गेहूँ की बाली मगन, इठलाये अत्यंत ।
पुरवाई भी झूमकर, गाये राग बसंत ।६।

पर्व महाशिवरात्रि का, पावन और विशेष ।
होली करे समाज से , दूर बुराई द्वेष ।७।

अद्भुत दिखता पुष्प से, भौरों का अनुराग ।
और सुगन्धित बौर से, लदा आम का बाग़ ।८।

Thursday, January 23, 2014

कुछ दोहे

ओ बी ओ छंदोत्सव में प्रस्तुत पांच दोहे.
************************

 

लिखवा लाई भाग में, गिट्टी गारा रेह ।
झुलस गई है धूप में, तपकर कोमल देह ।।

प्यास बुझाती बैठकर, नैनों को कर बंद ।
कुछ पानी की बूंद का, रोड़ी लें आनंद ।।

रोजी रोटी के लिए, भारी भरकम काम ।
भोर भरोसे राम के, सांझ भरोसे राम ।।

भय कुछ खोने का नहीं, ना पाने की चाह ।
कार्य कार्य बस कार्य में, जीवन हुआ तबाह ।।

जितना किस्मत से मिला, उतने में संतोष ।
ना खुशियों की लालसा, ना कष्टों से रोष ।।

************
अरुन शर्मा अनन्त
************

Monday, December 23, 2013

आखिरी लम्हा सफ़र का पर निराला दे.

छल कपट लालच बुराई को निकाला दे,
जग हुआ अंधा अँधेरे से, उजाला दे,

झूठ हिंसा पाप से सबको बचा या रब,
शान्ति सुख संतोष देती पाठशाला दे,

शुद्धता जिसमें घुली हो जिसमें सच्चाई,
प्रेम से गूँथी हुई हाथों में माला दे,

स्वर्ण आभूषण की मुझको है नहीं चाहत,
भूख मिट जाए कि उतना ही निवाला दे,

जिंदगी जैसी भी चाहे दे मुझे मौला,
आखिरी लम्हा सफ़र का पर निराला दे..

Friday, December 6, 2013

दो गज़लें : अरुन शर्मा 'अनन्त'

बह्र : खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून  

खूबसूरत हसीं परी होगी,
सोचता हूँ जो जिंदगी होगी,

सादगी कूटकर भरी होगी,
श्याम जैसी वो साँवरी होगी,

ख्वाहिशें क्यूँ भला अधूरी हैं,
मांगने में कहीं कमी होगी,

ख़त्म कर लें विवाद आपस का,
मैं गलत हूँ कि तू सही होगी,

मौत ने खा लिया बता देना,
जिस्म में जान जब नही होगी,

शांत चुपचाप दोस्त रहने दो,
सत्य बोलूँगा खलबली होगी....

************************************************************************
बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम

तमन्ना यही एक पूरी खुदा कर,
जमी ओढ़ लूँ मैं फलक को बिछा कर,

शुकूँ से भरी नींद अँखियों को दे दे,
दुआओं तले माँ के बिस्तर लगा कर,

बढ़ा हौसला दे मेरी झोपड़ी का,
बुजुर्गों के आशीष की छत बना कर,

अमन शान्ति का शुद्ध वातावरण हो,
मुहब्बत पिला दे शराफत मिला कर,

सितारों भरी एक दुनिया बसा रब,
अँधेरे का सारा जहाँ अब मिटा कर..

Sunday, December 1, 2013

दो गज़लें : अरुन शर्मा 'अनन्त'

कहानी प्रेम की लिख दो,
ह्रदय का पृष्ठ सादा है,

यही दिल की तमन्ना है,
तुम्हारा क्या इरादा है,

सुनो पर छोड़ मत देना,
इसी का डर जियादा है,

कभी ये कह न देना तुम,
कि वादा सिर्फ वादा है,

जुए की तुम महारानी,
बेचारा दिल तो प्यादा है....
...........................................................................................
गिला शिकवा शिकायत है,
मुहब्बत पर निहायत है,

खुदा का है करम लेकिन,
तुम्हारी भी इनायत है,

कभी मेरी खिलाफत तो,
कभी मेरी हिमायत है,
(हिमायत - तरफदारी)

बुराई देखती हो तुम,
कभी देखो किफ़ायत है,
(किफ़ायत - गुण)

सदा दिल को दुखाने का,
तुम्हें हक़ है रियायत है....

Wednesday, November 27, 2013

कुछ दोहे : अरुन शर्मा 'अनन्त'

ओ बी ओ छंदोत्सव अंक ३२ में सादर समर्पित कुछ दोहे...

दो टीलों के मध्य में, सेतु करें निर्माण ।
जूझ रही हैं चींटियाँ, चाहे जाए प्राण ।1।

दो मिल करती संतुलन, करें नियंत्रण चार ।
देख उठाती चींटियाँ, अधिक स्वयं से भार ।2।

मंजिल कितनी भी कठिन, सरल बनाती चाह ।
कद छोटा दुर्बल मगर, साहस भरा अथाह ।3।

बड़ी चतुर कौशल निपुण, अद्भुत है उत्साह ।
कठिन परिश्रम को नमन, लग्नशीलता वाह ।4।

जटिल समस्या का सदा, मिलकर करें निदान ।
ताकत इनकी एकता, श्रम इनकी पहचान ।5।

Monday, November 18, 2013

दोहे : अरुन शर्मा 'अनन्त'

...................... दोहे ......................

मन से सच्चा प्रेम दें, समझें एक समान ।
बालक हो या बालिका, दोनों हैं भगवान ।।

उत्तम शिक्षा सभ्यता, भले बुरे का ज्ञान ।
जीवन की कठिनाइयाँ, करते हैं आसान ।।

नित सिखलायें नैन को, मर्यादा सम्मान ।
हितकारी होते नहीं, क्रोध लोभ अभिमान ।।

ईश्वर से कर कामना, उपजें नेक विचार ।
भाषा मीठी प्रेम की, खुशियों का आधार ।

सच्चाई ईमान औ, सदगुण शिष्टाचार ।
सज्जन को सज्जन करे, सज्जन का व्यवहार ।।

Sunday, November 10, 2013

प्रिय तुम तो प्राण समान हो

अंतस मन में विद्यमान हो,
तुम भविष्य हो वर्तमान हो,
मधुरिम प्रातः संध्या बेला,
प्रिय तुम तो प्राण समान हो....

अधर खिली मुस्कान तुम्हीं हो,
खुशियों का खलिहान तुम्हीं हो,
तुम ही ऋतु हो, तुम्हीं पर्व हो,
सरस सहज आसान तुम्हीं हो.

तुम्हीं समस्या का निदान हो,
प्रिय तुम तो प्राण समान हो....

पीड़ाहारी प्रेम बाम हो,
तुम्हीं चैन हो तुम आराम हो,
शब्दकोष तुम तुम्हीं व्याकरण,
तुम संज्ञा हो सर्वनाम हो.

तुम पूजा हो तुम्हीं ध्यान हो,
प्रिय तुम तो प्राण समान हो....

Friday, October 25, 2013

ग़ज़ल : हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है

बह्र : हज़ज मुसम्मन सालिम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
....................................................

हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है,
मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,

निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है,

दिखा कर ख्वाब आँखों को रुलाया खून के आंसू,
जुबां पे बद्दुआ बस और भीतर चिडचिड़ाहट है,

चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है,

बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...

Sunday, October 13, 2013

बँधी भैंसें तबेले में

ग़ज़ल
बह्र : हज़ज़ मुरब्बा सालिम
1222 , 1222 ,
.........................................................
बँधी भैंसें तबेले में,
करें बातें अकेले में,

अजब इन्सान है देखो,
फँसा रहता झमेले में,

मिले जो इनमें कड़वाहट,
नहीं मिलती करेले में,


हुनर जो लेरुओं में है,
नहीं इंसा गदेले में,


भले हम जानवर होकर,
यहाँ आदम के मेले में,

गुरु तो हैं गुरु लेकिन,
भरा है ज्ञान चेले में..

Wednesday, October 9, 2013

जय माता दी




नमन कोटिशः आपको, हे नवदुर्गे मात ।
श्री चरणों में हो सुबह, श्री चरणों में रात ।।

नमन हाथ माँ जोड़कर, विनती बारम्बार ।
हे जग जननी कीजिये, सबका बेड़ापार ।।

हे वीणा वरदायिनी, हे स्वर के सरदार ।
सुन लो हे ममतामयी, करुणा भरी पुकार ।।

केवल इतनी कामना, कर रखता उपवास ।
मन में मेरे आपका, इक दिन होगा वास ।।

सुबह शाम वंदन नमन, मन से माते जाप ।
पूर्ण करो हर कामना, इस बालक की आप ।।

Monday, September 30, 2013

ग़ज़ल : हमारा प्रेम होता जो कन्हैया और राधा सा

ग़ज़ल
(बह्र: हज़ज़ मुसम्मन सालिम )
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
..........................................................

अयोध्या में न था संभव जहाँ कुछ राम से पहले,
वहीँ गोकुल में कुछ होता न था घनश्याम से पहले,

बड़े ही प्रेम से श्री राम जी लक्ष्मण से कहते हैं,
अनुज बाधाएँ आती हैं भले हर काम से पहले,

समर्पित गोपियों ने कर दिया जीवन मुरारी को,
नहीं कुछ श्याम से बढ़कर नहीं कुछ श्याम से पहले,

हमारा प्रेम होता जो कन्हैया और राधा सा,
समझ लेते ह्रदय की भावना पैगाम से पहले,

भले लक्ष्मी नारायण कहता है संसार हे राधा,
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले....

Thursday, September 26, 2013

दादाजी ने ऊँगली थामी

आल्हा छंद - 16 और 15 मात्राओं पर यति. अंत में गुरु-लघु , अतिशयोक्ति


 दादाजी ने ऊँगली थामी, शैशव चला उठाकर पाँव ।
मानों बरगद किसी लता पर, बिखराता हो अपनी छाँव ।।


फूलों से अनभिज्ञ भले पर, काँटों की रखता पहचान ।
अहा! बड़ा ही सीधा सादा, भोला भाला यह भगवान ।।


शिशु की अद्भुत भाषा शैली, शिशु का अद्भुत है विज्ञान ।
बिना पढ़े ही हर भाषा के, शब्दों का रखता है ज्ञान ।।


सुनो झुर्रियां तनी नसें ये, कहें अनुभवी मुझको जान।
बचपन यौवन और बुढ़ापा, मुन्ने को सिखलाता ज्ञान ।। 


जन्म धरा पर लिया नहीं है, चिर सम्बंधों का निर्माण |
अपनेपन की मधुर भावना, फूँक रही रिश्तों में प्राण ||

Friday, September 20, 2013

माँ की आँचल के तले, बच्चों का संसार

 शिशु बैठा है गोद में, मूंदे दोनों नैन ।
मात लुटाती प्रेम ज्यों, बरसे सावन रैन ।।

जननी चूमे प्रेम से, शिशु को बारम्बार ।
ज्यों शंकर के शीश से, बहे गंग की धार ।।

माँ की आँचल के तले, बच्चों का संसार।
धरती पर संभव नहीं, माँ सा सच्चा प्यार ।।

माँ तेरे से स्पर्श का, सुखद सुखद एहसास ।
तेरी कोमल गोद माँ, कहीं स्वर्ग से खास ।।

नैना सागर भर गए, करके तुझको याद ।
माता तेरे प्रेम का, संभव नहिं अनुवाद ।।

फिर से आकर चूम ले, सूना मेरा माथ ।
वादा कर माँ छोड़कर, जायेगी ना साथ ।।

Monday, September 16, 2013

मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ

दूरियों का ही समय निश्चित हुआ,
कब भला शक से दिलों का हित हुआ,


भोज छप्पन हैं किसी के वास्ते,
और कोई स्वाद से वंचित हुआ,


क्या भरोसा देश के कानून पर,
है बुरा जो वो भला साबित हुआ,


बेटियों सँग हादसे यूँ देखकर,
मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,


सभ्यता की देख उड़ती धज्जियाँ,
मन ह्रदय मेरा बहुत कुंठित हुआ..

Friday, September 13, 2013

स्वयं विधाता ने हाथों से

स्वयं विधाता ने हाथों से, करके धरती का श्रृंगार,
दिया मनुज को एक सलोना, सुन्दर प्यारा सा संसार,

मानवता का पाठ पढ़ाया, सिया राम ने ले अवतार,
लौटे फिर से मोहन बनके, और सिखाया करना प्यार,

स्वतः स्वतः पर मानव बदला, बदली काया और विचार,
भूल गया सच की परिभाषा, भूल गया गीता का सार,

गुंडागर्दी लूट डकैती, धोखा सरकारी व्यापार,
अपने घर की चिंता सबको, भले मिटे दूजा परिवार,

खुद का दाना पानी मुश्किल, करते लोगों का कल्याण,
राम नाम जप करें कमाई, जनता का हर लेते प्राण,

भोग विलास अधर्म बुराई, महँगाई के बरसे बाण,
संसद में नेता जी कहते, जारी है भारत निर्माण....

Sunday, September 1, 2013

संगमरमर सा बदन हाय भुलाये न बने

ग़ज़ल
बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ

गम छुपाये न बने जख्म दिखाये न बने,
आह जब पीर बढ़े वक़्त बिताये न बने,

रेशमी जुल्फ घनी, नैन भरे काली घटा,
संगमरमर सा बदन हाय भुलाये न बने,

शबनमी होंठ गुलाबों से अधिक कोमल हैं,
सेतु तारीफ का मुश्किल है बनाये न बने,

रातरानी सी जो मुस्कान खिली होंठों पर,
हुस्न कातिल ये तेरा जान बचाये न बने

मौत जिद पे है अड़ी साथ लेके जाने को,
क्या बने बात जहाँ बात बनाये न बने...

Wednesday, August 21, 2013

कहीं तो टूटके सीने से दिल बिखरा हुआ होगा

बहर : हज़ज़ मुसम्मन सालिम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
....................................................

तुझे भूला हुआ होगा तुझे बिसरा हुआ होगा,
कहीं तो टूटके सीने से दिल बिखरा हुआ होगा,

बदलता है नहीं मेरी निगाहों का कभी मौसम,
असर छोटी सी कोई बात का गहरा हुआ होगा ,

तनिक हरकत नहीं करता सिसकती आह सुन मेरी,
अगर गूंगा नहीं तो दिल तेरा बहरा हुआ होगा,

जिसे अब ढूंढती है आज के रौशन जहाँ में तू,
तमस की गोद में बिस्तर बिछा पसरा हुआ होगा,

चली आई मुझे तू छोड़ कर चुपचाप राहों में,
तुझे महसूस शायद मुझसे ही खतरा हुआ होगा,

कहा रुकना नहीं जाना पलटकर मैं अभी आई,
अरुन अब तक उसी बारिश तले ठहरा हुआ होगा..

Sunday, August 11, 2013

सावन

सजी धजी हरी भरी वसुंधरा नवीन सी,
फुहार मेघ से झरी सफ़ेद है महीन सी,

नया नया स्वरुप है अनूप रंग रूप है,
बयार प्रेम की बहे खिली मलंग धूप है,

हवा सुगंध ले उड़े यहाँ वहाँ गुलाब की,
धरा विभोर हो उठी, मिटी क्षुधा चिनाब की

रुको जरा कहाँ चले दिखा मुझे कठोरता
हजार बार चाँद को चकोर है पुकारता

विदेश में बसे पिया, सुने नहीं निवेदना
अजीब मर्ज प्रेम का, अथाह दर्द वेदना

Tuesday, August 6, 2013

तुम प्रेम प्रतिज्ञा भूल गई

तुम प्रेम प्रतिज्ञा भूल गई,
मैं भूल गया दुनिया दारी,
पहले दिल का बलिदान दिया,
हौले - हौले धड़कन हारी.

खुशियाँ घर आँगन छोड़ चली,
तुम मुझसे जो मुँह मोड़ चली,
मैं अपनी मंजिल भटक गया,
इन दो लम्हों में अटक गया,

मुरझाई खिलके फुलवारी,
हौले - हौले धड़कन हारी.

मन व्याकुल है बेचैनी है,
यादों की छूरी पैनी है,
नैना सागर भर लेते हैं,
हम अश्कों से तर लेते हैं,

हर रोज चले दिल पे आरी,
हौले - हौले धड़कन हारी...

Sunday, July 28, 2013

ग़ज़ल : तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक - ३७ वें में प्रस्तुत मेरी ग़ज़ल :-
(बह्र: बहरे हज़ज़ मुसद्दस महजूफ)

.......................................
जिसे अपना बनाए जा रहा हूँ,
उसी से चोट दिल पे खा रहा हूँ,

यकीं मुझपे करेगी या नहीं वो,
अभी मैं आजमाया जा रहा हूँ,

मुहब्बत में जखम तो लाजमी है,
दिवाने दिल को ये समझा रहा हूँ,

अकेला रात की बाँहों में छुपकर,
निगाहों की नमी छलका रहा हूँ,

जुदाई की घडी में आज कल मैं,
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ..

Friday, July 19, 2013

ग़ज़ल : अजब ये रोग है दिल का

पेश-ए-खिदमत है छोटी बहर की ग़ज़ल.

बहर : हज़ज मुरब्बा सालिम
1222, 1222

.............................
परेशानी बढ़ाता है,
सदा पागल बनाता है,

अजब ये रोग है दिल का,
हँसाता है रुलाता है,

दुआओं से दवाओं से,
नहीं आराम आता है,

कभी छलनी जिगर कर दे,
कभी मलहम लगाता है,

हजारों मुश्किलें देकर,
दिलों को आजमाता है,

गुजरती रात है तन्हा,
सवेरे तक जगाता है,

नसीबा ही जुदा करता,
नसीबा ही मिलाता है,

कभी ख्वाबों के सौ टुकड़े,
कभी जन्नत दिखाता है,

उमर लम्बी यही कर दे,
यही जीवन मिटाता है...
.............................

अरुन शर्मा 'अनन्त'

Thursday, July 11, 2013

पुत्रीरूपी रत्न की प्राप्ति

लावन्या

गूँजी घर किलकारियाँ, सुबह शाम दिन रात ।
कन्यारूपी रत्न की, मिली हमें सौगात ।।

उम्र लगा की बढ़ गई, होता है आभास ।
जबसे पापा हूँ बना, लगता हूँ कुछ खास ।। 


बिन मांगे ही फल मिला, पूरी हुई मुराद ।
जीवन में है बढ़ गई, ख़ुशी की तायदाद ।।

Friday, June 28, 2013

शिव स्तुति मत्तगयन्द सवैया - त्रासदी पर आल्हा/वीर छंद


मत्तगयन्द सवैया 
आदि अनादि अनन्त त्रिलोचन ओम नमः शिव शंकर बोलें
सर्प गले तन भस्म मले शशि शीश धरे करुणा रस घोलें,
भांग धतूर पियें रजके अरु भूत पिशाच नचावत डोलें
रूद्र उमापति दीन दयाल डरें सबहीं नयना जब खोलें


आल्हा छंद

गड़ गड़ करता बादल गर्जा, कड़की बिजली टूटी गाज
सन सन करती चली हवाएं, कुदरत हो बैठी नाराज
पलक झपकते प्रलय हो गई, उजड़े लाखों घर परिवार
पल में साँसे रुकी हजारों, सह ना पाया कोई वार

डगमग डगमग डोली धरती, अम्बर से आई बरसात
घना अँधेरा छाया क्षण में, दिन आभासित होता रात
आनन फानन में उठ नदियाँ, भरकर दौड़ीं जल भण्डार
इस भारी विपदा के केवल, हम सब मानव जिम्मेदार

Monday, June 24, 2013

ग़ज़ल : गिरगिट की भांति बदले जो रंग दोस्तों

फाईलु / फाइलातुन / फाईलु / फाइलुन
वज्न : २२१, २१२२, २२१, २१२

नैनो के जानलेवा औजार से बचें,
करुणा दया ख़तम दिल में प्यार से बचें,

पत्थर से दोस्त वाकिफ बेशक से हों न हों,
है आईने की फितरत दीदार से बचें,

आदत सियासती है धोखे से वार की,
तलवार से डरे ना सरकार से बचें,

महँगाई छू रही अब आसमान को,
परिवार खुश रहेगा विस्तार से बचें,

गिरगिट की भांति बदले जो रंग दोस्तों,
जीवन में खास ऐसे किरदार से बचें,

नफरत नहीं गरीबों के वास्ते सही,
यारों सदा दिमागी बीमार से बचें,

जो चासनी लबों पर रख के चले सदा,
धोखा मिलेगा ऐसे मक्कार से बचें,

Sunday, June 16, 2013

ग़ज़ल : शीर्षक पिता

 "पितृ दिवस" पर सभी पिताओं को सादर प्रणाम नमन, सभी पिताओं को समर्पित एक ग़ज़ल.

ग़ज़ल : शीर्षक पिता
बह्र :हजज मुसम्मन सालिम
......................................................

घिरा जब भी अँधेरों में सही रस्ता दिखाते हैं ।
बढ़ा कर हाँथ वो अपना मुसीबत से बचाते हैं ।।

बड़ों को मान नारी को सदा सम्मान ही देना ।
पिता जी प्रेम से शिक्षा भरी बातें सिखाते हैं ।।

दिखावा झूठ धोखा जुर्म से दूरी सदा रखना ।
बुराई की हकीकत से मुझे अवगत कराते हैं ।।

सफ़र काटों भरा हो पर नहीं थकना नहीं रुकना ।
बिछेंगे फूल क़दमों में अगर चलते ही जाते हैं ।।

ख़ुशी के वास्ते मेरी दुआ हरपल करें रब से ।
जरा सी मांग पर सर्वस्व वो अपना लुटाते हैं ।।

मुसीबत में फँसा हो गर कोई बढ़कर मदद करना ।
वही इंसान हैं इंसान के जो काम आते हैं ।।

Wednesday, June 12, 2013

"पाखण्ड" पर आधारित कुछ दोहे

ओ बी ओ महोत्सव अंक ३२ वें में विषय "पाखण्ड" पर आधारित कुछ दोहे.

लोभी पहने देखिये, पाखण्डी परिधान ।
चिकनी चुपड़ी बात में, क्यों आता नादान ।।

नित पाखण्डी खेलता, तंत्र मंत्र का खेल ।
अपनी गाड़ी रुक गई, इनकी दौड़ी रेल ।।

पंडित बाबा मौलवी, जोगी नेता नाम ।
पाखण्डी ये लोग हैं, धोखा इनका काम ।।

खुलके बच्चा मांग ले, आया है दरबार ।
भेंट चढ़ा दे प्रेम से, खुश होगा परिवार ।।

होते पाखंडी सभी, बड़े पैंतरे बाज ।
धीरे धीरे हो रहा, इनका बड़ा समाज ।।

हींग लगे न फिटकरी, धंधा भाये खूब ।
इनकी चांदी हो गई, निर्धन गया है डूब ।।

ठग बैठा पोशाक में, बना महात्मा संत ।
अपनी झोली भर रहा, कर दूजे का अंत ।।

Thursday, June 6, 2013

प्यार के दोहे

हसरत तुमसे प्यार की, दिल तुमपे कुर्बान ।
मेरे दिल के रोग का, 'हाँ' कर करो निदान ।।
 


यादों में आने लगे, सुबह शाम हर वक़्त ।
कैसी हैं कठिनाइयाँ, कर ना पाऊं व्यक्त ।।

नैनो ने घायल किया, गई सादगी लूट ।
सच्चा तुमसे प्रेम है, नहीं समझना झूठ ।।

बोझल रातें हो गईं, दिल ने छीना चैन ।
मिलने की खातिर सदा, रहता हूँ बेचैन ।।


भोलापन ये सादगी, मदिरा भरी निगाह ।
दिलबर तेरे प्यार में, लुटने की है चाह ।।

चाहत की ये इन्तहाँ, कर ना दे बर्बाद ।
तुमसे दूरी में कहीं, मुझे मार दे याद ।।

Monday, June 3, 2013

कुछ दोहे

ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव अंक २६ वें में सम्मिलित दोहे.





जंगल में मंगल करें, पौधों की लें जान
उसी सत्य से चित्र है, करवाता पहचान

धरती बंजर हो रही, चिंतित हुए किसान
 
बिन पानी होता नहीं, हराभरा खलिहान
 
छाती चटकी देखिये, चिथड़े हुए हजार
 अच्छी खेती की धरा, निर्जल है बेकार
 
पोखर सूखे हैं सभी, कुआँ चला पाताल । 
मानव के दुष्कर्म का, ऐसा देखो हाल

पड़ते छाले पाँव में, जख्मी होते हाथ
बर्तन खाली देखके, फिक्र भरे हैं माथ
 
खाने को लाले पड़े, वस्त्रों का आभाव
फिर भी नेता जी कहें, हुआ बहुत बदलाव 

तरह तरह की योजना, में आगे सरकार
अपना सपना ही सदा, करती है साकार

तरह तरह की योजना, सदा बनाते लोग
 अपना सपना ही सदा, करती है साकार

Thursday, May 30, 2013

छोटी बहर की छोटी ग़ज़ल

निगाहों में भर ले,
मुझे प्यार कर ले, 

खिलौना बनाकर,
मजा उम्रभर ले, 

तू सुख चैन सारा,
दिवाने का हर ले, 

तकूँ राह तेरी,
गली से गुजर ले,

मुहब्बत में मेरी,
तू सज ले संवर ले...

Tuesday, May 28, 2013

ग़ज़ल : प्यार का रोग दिल लगा लाया

(बह्र: खफीफ मुसद्दस मख्बून मक्तुअ)
२१२२-१२१२-२२ 

फाइलातुन मुफाइलुन फेलुन 


प्यार का रोग दिल लगा लाया,
दर्द तकलीफ भी बढ़ा लाया,

याद में डूब मैं सनम खुद को,
रात भर नींद में जगा लाया,

तुम ही से जिंदगी दिवाने की,
साथ मरने तलक लिखा लाया,

चाँद तारों के शहर में तुमसे,
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया,

तेरी अँखियों से लूट कर काजल,
मेघ घनघोर है घटा लाया.

Monday, May 20, 2013

ग़ज़ल : कदम डगमगाए जुबां लडखडाये

ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 31 वें में सम्मिलित ग़ज़ल:-
विषय : "मद्यपान निषेध"
बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम (१२२, १२२, १२२, १२२)

कदम डगमगाए जुबां लडखडाये,
बुरी लत ये मदिरा हजारो लगाये,

न परवाह घर की न इज्जत की चिंता,
नशा ये असर सिर्फ अपना दिखाये,

शराबी - कबाबी- पियक्कड़ - नशेड़ी,
नए नाम से रोज दुनिया बुलाये,

सड़क पे कभी तो कभी नालियों में,
नशा आदमी को नज़र से गिराये,

उजाड़े ये संसार हंसी का ख़ुशी का,
मुहब्बत को ये मार ठोकर भगाये.

Thursday, May 16, 2013

सूचना

आदरणीय मित्रों आप सभी को सूचित किया जाता है कि जल्द ही हम लोग आप सभी के समक्ष एक नया ब्लॉग प्रस्तुत करेंगे.  सुझाव हेतु आप सभी का स्वागत है. ब्लॉग का लिंक नीचे दिया गया है.

 
वैसे तो इस तरह के तमाम ब्लॉग उपलब्ध हैं जिनमें से कुछ काफी प्रसिद्ध हैं. इस ब्लॉग को शुरू करने का हमारा उद्देश्य कम फोलोवर्स से जूझ रहे ब्लॉग्स का प्रचार करना एवं वे लोग जो ब्लॉग बनाना चाहते हैं परन्तु अज्ञान वश बना नहीं पाते या फिर अपने ब्लॉग का रूप, रंग ढंग नहीं बदल पाते उनकी समस्या का समाधान करना भी है. साथ ही साथ प्रतिदिन एक या दो विशेष रचना  "विशेष रचना कोना' पर प्रस्तुत की जायेगी. सोमवार एवं शुक्रवार के लिंक्स प्रसारण हेतु प्रसारण कर्ता की आवश्यकता है इच्छुक मित्र संपर्क करें. 

सादर 

Sunday, May 12, 2013

माँ - मेरी माँ (प्यारी माँ - न्यारी माँ)

माँ तुमसे जीवन मिला, माँ तुमसे यह रूप।
माँ तुम मेरी छाँव हो, माँ तुम मेरी धूप ।।

तू मेरा भगवान माँ, तू मेरा संसार ।
तेरे बिन मैं, मैं नहीं, बंजर हूँ बेकार ।।

पूजा माँ की कीजिये, कीजे न तिरस्कार ।
धरती पर मिलता नहीं, माँ सा
सच्चा प्यार ।।

छू मंतर पीड़ा करे, भर दे पल में घाव ।
माँ की ममता का कहीं, कोई मोल न भाव ।।

माँ तेरी महिमा अगम, कैसे करूँ बखान ।
संभव परिभाषा नहीं, संभव नहीं विधान ।।

Thursday, May 9, 2013

ग़ज़ल : चोरी घोटाला और काली कमाई

बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम

चोरी घोटाला और काली कमाई,
गुनाहों के दरिया में दुनिया डुबाई,

निगाहों में रखने लगे लोग खंजर,
पिशाचों ने मानव की चमड़ी चढ़ाई,

दिनों रात उसका ही छप्पर चुआ है,
गगनचुम्बी जिसने इमारत बनाई,

कपूतों की संख्या बढ़ेगी जमीं पे,
कि माता कुमाता अगर हो न पाई,

हमेशा से सबको ये कानून देता,
हिरासत-मुकदमा-ब-इज्जत रिहाई,

गली मोड़ नुक्कड़ पे लाखों दरिन्दे,
फ़रिश्ता नहीं इक भी देता दिखाई...

Saturday, May 4, 2013

दोहे

नित नैनो में गन्दगी, होती रही विराज..
कालंकित होता रहा, चुप्पी धरे समाज..

सज्जनता है मिट गई, और गया व्यवहार.
नहीं पुरातन सभ्यता, नहीं तीज त्योहार. 

कोमलता भीतर नहीं, नहीं जिगर में पीर.
बहुत दुशाशन हैं यहाँ, इक नहि अर्जुन वीर. 

अनहोनी होने लगी, गया भरोसा टूट ।
खुलेआम अब हो रही, मर्यादा की लूट ।।

गलत विचारों को लिए, फिरते दुर्जन लोग ।
कटु भाषा हैं बोलते, और परोसें रोग ।।
सदाचार है लुट गया, और गया विश्वास ।
घटनाएं यूँ देखके, मन है हुआ उदास ।।

बिना बात उलझो नहीं, करो न वाद-विवाद.
ढाई आखर प्रेम के, शब्द -शब्द में स्वाद...

Wednesday, May 1, 2013

ग़ज़ल : आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया

बह्र : रमल मुसम्मन सालिम

वक्त ने करवट बदल ली जो अँधेरा छा गया,
आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया,

प्यार के इस खेल में मकसद छुपा कुछ और था,
बोल कर दो बोल मीठे जुल्म दिल पे ढा गया,

बाढ़ यूँ ख्वाबों की आई है जमीं पर नींद की,
चैन तक अपनी निगाहों का जमाना खा गया,

झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,
झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,

तालियों की गडगडाहट संग बाजी सीटियाँ,
देश का नेता हमारा यूँ शहद बरसा गया.....

Saturday, April 27, 2013

दोहे


ओपन बुक्स ऑनलाइन ,चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक-२५ में मेरी रचना 




दोहे 

भीतर से घबरा रहा, मन में जपता राम ।
किसी तरह हे राम जी, आज बना दो काम ।।

दुबला पतला जिस्म है, सीना रहा फुलाय ।
जैसे तैसे हो सके, बस भर्ती हो जाय ।।

डिग्री बी ए की लिए, दुर्बल लिए शरीर ।
खाकी वर्दी जो मिले, चमके फिर तकदीर ।।

सीना है आगे किये, भीतर खींचे साँस ।
हाँथ लगे ज्यों सींक से, पाँव लगे ज्यों बाँस ।।

इक सीना नपवा रहा, दूजा है तैयार ।
खाते जैसे हैं हवा, लगते हैं बीमार ।।

खाकी से दूरी भली, कडवी इनकी चाय ।
ना तो अच्छी दुश्मनी, ना तो यारी भाय ।।

बिगड़ी नीयत देखके सौ रूपये का नोट ।
भोली सूरत ले फिरें, रखते मन में खोट ।।

Wednesday, April 24, 2013

कविता : मैं रसिक लाल- तुम फूलकली

मैं शुष्क धरा, तुम नम बदली.
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.

तुम मीठे रस की मलिका हो,
मैं प्रेमी थोड़ा पागल हूँ.
तुम मंद - मंद मुस्काती हो,
मैं होता रहता घायल हूँ.

तुमसे मिलकर तबियत बदली.
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.

जब ऋतु बासंती बीत गई,
तब तेरी मेरी प्रीत गई.
तुम मुरझाई मैं टूट गया,
मौसम मतवाला रूठ गया.


नैना भीगे, मुस्कान चली
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली..

Monday, April 15, 2013

दोहे

...................................................................................................
नारियों को समर्पित
...................................................................................................
  दुखदाई यह वेदना, बेहद घृणित प्रयत्न ।
दुर्जन प्राणी खो रहे, कन्या रूपी रत्न ।।

सच्ची बातों का बुरा, लगता है लग जाय ।
स्तर गिरा है पशुओं से, रहे मनुष्य बताय ।।

नारी से ही घर चले, नारी से संसार ।
नारी ही इस भूमि पे, जीवन का आधार ।।

माता पत्नी बेटियाँ, सब नारी के रूप ।
नारी जगदम्बा स्वयं, नारी शक्ति स्वरुप ।।

कन्या को क्यूँ पेट में, देते हो यूँ मार ।
बिन कन्या के यह धरा, ज्यों बंजर बेकार ।।

विनती है तुम हे प्रभू, ऐसा करो उपाय ।
बुरी दृष्टि जो जो रखे, नेत्रहीन हो जाय ।।
...................................................................................................
बच्चों को समर्पित
...................................................................................................

पढ़ लिख कर आगे बढ़ें, बनें नेक इन्सान ।
अच्छी शिक्षा जो मिले, बच्चें भरें उड़ान ।।

बच्चे कोमल फूल से, बच्चे हैं मासूम ।
सुमन भाँति ये खिल उठें, बनो धूप लो चूम ।।

देखो बच्चों प्रेम ही, जीवन का आधार ।
सज्जन को सज्जन करे, सज्जन का व्यवहार ।।

मजबूती जो नीव में, सदियों चले मकान ।
शिक्षा मात्र उपाय जो, करती दूर थकान ।।

आते देखे भोर को, भागा तामस जाय ।
सुख उसके ही साथ हो, दुख में जो मुस्काय ।।

सच्चाई की राह में, काँटे हैं भरपूर ।
अच्छी बातें सीख लो, करो बुराई दूर ।।

Thursday, April 11, 2013

जय माता दी - नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं.

.................. दोहे ..................

हे जग जननी आपको, बारम्बार प्रणाम,
श्री चरणों की वंदना, में सुबहा हो शाम..

मन से माँ की वंदना, करो ह्रदय से पाठ,
भर भर के आशीष दें, सभी भुजाएं आठ.

माता तेरे भक्त हम, रखना माते ध्यान,
तुझसे ही संसार है, तुझसे ही है ज्ञान...

.................. 'मत्तगयन्द' सवैया ..................
दूर कलेश विकार करो भय नाश करो विनती सुन माता,
मात निवास करो घर में कर जोड़ तुझे यह लाल बुलाता,
ज्योति जली अरु द्वार सजा अति सुन्दर मइया मोरि लगी है,
पुष्प भरे सब थालि लिए इक साथ चले यह प्रीति सगी है ....

Wednesday, April 10, 2013

बच्चों को समर्पित दो रचनाएं

बच्चों को समर्पित दो रचनाएं
..................................................................

प्रथम रचना : 'मत्तगयन्द' सवैया : 7 भगण व अंत में दो दीर्घ
...................................................................

नाच नचाय रहा सबको हर ओर चलाय रहा मनमानी,
चूम ललाट रही जननी जब बोल रहा वह तोतल वानी,
धूल भरे तन माटि चखे चुपचाप लखे मुसकान सयानी,
रूप स्वरुप निहार रही सब भूल गयी यह लाल दिवानी...


...................................................................
द्वतीय  रचना : कविता

मुझको नहीं होना बड़ा - वड़ा
पैरों पर अपने खड़ा - वड़ा
मैं बच्चा - बच्चा अच्छा हूँ ।

गोदी में सोने की हसरत मेरे जीवन से जायेगी,
माँ अपनी सुन्दर वाणी से लोरी भी नहीं सुनाएगी,
अच्छा है उम्र में कच्चा हूँ ।
मैं बच्चा - बच्चा अच्छा हूँ ।।

मैं फूलों संग मुस्काता हूँ, मैं कोयल के संग गाता हूँ,
चिड़िया रानी संग यारी है, मुझको लगती ये प्यारी है,
मैं मित्र सभी का सच्चा हूँ ।
मैं बच्चा - बच्चा अच्छा हूँ ।।

...................................................................
                    अरुन शर्मा 'अनन्त'
...................................................................

Thursday, April 4, 2013

प्रस्तुत हैं नैनों पर कुछ दोहे

नयन झुकाए मोहिनी, मंद मंद मुस्काय ।
रूप अनोखा देखके, दर्पण भी शर्माय ।।

नयन चलाते छूरियां, नयन चलाते बाण ।
नयनन की भाषा कठिन, नयन क्षीर आषाण ।।

दो नैना हर मर्तबा, छीन गए सुख चैन ।
मन वैरागी कर गए, भटकूँ मैं दिन रैन ।।

आंसू के मोती कभी, मिलते कभी बवाल ।
नैनों की पहचान में, ज्ञानी भी कंगाल ।।

नयना शर्मीले बड़े, नयना नखरे बाज ।
नयनो का खुलता नहीं, सालों सालों राज ।।

नैनो से नैना मिले, बसे नयन में आप ।
नैना करवाएं सदा, मन का मेल मिलाप ।।

जो नैना नीरज भरें, जीतें मन संसार ।
नैना करके छोड़ दें, सज्जन को बेकार ।।

पल पल मैं व्याकुल हुआ, किया नयन ने वार ।
दो नैनो की जीत थी, दो नैनो की हार ।।

Monday, April 1, 2013

ग़ज़ल : अगर मांगने में तू सच्चा हुआ है

वज्न : १२२ , १२२ , १२२ , १२२ 
बहर : मुतकारिब मुसम्मन सालिम

झपकती पलक और लगती दुआ है,
अगर मांगने में तू सच्चा हुआ है,

जखम हो रहे दिन ब दिन और गहरे,
नयन की कटारी ने दिल को छुआ है,

नहीं बच सकेगा जतन लाख कर ले,
नसीबा ने खेला सदा ही जुआ है,

न बरसात ठहरी न मैं रात सोया,
कि रह रह के छप्पर सुबह तक चुआ है,

सुखों का गरीबों के घर ना ठिकाना,
दुखों ने मुफत में भरी बद - दुआ है .